पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२५

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इन्हीं- . कफिनौ-कबन्ध २५ कफिनो (स. स्त्री०) कफिन्-डीप। १ हस्तिनी, । कड़िया (हिं. पु०) जातिविशेष, एक कौम । यह लोग हथिनो। २ कफप्रधान स्त्री, बलगमी औरत। ३ नदी मुसलमान होते पौर अवध तरकारी बोते हैं। फिर विशेष, एक दरया। अपनी बोई तरकारी बैंचना भी इन्हींको काम है। कफिना (हि.पु.) काष्ठ वा लोइका कोण । यह कबड्डी (हिं० स्त्रो०) १ बान्तकोंको एक क्रीड़ा, जहाजके तिरछे शहतीर जोड़नमें लगता है। कफिन्ना लड़कोंका एक खेत । इसमें बालक पहले अपने शब्द अंगरेजी 'कफ से बना है। दो दल बनाते हैं। फिर मैदानमें एक लकीर खींची कफी (स त्रि.) कफो ऽस्त्यस्य, कफ-इनि। जातो, जो पाला या डांडमेड़ कहाती है। इसका नापमान प्राणिस्थादिनिः । पा मारा१२८।१ भयुक्त, वलगमी। एक अोर एक दल और दूसरी ओर दूसरा दल रहता (पु०) २ गज, हाथी। है। फिर क्रीड़ा प्रारम्भ होती है। किसी दलका कोना (हिं. पु०) जहाजको फर्शका तख ता। यह एक बालक 'कबड्डी कबड्डी' कहते पालेको दूसरी अंगरजी 'कफ' शब्दसे बना है। ओर जाता और विपक्ष दलके किसी बालकको छुनेको कफीत (अ० पु०) बन्धक, जामिन, जमानत देनेवासा । चेष्टा लगाता है। यदि वह किसो बालकको छकर कफेलु (सं० वि०) कर्फ नाति पादत्ते, कफ-ला-कु और पाता और विपक्ष दलके किसो बालकको , निपातनात् रत्वम् । भन्दट्टन्फनम्बूकम्य सफेलूकर्कन्धदिधिषु ।। छनेको चेष्टा लगाता है। यदि वह किसी बालकको उण् ॥८५। १ कफयुक्त, बलगमो। २ श्लेमात्मकायक्ष, | छूकर लौट पाता और विपक्ष दलकी ओर पकड़ा ‘लसोड़ेका पेड़। नहीं जाता, तो जिस बालकको यह छ पाता, वह कफोणि . (सं० पु०-स्त्री०) कैन सुखेन फणति स्परति मरा कहाता अर्थात् खेलसे निकाल दिया जाता है। वा, का फण-स्फुर वा इन्, पृषोदरादित्वात् साधः। कूपर, | किन्तु छुनेवाला बालक छकर लौर न सकने और विपक्ष दलके बालकोंके पकड़में पड़नेसे स्वयं मर कफोणिघात (सं० पु.) कूपरप्रहार, कोहनीको मार । जाता अर्थात् हार खाता है। इसीप्रकार एक पोरके कफोकट (सं.वि.) कफप्रधान, बलगमो, जो बड़ा जब सब बालक मर जाते, तब दूसरी ओरके बाखक बलगम रखता हो। पूर्णरूपसे विजय पाते हैं। फिर दूसरी ओरके बालक कफोरिलष्ट (सं० पु०) नेत्ररोगभेद, आंख की एक छूने पावे और पूर्वोक्त गैसिसे मारते या मर जाते हैं। बीमारो। यह रोग होनेसे मानव कफके कारण इस खेलसे बालकोंमें दौड़ने-झपटनेको शशि प्रासो स्निग्ध, श्खेत, सलिलप्लावित और परिनाद्य रूप और उनको बुधि तथा दृष्टि तीव्र पड़ जाती है। देखता है। (माधवनिदान) २.कांपा, कम्या। कफोरलेश (स.पु.) कफ वमनकी उपस्थिति, कबन्ध (सं० लो०) कस्व प्राणवायोः बन्ध पाश्चयः, बलगम निकालने के लिये प्रामादगी। ६ तत्। १ जल, पानी। (पु.) के जलं बनाति, कफोदर (सही.) कफजन्य उदररोग, बलगमरे क-बन्ध-मम् । २ उदर, पेट। ३ राष्ट्र। होनेवाली पेटको एक बीमारी। इससे उदर शीतल, केतु। इनकी संख्या २८ है। पावति कबन्धसे गुरु, स्थिर, महछोफयुत, ससाद, खिग्ध एवं शुक्ल मिलती है। कवन्ध कालके पुत्र हैं। इनका उदय शिरावनह रहता और पानन तथा नखका वर्ण खेत दारुण फल देता है। मस्तकहोन जीवित एवं लगता है। (माधवनिदान) क्रियायुक्त कलेवर, सरकटा जीता जागता धड़। कफौड़' (दै० पु.) कफोणि वेदे कफोड़ादेयः पृषो. पाल्हामें लिखते, कि कबन्ध घोररूपसे तलवार दरादित्वात्। फफोणि, कोहनी। करते थे। ६ पाथर्व विशेष । ७ सुनिविशेष । ६ मेघ, कब (हिं. कि-वि०) कदा, किस समय। बादल। गन्धर्वविशेष। १० दौधगोलाकार काष्ठ Vol. कोहनी। ४ धूम 1 IT. 7