पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२८६ काक यह रहता, अन्यत्र देख नहीं पड़ता। इसका प्रम- देशोय नाम 'किगियान' है। वैदेशिक पाकुनशास्त्र । . रेजी शाकुनशास्त्र में 'करवस् कोरोन' (C.Corune ) करते हैं। (ग) काश्मीर में दूसरी तरहका एक काक होता 'करवस् इनसोलेन्स (C.insolens ) लिखते हैं। है। यह परिमाणमें गलित मांसभुक्से क्षुद्र लगता ५'चोटियाना कौवा-इसके मस्तकपर काका- है। गात्रका वर्ण अन्धकारको भांति काला रहता है। तुवाको भौति चोटी रहती है। मस्तक, स्तन, गरदेश, यह अतिद्रुत उड़ सकता है। चौलसे इसका विषम बक्षःस्थलका अध्र्वभाग, पक्ष, पुच्छ और उन चिक्कप विवाद है। यह भी गलित मांस खाता है। काश्मीर, देखते हैं। भवशिष्ट पालक गङ्गाको बालू जैसे शिमला, और दुगसायो उपत्यकामें इसे देखते हैं। यह धसर होते हैं। जपरी पालक कृष्णवर्ण और नीचेवाले पार्वतीय काफ (पहाड़ी कौवा) नामसे विख्यात है। पाटन नगते हैं। पैर, कण्ठ और उंगलीका रंग अंगरेजी शाकुनशास्त्र में इसे डांक काक और ग्राम्य काला रहता है। देध्य १८ इश्व है। पुच्छ साढ़े काक मध्यवर्ती काक 'करवस् इण्टरमेडियस्' (0. सात, पक्ष साढ़े बारह, पदको खूटी दो पौर चञ्च का intermedius) कहते हैं। दैध्य दो इश्च है । साधारण अंगरेजीमें इसे 'इडेड क्रो' (घ) सूक्ष्मचच्चु--मात्र नौलमिश्रित कृष्णवर्ण ( Hooded Crow) कहते हैं। अंगरेजो शाकुन- होता हैं। मस्तक, स्कन्ध, पृष्ठ, उदर और चक्षुका शास्त्रसम्मत नाम 'करवम् कारनिक्स (O.Cornix ) वर्ण अपेक्षाक्त तरल रहता है। कपाल गाढ़ कृष्णवर्ण है। इसकी तीन श्रेणियां होती हैं। भाक्कसिका प्रभेद लगता है। इसका देयं १८ इञ्च है। पच साढ़े स्पष्ट देख पड़ता है। एक दूसरे को सहज में ही पह- बारह, पुच्छ सात, चच्चपुट ढाई इञ्च दीर्घ वैठता है। चान सकते हैं। सच्चा चोटियाला कौवा (True किन्तु चच्च पुट पौन इञ्चसे ज्यादा मोटा नहीं होता। Corvus Cornix ) पारस्योपसागरकै उपकूलसे अंगरेजी शाकुनशास्त्र में इसका नाम 'करवस टेनु पश्चिम युरोप पर्यन्त मिलता है। क्वष्णवर्ण पक्षको इरोसटिस्' रखा है। छोड़ इसके दूसरे पालक पांशुल धूसर होते हैं। एक एतद्भिव चीनदेशीय 'करवर पैकटोरालिस' (C. जातीय 'करवस कैपेलेनास' (O Capellanus) पारस्थ. pectoralis) और यवहीप करवस एक्षा' (C.enca) उपसागरके उपकूल और मेसोपोटेमिया प्रदेश में रहता भी डांडकाक जातीय हैं। यवद्वीपका 'करवस एड्वा' हैं। इसके पर सफेद और कलम झाले होते हैं। सूक्ष्मचञ्च काकसे मिलता, किन्तु क्षुद्रकाय रहता है। पाक्षार वर्णादिको बात पहले ही बता चुके हैं। प्रीत चीन देशीय 'पेकटोरालिस' भारतीय डॉडकासको कालमें यह पन्नावके उत्तरपश्चिम कोण, हजारा प्रदेश जातीय होता है। और गिलगिट प्रान्तमें देख पड़ता है। इसका स्वभा. ब्रह्मदेशीय ग्राम्यकाक-इसका कपाल, मस्तक, वादि मांसभुक् काशकी भांति होता है। किन्तु यह पिवुक और कण्ठ चिक्कण कण होता है। स्कन्ध शस्य मिलनेको आभास इसे दल बांध मैदानमें घूमना भारतवर्ष में न तो यह घोसना बनाता (धाड़) और चक्षुपाखे तरल पिङ्गलवर्ण रहता है। कर्णावरक और निम्न देशके पालक पिङ्गयाम मिश्रित और न अण्डे ही देता है। सावरियामै चोटियाना कष्णवर्ण देख पड़ते है। पक्ष, पुच्छ और अवशिष्ट गलित मांसभुकों के साथ सहवासादि रख सन्तान

पालक चिक्कण कृष्णवर्ण सगते हैं। इसके अष्णवर्ण उत्पादन करता है। यह वर्षसम का इस देवी

देख नहीं पड़ता। पालकोंसे मयूरकण्ठकी भांति नौल और हरिहण- ६ काश्मीर प्रदेश, यतिम एशिया और युरोपमें मिश्रित आमा निकलती है। जमाव बिलकुल भारतीय ग्राम्य काकसे मिलता है। समस्त ब्रह्मदेशसे दक्षिण सरगुई और पश्चिम भासामसे मणिपुरक पूर्वाञ्चल तक. पड़ता है एक प्रकारका कौडियाला कौवा होता है। अंगरेजी शाकुनधास्त्रके मत यह मिव श्रेणीभुत है। इसके