पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कात्यायन । यह सब छागदुग्धसे सौंचना पड़ेगा। रय कण्डिकामें है। पत्नी शिरका पाच्छादनं खीच उसके द्वारा महावीरके विधान पीछे प्रवयं के पाचरण का विधान महावीरमोक्षणविधि है। परिशेषको रौहिण पाहुति- है। गाईपत्यके पूर्व प्रागनकुशसमूह फैला उस पर का विषय कथित है। ५म कण्डिकामें धर्मधुक 'पानसमूहके स्थापनका विधि है। प्रोक्षणी संस्कृत और वन्धनके लिये रज्जु और उसके पद बन्धनको सन्दान उत्थित कर ब्रह्मको अनुञाका करण है। होत्रादिका ग्रहणपूर्वक गाईपत्यमें जा मन्त्र एवं उपांश नाम 'प्रेरण है। यहके पूर्वहारसे रथ गा और मयूख निकाल | उच्चारणपूर्वक उच्चस्तरसे तीन बार उसके प्राधानका गृहको दक्षिणदिक् जहां बैठ होता निखात स्थ णा विधि है। प्रस्तोताका प्रेषण है। मन्त्रपाठके अनु- और मयूख देख सके, वहीं उसके निखात करनेका सार समागत गोको उल रन्नु हारा स्थ पामें बांध विधि है। गाईगव्य और पाहवनीयमें उत्तरदिक और सन्दान द्वारा उसके पद वन्दन कर "धर्माय खरनिवाप है। दक्षिणदिक् भित्तिलग्नभावसे उच्छिष्ट दोवेति मन्त्र पढ़ वत्स को स्तनपान विरत करना खरनिवापको कर्तव्यता है। आइवनोयको पूर्वदिक चाहिये। विहित मन्त्रपाठपूर्वक पिन्वन नामक पात्र- सम्राडासन्दी आइरण कर दक्षिणदिक् प्राचीग्रहण विशेषमें उसके दोहनका विधि है। स्तनान्तम्भनका होता है। उत्तरदिक् राजासन्धा और कृष्णाजिन विधि है। ऐसे ही मयूखम छाग वांध प्रतिप्रस्थाता प्रास्तरण कर उसमें महावीर निधान अथवा उसके उसको दोहन करेगा। प्रतिप्रस्थाताके प्रेषणका विधि द्वारा पाच्छादन करना चाहिये। अध्वर्यु वा अन्य कोई है। गोके निकटसे अध्वयु के उत्यानका नियम है। स्थू णादि निष्काशन करेगा। पीछे विहित सिंकताके परीशासायके ग्रहणका विधि है। परोशासन द्वारा मध्य महावीरका प्रवेशन कहा है। य कण्डिकाम महावीर ग्रहण,एवं उन्हे उत्क्षिप्तकर पुनार उन्हें प्रस्तोताका प्रेरण है। पत्नीशिएका आच्छादन है। ग्रहण करनेका नियम है। · दुग्धक्ष्य धर्मके निम्न- श्राव्यसंस्कारके काल भरवण जला सिकनाके मध्य देशमें उपयमनीका स्थापन है। उपयमनी द्वारा स्थापनका विधि है। सख सकन मुखपत्तवमें संस्कृत बहोत महावीर पर छागदुग्ध सेचन कर निर्वाचित घृतपूर्ण महावीरका निधान है। महावीरके जपर करने और गोदुग्ध अपनयम करनेका विधि है। ५४ प्रादेशधारक मन्त्रका पाठ है। दक्षिणदिक् यजमानके कण्डिकामें प्राइवनीयमें जा वातनाम जपका विधि है। उत्तान पाणिका निर्धान है। उत्सरदिक मादेशका उपनयनौमें पतित दुग्ध वातका सिञ्चनविधि है। नपके निधान है। महावीरथी चतुर्दिक भनक्षेप कर पीछे प्रस्तोताके प्रेषणका विधि है। वषट्कारके साथ परिश्रषणका विधि और महावीरके अच्छादनका मन्त्रपाठपूर्वक हामका विधि है। तीन बार महावीर विधि कथित है। ४थ कण्डिकामें पाच्छादनके समय उत्कम्पन करने का नियम है। वषट्कारयुक्त मन्त्रपाठ- -प्रस्तोताका द्वेषण है। महावीरकी चतुर्दिक कृष्णाः पूर्वक पुनवार होमका विधि है। दुतावशिष्ट ट्रव्य का जिन निर्मित व्यजन द्वारा व्यजन करने का विधि है। ब्रह्मानुमंत्रण है। यजमानकळ क धर्मका अनुक्रमण व्यजनके समय वाम और दक्षिणमापसे तीन बार है। अतितपशे लिये पात्रमें उच्चलित धर्मक प्रदक्षिणका विधान है। तेजः प्रदीप्त होनेसे उसमें सौ लेशसमूहका अनुमन्वए है। ईशानदिक्को गमन "तोले मृत डान महावीरके सौंचनेका विधि है। उसी कर सिकताके मध्य पध्वयु कतक. महापौरके निधानका समय प्रतिप्रस्थाताके चरुपाकका विधि है। पाकशेष विधि है। निम्नस्थ धर्म म सकल डाल पाहुति पर चरुकै स्थापनका नियम है। प्रस्तोताशा प्रेषण है। दानपूर्वक प्रथम परिधिमें विकत शक समूह यजमानके साथ ऋलिकाका परिक्रमण है। प्रस्तोता निधान करनेका विधि है। ऐसे ही तीन वार पाडुति व्यतीत अपर पञ्च ऋविक्कै उपस्थानका विधि है। दे पवशिष्ट शकल दधिपदिक् कुशमें प्रवेश करा देना प्रस्तोताके साथ ही अन्दोगांके परिक्रमणका विधि चाहिये। महुत सप्तम सकल महावीरख वृतादि द्वारा