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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२९०

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२९ कांकचरित्र 'दिक उक्त प्रकारसे ही शब्दं करने पर कुछ कार्य बनते हो शब्द करनेसे कलह है। दक्षिण दिक्में बोच और कुछ बिगड़ते भी हैं। पृष्ठदेशको मधुर स्वरसे चन्नते, सम्म खसे पा पड़ते अथवा पयाद दिक् शब्द बोलते बोलते पहुंचनेयर मङ्गल होता है। शब्द करते सुनाते सुनाते विपरीत भावसे गमन करते .रतपात करते भागे पाने, प'चकर हर्ष देखाने अथवा पद होता है । वाम और दक्षिण क्रमसे उभय दिक हारा मत्या खुजलानेसे अभिष्ट सिंह होता है। हाथी शब्द करनेपर अनर्थ रहता है। वाम दिक्की विप- बांधनके खेटे पर बैठ कर हाथी बोलनेसे हाथी मिलता रोत भावसे नानपर विघ्न पड़ता है। पथात् दिक्से और हाथीपर राजन भी चलता है। प्रवके बन्धन वालते दक्षिण और गमन करनेपर रखपात होता है। स्तम्भ पर बैठकर पुकारनेसे वाइन एवं भूमिका नाम लतादि ले प्रदक्षिण लगानेपर सभय रहता है। होता है। ध्वजसे विजय, कूपसे नष्ट वस्तु एवं जयका गापुच्छ और वल्मीक पर बैठ वालनेसे सर्पदर्शन होता लाभ, नदीतीरसे कार्य सिद्धि, पूर्ण घटसे धनलाभ, है। अङ्गार, चिता और अस्थिपर अवस्थानकर शब्द प्रासादसे धान्य राशि और इम्यपृष्ठ एवं शस्थतपपूर्ण निकालनेसे मृत्यु पाती है। कर चर्वण कर वाचनेसे भूमिपर अवस्थित हो बोलनेसे धनलाभ है। फिर हानि और पीडा है। पृष्ठदेशको निष्ठुर शब्द करनेसे युग्म शब्द निकालनेसे भी धन मिल जाता है। पृष्ठदेश मृत्यु होती है। शून्यमुख फैलाये रहनेसे अमङ्गल वा सम्म खको गोमय अथवा वटादि वृक्ष पर बैठ कर लगता है। पराङ्मुख होते रत्नपात वा वन्धन होता विष्ठामुख बोलनेसे अभिलषित भोजन पान लाम होता । परस्पर लड़नेसे वध है। पराङ्मुख हो शुष्क है। फिर मुखमें अन्नादि, विष्ठा, फल, मूल, पुष्प वा वृक्ष पर रहने से रोग लगता है। तिल दक्ष पर प्रव- मत्स्य देख पड़ते भी मिष्टान्न भोजन पाते हैं। नारी- स्थानं क्षरनेसे कलह और कार्यनाश होता है। कण्टक- शिरस्थ पूर्ण घट पर चढ़ कर पुकारनसे स्त्री एवं धन युक्त वृक्ष पर पक्ष इय कंपा रुच शब्द करने पर मृत्यु लाभ । शय्यापर बैठ कर बोलनेसे सुजन समागम पाती है। भग्न शाखापर रहनेसे वध है लता- होता है। सामने गोपृष्ठ, वृक्ष, दूर्वा वा गोमय पर वेष्टित स्थान पर अवस्थित होते बन्धन पड़ता है। चक्षु रगड़ते अथवा अन्यको आहार प्रदान करते कण्टकयुक्त रम्य वृक्षपर बैठते कलह कार्य सिद्धि हैं। देखनेसे विचित्र भोज्य मिलता है। धान्य, यव, दधि पाच्छन्न इक्षपर रहनेसे रक्तपात होता है। विद्या, वाहत देख बोल उठनेसे धन पाते हैं। मुखमें हरि-भावजना, मृत्तिका, ण, काष्ठ, कूप और भस्मादि सन्मुख पानसे लाभ रहता ह। मनोरम पर बैठनेसे कार्य बिगड़ जाता है। काकके मुख में भर, पत्र, पुष्प, फल तथा कायायु वृषपर शब्द लता, रज्ज, केश, शुष्क काठ, चम, अस्थि, जीर्णवस्त्र करनेसे कार्यसिद्धि होती है। वृषके शिखरदेशमें वल्कल, अङ्गार तथा रक्षोपल आदि देखनसे पुण्यचय, प्रशान्त भावसे शब्द करने पर स्वीसङ्ग गठता है। पाप समागम, पथ एवं प्रालयमें महत्भय, रोग, धान्यादि राशिपर रख लगानसे पन्नलाभ है। गोपृष्ठ बन्धन, वध और सर्वधनापहरण प्रभृति होता है। पर बैठकर बोलनेसे गो एवं स्त्रीको पाते हैं। हस्ति मुखको अपर उठा चञ्चल पक्षसे कर्कश शब्द निकाल. शिशुक पृष्ठपर शब्द करनेसे मङ्गल होने लगता है। नेसे मृत्य पाता है। एक पैर सिकोड़ और सूर्यको इसी प्रकार गर्दभक पृष्ठसे शन्न भय तथा वध, शूकरके ओर मुख मोड़ दोष स्वरसे बोलने अथवा काठादि पृष्ठसे वध, धन पायुक्त शूकरके धन लाभ, महिषके फोड़नेपर युद्धादिमें अनर्थ रहता है। चञ्चु से पुच्छदेश पृष्ठमे सद्योन्दर, मृतके शरीरसे मृत्य, शून्यकलससे कार्यचति और काष्ठ पर अवस्थित हो शब्द करनेसे खुजला शब्द करने पर मृत्यु होती है। एक पैरसे बैठते वन्धन है। मस्तक पर विष्ठा वा गोमय डाल कलह है। दक्षिण दिकमें बोच चरते, सम्मु खसे "देनेसे यात्राकारौ वन्धनमें पड़ता है। अस्थि फेंकने मृत्यु, शून्यकलससे कार्य शनि और काष्ठपर अवस्थित 'मृत्य होती है। कुछ दिक बोलनेसे स्त्रीदोष लगता । -