पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२४३

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२४8 " है।' स्थान बहुत ही अखास्थ्यकर हैं। शीतकार करनेट मेकेछी साइबने संस्कृतपुस्तकों का मशित स्वरका कुछ प्रादुर्भाव बढ़ते भी अच्छा रहता है। इतिहास लिपिवा किया है। उसमें 'मराज वम- एक दीवानी अदालत और एक थाना है। फौज राज वंशावली' लगी है। वह तिरुपती पर्वतके निकट दारोको दो कचेहरियां लगती है। कल्याण नगर इस वर्ती नारायणपुर वा नारायसवरम् नामक मानके प्रदेशका प्रधान स्थान है। यह पक्षा० १९. १४“३० अधिपतियों या प्राचीन कर्वेती नगरके मह राजवयीय और देशा० ७३.१० पू० पर अवस्थित हैं। नगर में राजावोंका वंशविवरण शीर्तन करती है। तोन्दमान बन्दर विद्यमान है। चावल छांटनेका काम बहुत चक्रवर्तीके एक बंधीय धनन्जय चोल थे। उन्हीं चोल- होता है। मुसलमानोंके अधिकार समय कल्याण | राजपुवसे उक्त बंधको उत्पत्ति है। धनत्रयके धर्म ११ मसजिदें बनी थीं। चतुर्दिक माचौरसे वेष्टित नारायणराज नामक किसी व्यक्तिने जन्म लिया। उन्हीं नगर में प्रवेश करने के लिये चार हार थे। नारायणरानने नारायणवरम् वा कच्चाणपत्तन स्थापित कल्याण अतिप्राचीन है। नाना स्थानोंक ई० किया था। कल्याण पत्तन प्राचीन ' कल्याण वा प्रथम, पञ्चम तथा षष्ठ भताब्दक खोदित शिलालेखों प्राधुनिक नारायणवरम् नदीपर अवस्थित है। में भी इसका नाम मिलता है। परिमासके मतसे ई. कर्णाटिक खोदित शिलालेखोंसे जो प्रमाण मिले द्वितीय शताब्दकी दाक्षिणात्य, कल्याण नामक एक उन्हे देख समम सके हैं-एक समय गोदावरी और प्रधान राज्य था। कसमस इण्डिकोष्टेसको वर्णनासे सल्यानदीके अन्तर्गत भूभागमें चालुक्य राजा प्रतिपय समझ पड़ता है,कि ई० पष्ठ शताब्दमें भारतको वाणि प्रवच पराक्रान्त पड़े थे। उस समय कोहण, कमाण, ज्यप्रधान पांच नगरियो में कल्याण एकतम और वस्त्र वनवासी प्रभृति राज्योपर मनका अधिकार फैला या। पित्तल प्रभृतिका विस्तृत व्यवसाय केन्द्र रहा। . चतुः काण बहुत समृधियानी और विख्यात था। चालुक्यः देश शताब्दको मुसलमानीने निलेका सदरथाना बना राजा शिलालेखोंमे अपना कल्याण वा कल्याणपुरक इसका नाम इसलामावाद रखा। पोतंगोजीन १५३६ 'चालुक्य राजा' कहकर परिचय दे गये हैं। कोप- ई० की कल्याणपर अधिकार किया था। किन्तु उन्होंने प्रदेशमें विवराज नामक एक महामण्डलेम्बर पति इसकी रक्षा रखनका कोई प्रबन्धन बांधा। फिर (et शक) थे। उनकी प्रदत्त छाड़के सम्बन्धी १५७० ई०को वह इसका पक्षण्ठ लूट यथेट धन मतामत देते समय अध्यापक बासैनने कहा है,- रन ले गये। पीछे यह प्रदेश अहमद नगर राज्यमें 'इसकी लिखी शिलाहार जाति काफिरिस्तानको लगा। १६३६ ई०को वीजापुरके राजाने प्रबल हो उत्तरस काफिर जातीय "भिजार" जातिको छोड़ इसे पधिकारमें किया। १६४८ को शिवाजीके अन्य जाति ही नहीं सकती। किन्तु दाक्षिणात्यम सेनापति आवानी सोमदेवने कलवायपर अाक्रमण एक विचात् नाति थी। वह लोग यहले मान्य- कर शासनकर्ताको बन्दी बनाया। १६३० ई.की खटीय राष्ट्रकूटोंके पीछे कच्चयाणवाले चालुक्यों के अधीन मुसलमानों ने इसे शिवाजीके हाथ छुड़ाया, किन्तु हुये। उस समय शिलाहारोंके ही गासनमें की १६६२ ई०को फिर गंवाया। १६७८ ई०को शिवाजीने प्रदेश, वैलगांव और सतरिका मध्यवर्ती समुदय स्वान अंगरेजोको यहां कोठी बनानका पादेश दिया था। था। शिलारोंके पराजयके वाद उसकार प्रदेमं १७८० ई.को मराठोंका साहाय्य न मिलनसे अंगरे करमापके अधीन हुवा। जाने या प्रदेश अधिकार किया। उसी समय दाक्षिणात्य चालुका रानामि कसिविक्रम विक्र- कलयाण अंगरेजोंके अधीन है। मादित्य बिभुवनमनदेवको महिमाका एक का है। प्राचीन इतिहास-इसका जो प्राचीन इतिहास मिला, विद्या नामक कविने उसे बनाया था। कायका का अधिकांश कर्णाटकके खोदित लेखोंसे निकला है। नाम "विक्रमारचरित है। उसके मतले विमा - 3