पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२६०

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कषायपाण-का कषीका २६१ इसका संस्थत पर्याय-यास, यवसा, दुष्पर्श, धन्वयास, जिन सकल काथोंमें जलका परिमाण नहीं लिखते, उनमें पाट् द्रव्य रइनेसे मष्ट गुण और शुष्क द्रव्य दुराचमा, समुद्रान्ता, रोदिनी, गान्धारी, कच्छुरा, रहनेसे षोड़श गुण जलसे सिद्ध कर चतुर्थांश अवशिष्ट अनन्ता, हरविग्रहा और दुरभिग्रहा है। भावप्रकाशके रखते हैं। मतमें यह मधुर, तिता एवं कषायरम, मारक, शीतल, कषायपाय (स'. पु.) कषायः पानं यस्य, बडुवी. लघु और कफ, मेद, मत्तता, श्रम, पित्त, रत, कुष्ठ, गत्वम्। पानन्दे शे । पासा गान्धार जाति। कास, तृष्णा, विसर्प, वातरक्त, वमि तथा ज्वरनाशक कषाय प्रामृत-एक जैन शास्त्र । इसमें नीवको संसार है। दुरालाभा दिखी। में भ्रमण करानेबाली कषायों का वर्णन है। कषायान्वित ( स० वि०) कषाय रसविशिष्ट, कसैला। कषायफल (सं० ली० ) पूगफल, सुपारी। कषायित (स.नि.) कषायः रक्षपीतादिवर्ग: सजातो कषाय मार्गणा जैन शास्त्र में संसारी जीवोंकी विशेष ऽस्य, कषाय-इतच् । १ रतादि वर्णवत,लाल रंगा हुवा। अवस्था बतलानेके लिये १४ मागंणा लिखी है। "अमुव कषायितनी सुभगेन मियगावमसा।" (कुमारसम्भव ५३४) उनमें की एक मार्गया। कषायो (सं० पु.) कषायो विद्यते ऽस्य, कषाय- कषाययावनाल ( पु०) कषायः रसबर्णः यावनालः, पनि।१ शालवृक्ष २ लकुचक्ष, लुकाटका पेड़। कर्मधा। तुवर घावनाल धान्य, कसैलो जुवार । ३ खजूरी वृक्ष, खजूरका पेड़ । ४ सजवक्ष,नेकापेड़। कषाययोनि (स. स्त्री० ) कषायाधिकरण, कसैलेपनको ५ शाकवृक्ष, सागौनका पेड़। ६ क्षुद्रपनस, छोटा बुनयाद । यह पांच प्रकारको होती है,-मधुर कषाय, कटहल। (वि.) ७ कषायविशिष्ट, गोंददार । कटुकषाय, तितकषाय और कषायकषाय। (चरक) ८ कषायान्वित, कसैला। 4. संसारासत, दुनियाको स.पु.) रसविशेष, एक जायका। बातों में उलझा हुवा। कवाय देखो। कषायोक्त (स० वि०) प्रकषायः कषायः कृतः, कषायवर्ग (स'• पु० ) कवायाणां कषायरसयुद्धद्रव्याणां कषाय-चि-च-ना। कषायवर्ण हुआ, जो सुखं किया वर्गः समूह, ६ तत्। कषायरस द्रव्यगुण, कसैली गया हो। चौनोका जखीरा। त्रिफला, शनको, जम्बू, प्राम, कषायीकृतलोचन ( स० वि०) कषायवर्ण चच, बनाये वकुल, तिन्दुकफन्त, न्यग्रोध आदि, अम्बष्ठादि, प्रियङ्ग, पादि, शोधादि, शालसारादि, कतकशाक, पाषाण- हुवा, जो आंखें लाल कर चुका हो। भेदक, वनस्पतिफन, कुरवक, कोविदारक, जीवन्ती, कषायीभूत (सं० वि०) बेकंषायः कषायो भूतः, कंषाय- चिली. पक्षी, सुनिषस आदि, नौवारकादि और मुग चिभू-त । रखा वर्ण बना हुवा, जो लाल पड़ पादि द्रव्य कषायवर्गम पड़ते हैं। (मत्रत ) गया हो। कषायवासिक (म. पु. ) सुश्तोक कीट विशेष, कषि ( स० वि० ) कषति हिनस्ति, कषाद । एक नहरोला कीड़ा। यह कीट सौम्य होनेसे श्लेष्म खनिकविचसिसि इत्यादि । उप १२६॥ हिंसक, नुकसान प्रकोपक है। इसका मूल विषात निकलता है। पहुंचानेवाला। कषायवृक्ष (संपु०) बटामनकादि कषायत्वक् फल वृक्ष, कषिका (स' स्त्री पक्षिजाति, कोई चिडिया। वरगद पांवला वगैरह कसैली छालके फलवाला वृक्ष। कषित (स० वि०) कप-त। परीचित, कसा हुवा, कषायस्कन्ध (सं० पु.) प्रियङ्ग, भादि कषाय व्यक्त जो चोट खा चुका हो। भास्थापन विशेष, एक कसैली दवा। कषौका (सं. स्त्री०) कषति, कष-ईकन-टाम् । कषाया (स. स्त्री०) कष-पाय-टाप् । १ क्षुद्र दुरा पिषिभ्यामौकन् । सप१ पधि जाति, चिड़िया! THI, ETET Sargti (Small sort of Hedysaruma) कषत्वमया। २खन्ता। Vol. IV. कषायरस 66