पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२८६

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२८७ काक सब अवयवों का धर्ण काखा रहता है। मस्तक, चतुझा पाकार भी काकातूवैसे मिलता है। इसे स्कन्ध, और निम्न देशकै पालकों में नीलवर्ण की चिक्क सफेद कौवा कहते हैं। णता तथा पाटनको पाभा झलकती है। परिमाण काकके सम्बन्ध में कई प्रवाद सुन पड़ते हैं। उनमें दण्डकाकसे मिलता है। इतर विशेष सामान्य है। कुछ नौदै लिखे जाते हैं,- अंगरेजोम से कई ( Book) कहते हैं। शाकुन (१) कौवे दो पांखसे देख नहीं सकते। कारण शास्त्रका वैज्ञानिक नाम 'करवस् गिलेगस' एक दिन राम और सौता उभय वनमें घूमते थे। इन्द्रक (C. Frugilegus) है। पांच मास बीतते हो इसके पुत्र जयन्त सीताका रुप देख मोहित हुये और काक- शावकको नासाका लोम ( Nasal bristles) गिर रूपसे उनका वक्षोवसन खींच ले गये। नखाघात लगते जाता है। फिर दो मास पीछे मुखके सम्मुख भाग सौताके स्तनसे रक्त गिरा था। रामने यह देख वाण पर्थात् चके मूलमें विलकुल पालक नहीं रहते। छोड़ा। वह काक चक्षुमें जाकर लगा था। उसो यह भारतवर्ष में कहां रहता या सन्तानोत्पादन करता दिन कौवों की एक भांख फूटी है। है। इसे शस्यभोजी देखते हैं। यह चुगनेके लिये (२) किसी रहस्यके मकानपर बैठ एक काकके -दलदल मैदानमें घूमता और नदीयोत तथा जलाशयमें दूसरेका गान काट निकालते या मस्तकस्थित पालक कोटादि ढूंदता है। संवारते सधवापुत्रसम्भाविता वधू वा कन्याके देख ७। काश्मीरमें भी एक क्षुद्राकार दण्डकाक होता पानेसे उसी मासके ऋतुस्नान पीछे उस वधू वा कन्या है। इसे क्षुद्रचञ्चु दण्डयाक कहते हैं। मस्तक तथा • गभिपी हो जाती है। कपान चिक्कश छष्णवर्ण और स्कन्ध गाद धूसरवर्ण (३) काकका पालक छुनेसे पूर्वधर्म विनष्ट होता रहता है। मस्तसका पाखं एवं गलदेश तरक्ष धूसर. है। बहुत लोग इसी विश्वास पर पर छूकर सवस्त्र वर्ण होता है। प्रायः प्राधे गलदेशमें सफेद धारियां नहा डालते हैं। पड़ जाती हैं। स्तरका पालक और पुच्छ सुचिकण (४) फाक सिवा झड़के दूसरे समय नहीं मरता । नौखाम कृष्णवर्ण लगता है। परका कलम भूरा होता (५) काक जब सवेरे उठ बोचता पौर उड़ता है। गलदेशका निम्नमाग कृष्णवर्थ रहता है। अन्यान्य किन्तु पाहार ग्रहण नहीं करता, तब शुभ उद्देशसे पालक भी खेटको भांति वर्णविशिष्ट देख पड़ते हैं। चलनेपर मङ्गल रहता है। दीर्घता १३ इञ्च है। पुच्छ साढ़े पांच, पक्ष नो, पैरको (६) पक्षियोंमें जाक चण्डाचजातीय है। यह खूटी डेढ़ बार चौच डेढ़ इच्च है। अंगरेजीमें इसे शवका देव परिष्कार करता है। 'जाकड' (Jackdaw ) कहते हैं। थाकुनशास्त्र के (७) काकका मांस तित रहता और किसी पशु- अनुसार वैज्ञानिक, नाम 'करवस मोनेडुम्ला' (C पक्षीके खाद्यमें नहीं लगता। स्वार्थपरताको तुचनामें .monedula ) है। भारतके मध्य काश्मीर और उत्तर कहा जाता है काक सबका मांस खाता, किन्तु उस्का पक्षावम यह देख पड़ता है। शीतकालमें अस्वाया मांस किसी काम नहीं पाता। काकरिव देखो। प्रदेशस्थ पर्वतके निकट भी इसे पाते हैं। काश्मीर में मदनपालके मतसे इसका मांस लघु, अग्निदीपक, यह पुरातन अट्टालिकायों. और इक्षोंपर घोसला वृहण, बलकारक, प्रायु एवं चक्षुके लिये हितकर लगा रहता है। इसका अण्डा ४से ६ इञ्चतक दीर्घ और चत तथा क्षयरोगनाशक है। ५ एक कपईकका चतुर्थांश । ६ दोपविशेष, एक खेतकाक-काककी भांति अविकाल चाकारका टापू। ७ तिलकविशेष। ८.शिरोऽवचालन। (त्रि.) एक यच्ची है। इसका समस्त मस्तक काकातूवाकी कुत्सित.भावसे गमनकारी, खराव तौर पर चलने- भांति सफेद रहता है। पदद्दय, चक्षु एवं चक्षु एवं वाजा। १. अतिदुष्ट, बड़ा बदमाश। 1 होता है।