पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। कल्कि 'कल्कि कदम्बसरके मूलदेशपर सोते थे। पद्मावती । देवने यह प्रश्न सुन अगस्त्य मुनिको स्मरण किया। वे यथाकाल मान समापन कर असी तरुके मूलपर जा वहां पहुंचे थे। कल्किने राजावोंका प्रश्न वता मदुत्तर पहुंचौं और कल्किका रूपलावण्य देख मोहित हुयौं। देने को कहा। मुनिवर अगस्त्य ने अपने पूर्व जन्मका उन्होंने शुकसे महापुरुषको निद्रा न भङ्ग करने और वृत्तान्त सुना राजावोंके सकल प्रश्न का उत्तर दिया। उनके जग कर स्त्रीत्व प्राप्त होनेसे डर लगनेको कहा राना फिर अपने अपने घर लौट गये राजाशके था। वैसा होते उनकी क्या दशा होती। महा खराज्यको जाते भगवान् कल्किने भी अपने राज्य को देवका वर पद्माके लिये शाप था। कलिक मन ही प्रत्यागमन करनेका सत्य किया। देवराज इन्द्र ने मम उनका अभिप्राय समझ जाग उठे। उन्होंने भगवान्का अभिप्राय समझ विषकांसे थम्भलग्राममें मधुर प्रेमसम्भाषणसे पद्मावतीको मनाया था । उनके लिये स्वस्ति प्रभृति नानाविध भवन वनवाये यद्मावती कल्किदेवके मधुर वचन सुन तथा पुरुषल थे। यथाकाल पद्मावतीको साथ ले धूमधामसे कल्लिा पचत रहते देख सातिशय आनन्दित इयों और लज्जा शम्भलग्रामको ओर चल दिये। नम्नसुखमें प्रेम-गद्गद खरसे भगवान् कल्किको स्तव वह सब लोग शम्भल ग्राम पहुंचे थे। कल्कि द्वारा रिझा घर लौट पड़ौं। उन्होंने पितासे घरमें और पद्मावतीने जाकर जनक-जनमीको प्रणाम किया। भगवान् सल्किादेवके पागमनको वार्ता कही थी। फिर वह वधुवोंके समभिव्याहारसे नगरमें गये बद्रयने नगरमें श्रीहरिको पदार्पण करते सुन और विश्वकर्माके बनाये भवन में रहने लगे। उसी नानाविध नृत्य, गीत, वाद्यादिका पायोजन उठाया। समय कल्किके भाता कविने स्वपनी कामकलाके फिर वह पात्रों, मित्रां, परिजनों और ब्राह्मणों आदि- गर्भसे वृहत्कोति तथा वृहदवाड, प्राजने अपनी पत्री के साथ कल्किदेवको लेने चल दिये । पुरोहित, मन्नतिके गर्भ से यज्ञ एवं विज्ञ और सुमन्त्रकने यूनाका उपकरण उठा पोछे रहे। राजाने सरोवरके शालिनीके गर्भसे शासन तथा वेगवान् नामक पुत्र तौर कल्कि को देख स्तवपूनादि द्वारा रिझाया था। पुरीमें भानेपर कल्किका पद्मावतीके साथ विवाह कुछ दिन बीतने पर विष्णुयशाने अश्वमेधयन्त्र दुवा। स्त्रौत्व प्राप्त राजा कल्किका स्तव करने लगे करना चाहा था। कल्किा पिताको इच्छा देख धनरत्न और प्रसन्न होने पर उनके पादेशानुसार रेवा नदी मैं संग्रह करनेकी दिगविजयके लिये चले गये। नहा अपना अपना पुरुष देह पा गये। फिर उन्होंने कल्लिा खननों को लेकर ससैन्य प्रथमतः कोकट दश अवतारोंका नामोल्लेख पौर भगवान् कल्किका देशमें जा उत्तरे। कोकटदेशमें उस समय सब एका- स्तव कर खख देशको प्रस्थानका उपक्रम लगाया। कार रहा। स्त्रो, धन वा पत्र प्रादि लेने में कोयो पुरुषोत्तम कल्लिाने उस समय उन्हें वर्णाश्रमधर्म, अपना पराया देखता न था। वहां जिन नामक वैदिक अनुशासनादि और प्रवृत्तिमार्ग तथा नित्ति एक राजा रहे। वह कलिका पाते सुन दो पक्षो- मार्गका पथिकोचित कार्य बताया था। नृपति वह हिणी सैन्य लेकर लड़ने चलें। बातें सुन पुलकित हुये पौर पूछने लगे, देव ! प्रथम युद्ध में विन राजकी बौसेना हारकर भागी किस कारणसे स्त्री और पुरुष भेदमें सृष्टि पड़ती है। थी। फिर करिक और जिन दोनों सड़ने लगे। सुख, दुःख और जरा कहांसे है? किसके पादेश कल्कि शराधातसे मूर्छित हुये थे। जिन राजाने और किस उद्देशसे यह विहित हैं। आज तक इन अचेतन कल्किाका देह उठा ले जाना चाहा। सकल विषयोंका यथार्थतत्त्व विवेचित नहीं हुवा। किन्तु वह विखभर देह उठाये उठा न था। फिर इनमे जो विषय भिन्न पड़ता, वह समझ पर नहीं उसी बीच विभाखयपने निकटस्थ हो गदापातसे जिनको इंटाया और कल्किको लाकर अपने रथ- चढ़ता । तुम अनुग्रह कर हमसे कहो।' कल्कि- उत्पादन किये।