पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३६८

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कात्यायन वैदशावाप्रवर्तक माइति, गायक, मुगल, मधुच्छन्दा, ४ कात्यायन वररुचि। अनेक लोग इन्हींको देवल, अष्टक, कश्यप, हारित, पाणिनि, वसु, ध्यानमग्य, पाणिनिसूत्रका वार्तिककार बताते हैं। सोमदेव भट्ट- देवरात, शाखायन, वास्कन, वेणु, याञवल्का, पघ. विरचित कथासरित्सागरमें लिखा है--"पुष्पदन्त मर्षण, पौडुम्वर, तारकायन प्रकृति पाविर्भूत हुये। नामक महादेवके एक अनुचरने गौरीकटक पभि- उनमें यात्रवल्काने शक्यः अर्थात् वाजसनेयो शाखा शप्त हो मत्यलोक ा वत्सराजधानी कौशाम्बी नगरीमें का प्रचार किया। श्रौतसूत्रकार कात्यायन उत वाज सोमदत्त नामक ब्राह्मणके औरससे जन्म ग्रहण किया सनेयो शाखाके अनुवर्तक थे। इसी कारण समझते हैं था। वही कात्यायन वररुचिके नामसे विख्यात हुये। कि विश्वामित्रवंशीय (याचवल्करके अनुवर्ती) कात्या उनके जन्मकाल आकाशवाणी सुन पड़ी थी, यह यन ऋषि ही कात्यायनचौतसूत्रके रचयिता थे। बालक श्रुतिधर होगा और वर्ष पण्डितके निकट समस्त विद्या चाम करेगा। काकरण शास्त्रमें इसकी स्म तिकार कात्यायन गोभिचके पुत्र थे। कात्यायनके कर्मप्रदीप नामक म ति ग्रन्थमें निम्न असाधारण वात्पत्ति होगी और वर अर्थात श्रेष्ठ विषयम लिखित सकस विषय पाया है,- रुचि बढ़नेसे वररुचि * नाम पड़ेगा।' योषिक यज्ञोपवीत, पाचमन, माटगण, बाभ्युदयिकबाद, साथ वह असीम बुद्धि और घीशक्तिसम्पन्न हो गये। उक्तवाचाईका कत्य, परिवदनदोष, उसका प्रतिप्रसव, एक दिन उन्होंने किसी नाटकका पभिनय देख स्थहिसरेखा, अग्न्याधान, परपिविधि, अन्य हार, माताके निकट वही नाटक समस्त पाद्योपान्त पाठति सुवादिचक्षण, सायंप्रातहीमकाल, होमेतिकर्तव्यता, किया और उपनयन के पूर्व वाड़िके मुखसे प्रातिशाख्य मानादिक्रिया, सन्योपासना, तपंण, पञ्चयज्ञप्रकरण, सुन उसे समस्त कण्ठस्थ कर लिया था। कात्यायनने दक्षिणादिपाव, भाज्यस्थास्यादि, अमावास्या वाचकाल, अवशेषको वर्षका शिष्यल ग्रहण कर नामा शाभोलकथन, कर्ष विधि, दर्भपौर्णमासहोमका शास्त्रमें पाण्डित्य लाभ किया, यहां तक कि उन्होंने शादि, प्रवासियोंका पूर्ववत्य, स्नीकर्तवाकर्म, दाम्पत्य वाकरणिक तक पाणिनिको भी घबरा दिया। अब सत्रिकर्ष कृत्यादि, प्रेतकार्य, शोकोपनोदन, पर्णनर. शेषमें महादेवके अनुग्रहसे पाणिनिने जय पाया। दाहादि, अशौचमें वर्जनद्रवादि, षोड़शवाहादि, कात्यायनने महादेवको क्रोधशान्तिके निमित्त पाणिनि- होमीयविशेष, चरु, गो अश्वयनादि काल, नरयनकाल, वाकरण पढ़ उसको सम्पूर्ण और संयोधित बाराय नाम एवं विधि, पचातादिसंज्ञा और परिशेषको वह मगधराज योगानन्दके नाना विधि।. मविपदपर नियुक्त हुए। राज्यसंग्रहमें ब्राह्मणोंका दयविध संस्कार और हेमचन्द्र, मेदिनी और त्रिकाण्डशेष अभिधानमें वास्तुक्रियादि लिखा है। कात्यायनका एक नाम वररुचि न लिखा है। अध्यापक मोक्षमूलरके मतमें भी वार्तिककार "अथावो गोमिलीयानामन्येषां च कर्मणाम् । कात्यायन बररुचि और प्राकृतप्रकाश नामक अमष्टानां विध' सम्यग् दर्शयिष्य प्रौपवत् ।" (कर्ममदीप ) या टौवाबारोंने गोमिलको दाम्यायनका पिता माना। ."एकभुविधरो बातो विद्या वर्षादवापस्यति । रास यक्ष्म मी ऐसा भी परिचय मिलता है। यथा- किश्च व्याकरणं लोके प्रतिष्ठा प्रापयिस्यति । "पुनरुतमतिमान' यच सिंहावलोकितम् । माया वररुचिौक यशद विरोधी । गोमिले बन रणान्ति नाते भासन्ति गौमिकम् । यदयद वरं भवेत् विचिदिव्य कल्वा वागुपारमत् ।" गोभिवाचायपुवस्य योऽधीते मयह पुमान् । (सोमदेवज्ञान कथासरितसागर) • सर्वकर्मखमूड पर सिहिमवान यात् ॥" + रेमचन्द्रसव एनेका सय ५८ मेदिको नाक १०५ और (गवास 1280) विकाधीषा२५ Vol. IV. किया था। 93