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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२५७

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२५८ कशेरुक-कम्यप पौर मुस्ताक्षति सनुको चिचोड़ कहते हैं। दोनों हो जानेको हालत। २ मोह, कमबोरी। ३ पाप; प्रकारका कशेरु शीत, सधुर, सुवर (कषाय ), गुरु, गुनाह । (वि.) ४ मलिन, गन्दा। ५ दुराचार, पित्तशीणित दाहन्न और आंखको बीमारी दूर बदकाथ। ६ पापी, गुनाहगार। करनेवाला होता है। (भावप्रकाश) करमश (वै. ली.) वेदे पृषोदरादित्वात् सनमः। सिङ्गापुरका का बहुत बड़ा निकलता है। कपन देखो। कहीं कहीं इसे ठण्डाई में भी घोट कर पीते हैं। कश्मीर (म.पु.) कय-रन् मुड़ागमय । कम से। ३ भारतवर्षका एक विभाग। उप १३१६ काश्मीर जनपद। कालौर देखो। “भारतस्यास्य वर्षस्य मवमैदानियामय । कश्मोरल (म० की.) करमौर जायते, कमी-जन इन्द्रदीपः वय सायबयोगमतिमान् । ड। कुडुमविशेष, जाफरान, कैसर। दम देखो। नागदोपतथा सीग्यो गान्धर्व खथ वारुणः" (विषपुराण) कश्मीरजन्म (सं० की.) कश्मोरे जन्म यस्य, बहुव्री।। कशेरुक, को देखो। कुकुम, केसर। कशेरुका (सं० स्त्री०) कशेरुक-टाप् । १ पृष्ठास्थि. कश्मीरी (हिं० वि०) : कश्मीरसम्बन्धीय, कश्मीर के रीढ़, पीठको बड़ी हड्डी। २ कशेरु, कसैक। मुतालिक । (स्त्री०) २ कश्मीर देशको भाषा या कोकमान् (सं० पु.) यवनराजविशेष, एक राजा। बोची। ३ लेह वियेष, एक चटनी। पादवको होड “इन्द्रावो इतः कोपाह यवनर फशे रुमान्।" (हरिवंश १५०) तुद्र क्षुद्र खण्ड करते हैं। फिर उनमें पीस कर मरिच, ३ भारतवर्षका एक खण्ड। कोल, कश्मीरज (केसर), ऐला, जावित्री, सौंफ कशेरुम् (स'लो०) कशेरु, कसेरू। और जौरक पीसकर मिलाना पड़ता है। पन्तको करु (स० स्त्री०) काम-उ एरड चान्सादेशः। लवण, सिरका और थर्करा डालनेसे कश्मोरो-चटनी १ढणकन्दविशेष, कसेरू। २ विश्वकर्माको चतुर्दशी तैयार हो जाती हैं। (यु.) ४ कश्मीर देशका कन्या। नरकासुरने हस्तिरूपसे इन्हें हरण किया था। अधिवासी यानी रहनेवाला । ५ कामोरका शव (हरिव'ग, ११.) यानी घोड़ा। कशवक, करदेखो। काश्य (मं• यु.की.) कयां भईति, कशाय । कशेक्षका, कशेर देखो। दणादिभ्यो यः। पा III अख, घोड़ा। २ प्रमा कथोक ( स० वि०) कश ताडने बाहुसकात् प्रोक। का मध्यदेश, धोड़ेका पुटा । ३ मद्य, धराब। (वि.) १ हिंसक, मार डालनेवाला। (पु.)२ राक्षसादि, कथाघातके योग्य, कोड़ा खान वायक। शैतान वगैरह। कश्यप (सं० पु०) कश्यं सोमरमादित्रनितं मई कथन (२० अध्य०) किम्-चन ति मुग्धबोधः । पिबति, कश्य-प-क। १ कोई ऋषिप्रयाक मानस- कोई, एक न एक यह पनिर्दिष्टवाचक है। पाणिनिने पुत्र मरीचिके पौरस और कलाके गर्भसे इनका जन्म इसे पृथक शब्द माना है। हुवा था। मार्कण्डेयपुराणके मतानुसार कम्य अर्थात् कश्चित् (सं० भव्य) किम-चित् इति मुन्धबोधः । सोमरसके मद्यसे इनकी उत्पत्ति है, उससे कश्मय कोई, एक न एक। यह प्रनिर्दिष्टवाचक है। पाधि- नाम पड़ गया। निके मतमें 'कचित् शब्द पृथक् ठहरता है। "ब्रममयो योऽस्तु मरोचिरिति विश्वः। "कषित बालाविरहनुरुषा खाधिकारप्रमचः।" (मेघदूत) कक्षपसच पुवो ऽभूत समपानात सवयः।" (मायपुरा 1) कमती, किम तो देखो। पल यजुर्वेद प्रकृति वैदिक संहितावोंके मतमें कमल (सको) कय कल-मुट्। इटियमिकीवियः प्रत्ययस्य सुट् । एन्। १.८। १ मूळ, गा, एकाएक बेहोश हिरण्यगर्भ ब्रझमे कनपने जस लिया था।