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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३५३

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1 कात्यायन -'पानेयो अष्टकपासो भवति' इत्यादि स्थल पर। सम्पादनपूर्वक पामस्मर्श तथा इस बारा नसलम सट् विमति विधिलिङ्ग बोधक समझी जायेगी। कर्तव्य करते है। शर्मक उपकरणका दृथसमूह प्रथम कल्पना कर एक समस्त कार्यका उपयोगी विधान प्रथमावायमे कर्मदेशस्थानमें स्थापित करना चाहिये। सर्वत्र ही कथित है। उत्तर दिक्को सोम और पूर्व दिक्को ग्रीवाविन्यासयुत द्वितीय अध्यायमें ८ करिहका है। इसको रम मंका पास्तरण प्रदान करते हैं। विसमूहके मध्य करिखकामें यह बत्तान्त वर्णित है,-पौर्णमास यत्र- जो सकल ट्रष्य पचात् पठित है, वह देश कासके कास्त, उसमें अनिका अम्गाधान, अध्वयु पोर यन- अनुसार पश्चात ही प्रदान करना पड़ता है। ग्रहणादि मानका अधिकार, उसके विधानको प्रचारी, दीपाके कार्य पूर्वपठित रहने से पूर्व पौर परपठित रहने अहममें दोधित धर्मसमुदाय, दिवामथुन और मांस- पर ही ग्रहण करते हैं। ऐसे ही अधियणादि कार्य परिवनंग, शिक्षा पर्यन्त केयपरित्याग, व्रतकासानुसार पूर्वपठित रहनेसे दक्षिण दिक् पौर परपठित रहनेसे | सपनौक यजमानको मद्य मांस सवय वर्जित विधान उत्तर दिक् स्थापन करना चाहिये। स्थासी, नव हविके साथ भोजनका विधि, सत्य वाक्प्रयोग, और कृत दक्षिण स्तिसे सहीत होने पर वाम स्त राविकासको पूर्वविहित विकारस्थानमें अग्निहोत्र द्वारा वेदका रुपयाय किया जाता है। किन्तु पत। होम, सायंकासको भोजनको इच्छा शेने होमक प्रभृति हितीय द्रष्यका ग्रहणविधि रहनेसे वैदका उप पोछे अधिक रात्रि न चढ़ते ही नोवार प्रभृति वन्य ग्रहण नहीं करते। धृत व्यतीत पन्य द्रव्य द्वारा याग पोषधिक पत्र और वन्य पके फलका भोजन, पार. करते स्फेवनका उपग्रहण करना चाहिये। वेद ववादि | वनीय मापौर गाहपत्य या मथ्या व्यतीत पध:- हितीय ट्रव्य न रहते कुश द्वारा उपग्रहण करना पड़ता शयनविधि, अनवयं पापरणविधान, ( या नियम है। सक प्रहण करते समय चक पौर जुङ्ग उभय सपनोक यजमानका ही समझना पड़ेगा) पौर्यमासको इस हारा ले उपभत्के उपरि देश में स्थापन करते है। अन्धाधानादि कार्य समापन होनेसे दो दिन या एक इसके स्थापनकासमें परस्थर असे शब्द निकसना दिनमें कार्यभेदका विधि (यह प्रात:कास ही सम्मादन उचित नहीं। विश्वजित् न्यायके अनुसार सकस स्थल करना पड़ता है।)।श्य कण्डिका पनि होबके पीछे पर फलस्वरूप वगै कल्पित होता है। एक ही कार्य, अमवरण विधि और उसका प्रकार है। श्यकण्डिका- वेदविहित वैकल्पिक समूहके मध पधिकान में अमदा पावास्यर्थ पर्यन्त कमैसमूहके अनुष्ठान, अनुष्ठित रोनेसे फल मी पधिक मिलता है। इसी प्रकार और मन्वादिका कौन है। प्रकार षड़ दक्षिणापक्षकी अपेचा शादा पौर धतु श्य पध्वायमै ८ कडिका है। इसमें होनसदमसे विशति दक्षिणापथका फस पधिक है। यजमान. पौर्णमास समासि पर्यन्त कर्तग्य कार्यसमूहका सम्बन्धी दान, पवारम्भ, वरण और व्रतप्रमाण प्राय करते है। अर्थात् दानविधि, पत्यवाका तथा पध: ४थ पवायमें १५ कडिका है। इसको १म, श्य शयमादि व्रत यजमानका कर्तव्य पौर पनि, खर, पौर श्य कालिका दीयोगके पूर्वपिक तथा पिछ- वैदिप्रभूतिका परिमाण यक्षमानके इस्तानुसार यमके पनुष्ठानका प्रकार और मम्बादिका कथन हो स्थिर करना पड़ता है। प्रोखित यूप, हिन्न कुथ, अवरत बीहि, पिष्ट तण्डुल, दोहमत दुग्ध पौर दग्ध बोधित याग भन्दया है। समुदाय या पौर पटकादिसे विहित सकर कार्य समादा करना अग्नीषोमीय परामें दर्श पौर्यमास यामधर्मका पति- चाहिये। रौद्रमन्य, रचोदेवतमन्च, असुरदेवतमन्न देश है। वैशदेव, वरुषप्राघास, साकमेव पौर शमा- और चैवमन्न धारण कर उक्त देवतासम्बन्धीय कार्य । मोर नामक पत पर्वमय चातर्माण प्राम वनदेव- अनुष्ठानप्रकार और मन्बादि वर्णित है। द्रवा देवतायुद्ध स्थानमत्ययान्त कर्म शब्द और वेद-