पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कश्यपनन्दन-कषाय

२५

"हिरस्वर्णः सत्यः यावा यासु भातः कपो याविन्दः। की हेरोदोतसने 'कम्मतुरस' और टलेमिने 'कशपोरा' .(वैत्तिरीयसरिता ५६१) लिखा है। कश्यप एक प्रजापति थे। साम, यजुः पौर कश्यपसंहिता (सं० स्त्री०) कश्यपस्य संहिता, इ-तत् । “अथर्वसंहितामें इन्हें इन्द्र चन्द्र प्रमृति देवों में एक कापप्रणीत एक धर्मशास्त्र । माना है। ( साम ARIAL, गलयजुः ३६६२, अथर्व १६३०)कश्यपष्मृति, कश्यप सहिता देखो। कात्यायनने अपनी वेदानुक्रमणिकाम लिखा है कप (सं०.पु.) कषति पत्र पनेन वा, कष-अच् यक्षा- कि कश्यप ऋक्संहितावाले कई सूतोंकि ऋषि थे। कषध निपातनात् साधुः । गौचरसचरवहनजव्यज्ञापशानि- श्रीमदभागवतमें देखते हैं कि कश्यप ऋषिने इसकी १७ गमाय । पा श०११८॥ १ कष्टप्रस्तर, कसौटी। इसपर कन्यावोंसे विवाह किया। उनके गर्भसे १७ जातियाँ खर्ण राय घिसकर नाचते हैं। कषका संस्कृत पर्याय- उत्पन हुयौं,-१ अदितिसे देव, २ दितिसे टैत्य, भान और निकस है। २ घर्षण, घिसावः। (त्रि.) ३ दतुसे दानव, . ४ काष्ठासे पवादि, ५ परिष्ठासे घर्षण करनेवाला, जो घिसता या रगड़ता हो। गन्धर्व, सुरसासे गवस, ७ इन्चासे वृष, ८ मुनिसे कषम (सं.वि.) कथ्यते विखाधत, कष कर्मणि अप्सरायें, क्रोधवधासे सर्प, १. ताम्रासे श्येन रन युट्। १ अपक्क, कच्चा। (पु.) कषति पत्र। 'प्रसूति, ११ सुरभिसे गोमहिषादि, १२ सम्यमे खापद, २ कष्टिमस्तर, कसौटो। (को०) भावे ल्युट । १३ तिमिसे जन्नजन्तु, १४ विनतासे गरुड़, एवं परुण, ३ घर्षण, खुजलाहट, रगड़। १५ कट्ठसे नर, २६ पतलीसे पतन और १६ यामिनिसे "कपएकम्पनिरशमशानिमिः पविमस्तमवजनिः" (भारयि ३०) शक्षभ । किन्तु महाभारत और अन्यान्य पुराण प्रभृति कषपाषाण (सं० पु०) कषचासो पाषाणये ति, कर्मधा। में कश्यपको बयोदश भार्यायें लिखी हैं। मार्कण्डेय- अर्थ मणि, कसौटी। . -पुराणके मतसे उनके नाम थे,-१ पदिति, २ दिति, कषा (. स्त्री. ) कथ्यते ताधते पनया, कप बाहुल- ३ दनु, ४ विनता, ५ खसा, ६ कट्ठ, ७ मुनि, ८ क्रोधा, कात् करणे अप-टाप् । कथा, चाबुक । परिष्ठा,१० इरा,११ ताना,१२ इला और १३ प्रधा। कषाघात (सं० पु०) कथाका पाघात, चावुकको मार, (मार्कशेयपुराण १०००) उधड़े। पश्यतीति पश्यः, सर्वधः पश्य एव पश्यकः प्राय- कवाक (सं• पु.) कष-पाकु। १ सूर्य, पाता। म्ताक्षरविपर्ययात् सिध्यति यहा कश्यं प्रज्ञानं प्रविद्या- २ अग्नि, पातिय, पाग। 'मित्यर्थः पिबति नाशयति अथवा कश्यं विधानधनं कषापुन ( स० पु.) निकषामज, एक राक्षस । पाति रक्षति खामनीति शेषः। २ परवधा। कषाय (सं-पु.ली.) कषति कण्डम, कप-प्राय । १ रसविशेष,कसैलापन। इसका संस्कृत पर्याय-तुबर, "तदैव प्रधा या पाया पतस्य पाना हर्वा प्रजानां गोधा वायह कथ्यपौष योयमभानमोसा गान्धवि।" (चापनिथ ति ११) कवर पौर तूबर है। सुश्तके मतानुसार प्रास्वादनसे मुखको सुखाने, जिहाको ठहराने, कण्ठकों वह ३ कच्छप, कछुवा। ४ मृगविशेष, एक हिरन । वनाने और हृद्यको खुरच पीड़ा पहुंचानेवाचा रस ५ मत्स्यविशेष, एक मछली। (वि०) यावदन्त, कषाय.कहाता हैं। पृथिवी वायुगुणयहुल होने से यह • बड़दन्ता। उपनता हैं। पूगफल प्रादि खानेसे इसका पाखादं कश्यपनन्दन (सं.पु.) कश्यपस्यनन्दनः पुनः-तत् । मिलता है। कषाय रस मलंग्राहक, व्रणरोपक, १ कश्यपके पुत्र गरुड़। २ देव, प्रमुर प्रादि। स्तम्भन, योधन, लेखन, थोषक, पौड़ादायक, केयं. साम्यपपुर (सं.सी.) कश्यपस्य -पुरम, सत् । नायक और वायुवधक है। इसके अतिरिख व्यव. बर्तमान काझीरका यह नाम रखा था। कम्यपपुरको हारसे पोहा, मुखयोष, उदरामान, वाक्यंग (वात