पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२६९

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२७० कस्तू रौ । पकड़ सकते ; वह इसका नाभि काट लेते और अधिक धूपसञ्चारी, मिश्रा और गन्धपियाचिका है। कस्तू री- मूल्य पर व्यवसायियोके हाथ वैच देते हैं। मुगके नामि (एक छोटी थैलौके पाकारमें) रहता है। कस्तू रिकामृगका नाभि ( musk-bag) कबूतरके उसौमें कस्त री उत्पन्न होती है। इससे लोग इसे छोटे अण्डेकी भांति होता है। प्राकार ककसे मृगनाभि (नाफा) कहते हैं। अरबी और फारसी मिलता है। प्रसिद्ध चमणकारी टाभाणिभारने ७६७२ मुश्क, वंगला, तामिल तथा तेन्नगु कस्तर,यव एवंमलय- नाभि संग्रह किये थे। में दिदेश, सिंहली सत्ता, ब्रह्मी दो, चीना शियित यह पर्वतजात सामान्य तृण खा जीवन धारण 'रूसी मुस्कस, इटान्तीय मुसचिमो, जमन विसम्, पोत- करता है। चारो पर अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं। दूरसे गोज़ अल मिस्कार, पोलन्दाज मस्क, डेनमार्की दिसमेर, जङ्घादिका भेद समझ नहीं पड़ता। इसीसे लोग फरासीसी मस्क और अंगरली नाम मास्क हैं। मृग- कहते, कि कस्तू रिकामगके घटने नहीं रहते। नाभि कुछ उग्र होती है। पाखाद कट लगता है। भारत महासागरीय होमि इसकी भांति दूसरे मुखमें कस्त री डालनेसे विपुल सद्गन्ध निकलता है। भी कितने ही क्षुद्र पशु है। किन्तु उनके नाभिसे प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में भूरि भूरि प्रमाण मिलता कस्तरी नहीं निकलती। सुमात्रा तथा यवदीपमें कि भारतवर्ष वहु पूर्वकालसे मृगनाभिका पादर उक्त क्षुद्र मधंहस्तपरिमित हिरणको कहीं 'सेबोटन' है। प्राचीन वैद्यक मतसे कामरूप, नेपास पौर और कहीं न कहते हैं। अंगरेजी वैज्ञानिक नाम काश्मीर तीन देशों में कस्तुरी उत्पन्न होती है। काम- ट्रागुलम् नवनिकस (Tragulas Javanicus ) है। रूपको कस्तरी सर्वोत्कृष्ट और कृष्णवर्ण रहती है। फिर नेपालको मध्यम एवं नीलवर्ण और काश्मीरको कस्त री पधम तथा कपिचवणं ठहरती है। यह पांच श्रेणियोंम विभक्त है-खरिका, तिलका, कुलत्या, पित्ता और नायिका । (भावप्रकाथ) राजवल्लभक मतसे कस्त री सुगन्धि, तित, चक्षुके लिये हितकर, और सुखरोग, किलास, कफ, दोर्गन्ध्य, बन्ध्यदोष, अलक्ष्मी, मल, रक्तपित्त तथा छर्दिनाशक है। दूसरे भावप्रकाशमें इसे कटु, चार, उष्ण, शक्रजनक, गुरु कक्षरी मृगसदृश हरिण। पौर शीत तथा शोषनाशक भी कहा है। यह यवहीप-वासियोको अत्यन्त प्रिय लगता और पहले युरोपके लोग कस्त रोका विषय समझते न पालनेसे बहुत हिलता है। थे। ई०८म शताब्दको परबी इसे युरोप्र ले गये। कस्तूरी (सं० स्त्री०) कसति गन्धो ऽस्याः, कस्-जर- अरबी और ईरानी कस्त रोको मुशक कहते हैं। इसी तुट-डीप पृषोदरादित्वात् साधुः । सुगन्धि द्रव्य विशेष,' 'मुश्क से लाटिन मुस्कस (Muschus) और अंगरजी मुश्क, एक खुशबूदार चौज । का रिका मृग देखो। मास्क (Musk) शब्द निकला है। इसका संस्कृत पर्याय - मृगनाभि, मृगमद, मृग, मगो, युरोपीय चिकित्सक मतसे यह सत्तेजक और नाभि, मद, वातामीद, योननगन्धिका, मदनी, गन्ध अक्षिपजनक है। खासकाश (१०मे १५ ग्रेन), कास कैलिका, वेधमुख्या, मार्जारी, सुभगा, बहुगन्धदा, (. ग्रेन दिनको १४ वार), मृगोरोग, तारहवरोग, सहसवेधी, श्खामा, कामान्धा, मगाङ्गजा, कुरङ्गनाभि, धनुष्टङ्कार, स्त्रियों के प्रसवकाशीन माक्षेप, शिष्टिरिया, मोहकर एवं तान्त्रिक ज्वर (Pneumonia), फुस्फुस्के ललिता, श्यामला, मोदिनी, कस्तू रिका, कस्तुरिका, नाभी, लता, योजनगन्धा,मार्ग, गन्धबोधिका, कालानी, प्रदाह (२४.३० ग्रेन) और वातरोगमें बसू रो विशेष