पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२५४

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कविलास-काव्य. २५१ 'कविसास (हिं. पु.) १ कैलास, महादेवके रहनेका । कवेत (म को०) के जलं विलति स्तुणाति, क-विल. पहाड़। २ खर्ग, विदिशा अण। १ उत्यन, नीसा कंवल। कविश्वासिका (सं. स्त्री० ) के मुखं विलासयति कवेता (हिं० पु.) भ्रमणका कोलक, चक्करको कोच । उदीपयति, कवि-सस-णिच-खुल-टाप् प्रत रत्वम् । वर दिग्दर्शनयन्त्र (कुतुषनुमा ) की सूची वोणाविशेष, किसी किसमका नम्बर । लगाती है। २ काकथावक, कौवका बच्चा। कविवर ( स० वि०) कविषु वरः श्रेष्ठः। कवियेड, कवोड़पक्र, बबाटवक देखो। थायरोमें बड़ा। कवोष्ण (स.ली.) कुत्सितं ईषत् उष्णम्, कर्मधा. कविवन्नम (म. पु.) काचादर्श वा काचनिर्णय | कोः कवादेशः। ईषत् उष्णस्पर्श, घोड़ी गर्मी। (नि.) नामक सा तिसंग्रहके रचयिता। इनका अपर नाम २वत् उणमयुख, कुछ गर्म। भादित्य रिथा) विखेखर प्राचार्य ने इन्हें शिक्षादीयो। "मत्परं दुर्लभ मचानूनमावलितं मया । कविध (वै. वि.) कवियोंको बढ़ानेवाला। पयः पूर्वः सनिवास: कवोपमपश्यते ।" (रधु १६६०) कविवेदी (स' नि.) कविं कविलं वेत्ति, कविविद्- कव्य (वै. वि. ) कवि यत्। (वसुषयस बोकवविशेमवर्चस- पिनि। १ काव्यवेत्ता, शायरी समझनेवाला। २ कवि, निदो बल सक्यानपूर्व नवस रमतयविष्ठ इत्ये तेभ्यहन्दसि खाय यत् । थायर। कामिका ।।४।३०) १सवकारी, तारीफ करनेवाला। कविथस्त (सं.वि.) कविधु शस्त: ख्यातः, ७-तत् । (सायण) (पु.) २ वेदोक्त पिसीक विशेष । कवियों में विख्यात, थायरोमें मथहर। "मातली सर्व यमी पहिरोमिः।" (ससहिता 1.1181) • कविशेखर (सं० पु.) १ - साधनमुखावची नामक संस्कृत ग्रन्यके प्रणेता। २ सङ्गीत तालविशेष । ३ चतुर्थ मन्वन्तरके महर्षियों में एक ऋषि । कवी (स. स्त्री०) कवि-डोष् । खलीन, लगाम । (को) कूयते हीयते पिटभ्यः यत् अनादिकम्, कवीठ (हिं. पु०) कपोष्ट, कैथा। बु-पच यत्। पची यन्। पा1३।१८। पिटलीक कवीन्द्र पाचार्य (सरखंती) कविचन्द्रोदय और पद विशेषक उद्देश्यले दिया जानेवाला अन्न। चन्द्रिका नामक संस्क त अन्यके रचयिता। कव्य पदार्थ श्रोत्रिय ब्रामणको दान न करनेसे कवीन्द्रनारायण (शर्मा) एवामचन्द्रिका और विरना- निष्फल हो जाता है। मनुसंहितामें लिखते हैं कि माहात्मा नामक संस्कृत ग्रन्थके रचयिता। इन्होंने विद्वान ब्राह्मणको कव्य खिलानेसे अनेक पुष्कल पाच उ दोनों ग्रन्य उत्कलराज अलावुकधरीके समयमें मिलते हैं। किन्तु प्रमन्चन बहु ब्राह्मणों को भोजन बनाये थे। करानेसे भी वह लाभ नहीं निकलता। दूसरे पमन्त्रन कवीय (सं.की.) कवि स्वार्थे छ । खलीन, लगाम । ब्राधण जितने पास लेता, पिटतोकके मुखमें उतने कवीयत् (स० वि०) कविरिव पाचरति, कविं ही उत्तप्त लोहे के गोले छोड़ देता है। . प्रतएव प्रथम स्तोतारं इच्छति वा,कवीय-थ। १ कविसदृश्य, शायरके ही परीक्षाके साथ ज्ञाननिष्ठ ब्राह्मणको कव्य भोजन बराबर। २ अपनी प्रशंसा इच्छुक, जो अपनी तारीफ कराना चाहिये।. वेदतत्त्वविद् ग्रामों में ज्ञाननिष्ठ, चाहता हो। तपोनिष्ठ, तपास्वाध्यायनिष्ठ और कर्मनिष्ठ भेदसे चार कवीयान् (सं० वि०) अयमनयोरतिथयेन कवि, श्रेणियां होती हैं। हव्यके भोजनमें चारो श्रेणियोंका कवि-यमुन् । दिवचनविभन्योपपदेतरवीयसमी। पाशा विधान है। किन्तु कव्यके भाजनमें एक मात्र प्रान- उभय कवियों में श्रेष्ठ, दोनों शायरोंमें बड़ा। निष्ठ ब्राह्मणको ही अधिकार है। कबुल, ज्योतिषका एक योग । "शाननिष्ठाः बिजाः केचित सपोनिष्ठातथापर।. कवेरा (हिं. पु०.) ग्रामीण, देहाती, गंवार। सपास्वाध्यायनिष्ठाय कर्मनिष्ठास्तथापरे।