पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३०७

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३०८ कागज समूचक प्रमाण रघुनन्दनके 'ज्योतिस्तत्व में देखने में कर लेख्यरूप में व्यवहत होतो यो। रोमनगरमें ऐसे पाया है, सीमा पर खुदी हुई एक पुस्तक मिची है। उसका "पान्मासिके तु संप्राप्त वांति: संजायते यतः। पाकार ४ इन्च लम्बा और ३ इन्च चौड़ा है। यह धानाचराणि सटानि पक्षाढ़ान्यतः पुरा" प्राचीन मिसरीय अस्पष्ट अचरोंमें लिखित है। अर्थात् छह मास वीतने पर भ्रम उपस्थित होते (घ) पोतनपादि-रोमनगरम साधारण प्रवर देख विधाताने पूर्व कालमें पचरको सृष्टि की और वे आदिका फसाफन उस समय पीतल आदिमें खोदा पत्र पर लिखे गये। छह मासके बाद अधिकांश जाता था। प्राचीन रोमीय सैनिकाय युद्धक्षेत्र में वातीमें ही भूल हो जाती है, यह ठीक है। पीतलको म्यान (तसवार रखने की )में अपना "इच्छा-- जगत्को उन्नतिका इतिहास पर्यालोचना करने पत्र (Fills ) लिख रखवे थे। १२ घरोको कानून पर समझ सकते हैं कि, पहिले ही कागजके ऊपर ( Laws of 12 tables ) पित्तच पर स्खोदी गई थी। स्याही और कचमसे लिखने की प्रथा प्रचलित नहीं रोमक सम्राट भैस्प्रेसोयानक राजत्वकान्तमें जब अम्नि- हुई। कागज आविष्क त होनेसे पहिले किस पर दाहसे राजधानी जल गई थी, तब करीब ३... लिखा जाता था, किससे कागज हुश्रा, पहिले किस (तीन हजार) पीतन्तको पात नष्ट हो गई. यौ ; इन देशमें कागनकी सृष्टि हुई और कौन कौनसी ट्रष्यसे सब पातोंमें बहुत प्रयोजनीय कानून (नियम) और कैसे अन्न कागज बनसा है, यह यथान्नमसे वर्णन किया| दलोनादि भस्मीभूत हो गये। मिरीयाके प्राचीन जाता है। मठमें डा. बुकाननको ६ (छ) धातुफलक मिले थे। १। कागन बननेसे पहिले कौन कौन सामग्री वैधातु विमिश्रित थे। ६ धातुफक्षकों में करीव ११ लेख्यरूपसे व्यवहत शेती थी? यह बतलाते है। पृष्ठ थे। यह त्रिकोणाकार अक्षरमें लिखित थे। (क) पत्थर और काठ--सबसे पहिले काठ कोचीनके यइदियोंके पास और भी ऐसे कई एक पौर प्रत्यरही. लेख्यरूपसे व्यवहत शेता था। अति प्राचीन कालमें काठ और पत्थर पर अक्षरादि खोद (ड) · काठ-मोचनके कानून काठके अपर कर रक्षितव्य विषय लिखे जाते थे। कालदीया खोदित हैं। इस काष्टमय कानून-पुस्तक का नाम प्रदेशमें प्राचीन समाधिस्तम्भके और मिशर देशके | "अक्सोनस (Axones) है। उनमेंसे कितने ही कानून पिरामिडके ऊपर खोदित अस्पष्ट पक्षरमाला ही पत्थर पर भी खुदे हुए हैं। इन प्रस्तर लिपिका नाम इसका प्राचीनतम निदर्शन है। ग्रीक भाषामें "किरविर (Kyrbies ) है। होमरके (ख) इष्टक-कालदीयगण इष्टक (ईट) के समयसे पहिले की तालिका-पुस्तक भी (प्रोमका). ऊपर अपना ज्योतिषिक पर्यवेक्षणादिका फलाफल काठ पर खोदी जाती थीं। वक्स नोवूके पेड़का उत्कीर्ण कर रखते थे। इस प्रकारको लिपि विशिष्ट काठ और झधोके दांत ही इन सब कार्यों में अधिक व्यवहृत होते थे। तब इन सब काठोंके अपर मोम यूरोपीय अजायबघरमें संरक्षित हैं। लगा कर मौंक (सोना, चांदी, पीतल, चोहावा तमिकी पैनी समाई) को गढ़ा गढ़ा कर सिखनेको (ग) सोसा-प्राचीन कानमें मौसके ऊपर प्रयाली प्रचलित थी। इन सब लिखे हुए काठक दलीच पादि खोद कर रखने की प्रथा थी। कहा . जाता है कि, हिसियड की "ग्रन्यांवनी और उनका टुकड़ों को बांध कर रखनसे जो पुस्तक बनती थों,. उनको “कडेका' (codex ) अर्थात् पोधो कहते थे। समय" नामक पुस्तक एक बड़ी सौसकी टेविक्ष पर इन काठोंके अपर कभी कमी खुड़ियामिट्टी से भी. खोदी गई थी और बहुत दिनों तक मेसिसके मन्दिर में लिखा जाता था। बंगाल और उत्तर-पत्रिम प्रदेयामें. रचित थी। मौसकी पत्ती, बतौड़ाये पोटकर पतनी धातुफनक हैं। इष्टक अब किसी किसी