पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२५५

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.. वाली भाग। 4 २५६ कव्यता कशाईफुलिया ज्ञाननिष्ठेघु कव्यानि प्रतिष्ठाप्यानि धवनः । हव्यानि तु यथान्यायं सर्वे वेव चतुष्वपि ।" (मनु १०), शेषः, कव्य वह अण। अग्नि, पितरों को कव्य पहुंचान.. ऐसे ब्राह्मणका प्रभाव होनेसे मातामह, मातुन, कव्यवाहन (वै० पु. ) कव्यं वहति, कव्य-वह बाट । भागिनेय, श्वशुर, गुरु, दौडिन, जामाता, बन्धु पुरो फव्यपुरोषपुरीष्येषु जुट। पा३ । २१ ६५1१ पग्नि, पितरों को हित वा यजमानको कव्य दे देना चाहिये। मनुके कव्य पहुंचानेवाली आग। . मतसे वेदन रहते भी निम्नीक ब्राह्मणको कव्य खिलाना "पग्रय कन्यवाहमाय स्वाहा।" (गक्ष यजुः२।२८) निषिद्ध है,-चिकित्सक, देवन्त, कन्याविक ता, दुकान दार, चौर्यादि दोषोंसे पतित. क्लीव, नास्तिक, जटाधारी, यजुर्वेदक मतमें अग्नि तीन प्रकारका होता है, दुबैल, प्रतारक, राजाके प्रश्थ, कुनख, यावदन्त, गुरुके हव्यवाहन, कव्यवाइन और सहरक्षा। देवगणका हव्यवाहन, पिगणका कव्यवाहन और असुरगणका प्रतिरोधा, अग्नित्यागी, राजयक्ष्मी, पशुपालक, महेषी अभिनेता, शूद्राणीपति, विधवाक गर्भजात, काने, कश (स'• पु० ) कशति शब्दायते ताईयति वा, कथ अग्नि सहरक्षा कहाता है। (नैनित्यस हिवा 11५1८14). वेतन ग्रहणपूर्वक अध्यापना करनेवाले, शूद्रके शिष्य, अच् । १ अवादिताड़िनी, चाबुक, कोड़ा। यह चर्म, दुष्टवादी, माता पिता एवं गुरुके अकारणपरित्यागी, वस्त्र, वैव प्रभृति द्वारा प्रस्तुत होता हैं। राहदाहक, विषदाता, कुण्डात्रभोजी, सोमविक्रता, “स राजा ने करीन प्रताडयत्।" (महाभारत श१८६ :) समुद्रयात्री,अविवाहित,अग्रजके वर्तमान रहते विवाह- कारी, जारज, बन्दी, तैलिक, कुटकारक, पितासे २ क्षुद्र पंश विशेष, एक छोटा जानवर। विवादकारी, मद्यप, पापरोगी, दाम्भिक, रसविक्रेता, कश (फा स्त्रो०) १ पाकर्षण, खींच। २ दम, फंक। धनु तथा शरनिर्माता, दिधिष्पति, मिवद्रोही, दात- कोल (फा• पु०) काल, खप्पर। इन्हें भिक्षुक कथक्कु (सं० यु.) गवेधुक, कसी, एक पौदा। वृत्ति, पुत्राचार्य, अपस्माररोगो, गण्डमालारोगी, खित्र- अपने हाथमें रखते हैं। रोगी, खल, उन्मत्त, अन्ध, वेदनिन्दक, ज्योतिषी, व्यवं सायी, पक्षिपोषक, युधशास्त्रके प्राचार्य, स्थपति, दूत, कशमकश (फा० स्त्री०) १ पाकर्षण, खींचाच । २ समारोंह, रेलपेन। ३ असमञ्जस, आगा पोछा । वृक्षारोपक कुक्क रकेसे कोड़ाशील, श्येनपचिजीयो, काशस् (सं० लो०) कशति नौचं गच्छति, कम- कन्यादूषक, हिंस, शूद्रवत्ति, गणयागकारी, आचार- होन, सपिजीवी, प्रलोपदरोगी, और सन्नननिन्दित । भसुन्। जल, नीचे रहनेवाला पानी। कव्यता (वै० स्त्री०) १ स्तुति, तारोफ। २ जान, समझा। कथा (सं० स्त्री०) कश टाम्। १ प्रवादिताडिनो, चाबुक, कोड़ा। “नधान कश्या मोहात वदा राचमवन्मु निम्।" काव्यवाड़, काव्यवाल देखो। कव्यवाल (सं० पु०) कव्यं बल्यते दीयते अौ, कव्य-वत्व (मारत ।। १७०१ १०) २ मांसरोहिणी, एक खु.शबूदार घन्। १ पिगविशेष। पेड़। ३ रच्नु, रस्सी। कशाई-१ नदी विशेष, एक दरया। यह बङ्गालके "कन्यवालो ऽनल: मोमो यमर्थ वार्यमा तथा । मेदिनीपुर जिलेमें प्रवाहित है। पढ़े लिखे लोग इसे अनिवाला बहिषदः सोमपाः पिवदेवताः" (ब्रमाणपुराण) कंशवतो कहते हैं। किन्तु कालिदासने अपने रघुवंशी २ अग्नि, पाग। अग्निमुखमें ही पिळगणके कपिशानदौके नाम से इसका परिचय दिया है। उद्देशसे दान किया जाता है। कव्यवाह (सं० पु०) कव्यं वइति, कव्य-वह खि। कमाईफुलिया-पश्चिम बङ्गालको एक बागदी जाति अम्नि, भाग। इसमें पिढगणके उद्देशसे कव्य डाला जाता है। कव्यवार (सं• पु. ) कव्यं वहति प्रापयति पितृनिति । को श्रेष्ठ बताते हैं। 1 यह कसाई नदीमें नौका चलाते और मत्स्य मार खाते हैं। चौदह प्रकारके बागदियों में कशाईफुसिया अपने-