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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२२८

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कल्कि २२६ कल्किने कलिकलुषविनाशके लिये विशाखयपको, सुना है। वह अाहरिको चिन्तामें पतिकातर है। सभा सृष्टिसे प्रारम्भ कर विराटमूर्ति, ब्रह्मा, मैं अधिक अपेचा कर न सकनेपर पद्मावतीको उसी माया, देवदानव-मानव-स्थावर जङ्गम पादिको उत् अवस्थामें छोड़ तुम्हें संवाद देने आया है। पति, वेदमाहात्म्य, ब्राह्मणमहिमा, अपने अवता कल्किने शुकको पद्यावती लक्ष्मीको वैसी भवस्था रको पावश्यकता प्रति सब बातें बतायी धौं । बताते देख पाखास दिलाने के लिये यथोपयुक्त उपदेश सध्याकाल विशाखयंपके स्थानान्तर जाते शिवदत्त प्रदान पूर्वक फिर सिंहल भेजा था। शक सिंहल शुक इतस्तत: विचरण कर कल्किकै निकट श्रा पहुंच गये और पद्मावतीको पाखास देने लगे। पहुंचे। कल्किने शुकसे कहा,-शक ! कहो, तुम उनके मुखसे शिषोक्त विष्णुपूजाको पद्धति, भगवान्के किस देशसे क्या पाहार कर आये हो; तुम्हारा मङ्गल देशको वर्णना और बोचरणसे कैश पर्यन्त प्रति अङ्गका तो है? शकने उत्तर दिया,-'देव। सागरके मध्य ध्यान सुन शुकने संवाद दिया, कि समुद्रके अपरपार सिइल नामक एक द्वीप है। वहाँके नृपति कह शम्भलग्राममें विष्णुने कल्कि अवतार लिया है। प्रथ कहाते हैं। कौमुदी नानी उनकी पत्नौके गर्भसे पद्माने कल्किका संवाद सुन शुकको रत्नाचवारसे एक कन्या पुयी है। उसका नाम पद्मावती विलोक सनाया, भगवानको बुत्ता लानेके लिये दूत बनाया दुर्लभा है। उनका चरित्र अतीव रमणीय है। रूपये और कह सुनाया,-देखी, जो कहना है, कहोगे। मन्मथ भी पागल बन जाता है। पद्मावतीने इर तुमसे अविदित कुछ भी नहीं है। यह दूसरी कौन बात पार्वतीको उपासनाकर वर पाया है, कोई मनुष्य कह सकती हैं। कल्कि अपने.मनुष्यचममें स्त्री प्राप्ति- राजपुत्र पद्मावतीक उपयुद्ध नहीं। इस जगत्में जो की पामासासे सिंहल चाहे न पायें, किन्तु पाप मानन वा देव पसुर नाग गन्धर्व प्रभृति पद्माको काम श्रीचरणम हमारा प्रणाम अवश्य पहुंचावें। ककिसे भावसे निरीक्षण वा अभिलाष करेगा, वह तत्क्षण कह दीजियेगा, कि पद्माके अदृष्ट दोषसे शिवका खीय पुरुषजन्मक वयसानुरूप स्त्रीत्व भावको पहुं वर अभिशाप बन गया। शक उनसे विदा हो करिकक चेगा। एकमात्र नारायण ही उनके स्वामी हैं। पद्मा निकट पहुंचे। कल्कि पद्माको कथा सुन शिवदत्त महादेवसे यह वर लाभ कर परम इष्ट हो इतने अक्षपर चढ़े और शकको सङ्ग ले तन्मयचित्तसे त्वरित- दिनये नारायणकी राह देख रही है। सम्प्रति उनके पद मिहलको भोर चल पड़े। कल्कि यथाकाल पिता स्वयम्बरका पायोजन लगाया है। नृपतिका राजधानी कायमती नगरमें पहुंचे थे। नगरके प्रान्त- हेश है, खयम्बरको सभामै श्रीक्वप्मने जैसे सकिन भागमें मनोहर सरोवर देख उन्होंने शुक्से कहा- पीको ग्रहण किया, वैसे ही नारायण पनाको भी "इस स्थानपर स्नान करना पड़ेगा।" शक उनका ग्रहण करेंगे। फिर स्वयम्बरको सभामें जो सकल उद्देश देख पद्मावतौके सविधानको चल दिये। नृपति पहुंचे, वह पद्माको काम भावसे देखते ही करिकन सरोवरक तौर पर प्रवस्थान किया। शुकने स्वख वयसके अनुरूप विपुलनितम्बा, स्तनयुगशालिनी जाकर पद्मावतीको भगवान्के आगमनका. संवाद और सुमध्यमा रमणी बन गये। जिसने जैसी दिया था। पद्मावती सुनते ही सरोवरसानके छलसे रमयीको चाहा, उसने वैसा ही रुप पाया था। सहचरी सङ्ग ले करिकके दर्शनको चल खड़ी हुयौं । हास्थविलासव्यसन भी निपुणतासे देखने लगे। फिर उनके पानेका समाचार पा रहविपिनो में जो सकल नृपति बोग प्रसन्नता पद्माको संहचरियोंमें मिल पुरुष रहे, वह भयसे भागने लगे। उनको कामिनियां गये। मैं विवाह देखनेको एक निकटस्थ उच्चपर बैठा पुण्यकार्यका अनुष्ठान करतौं, जिसमें पतिलोक था। किन्तु यह व्यापार उठते मैं अत्यन्त दुःखित स्त्रीत्वको. न पहुंचे। पद्मावती सहचारियों के साथ हुवा। पद्मा भी रोने लगीं। मैंने उनका विनाप सरोवरके सोपानपर जा उतरीं। उस समय भगवान Vol. IV. 58