३७७ ब्रामण और कानपुर भान भी इस सम्बन्धमें कोई प्रमाण वा प्रतिवाद नहीं प्रति प्रसिद्ध है। उत्तराचल में ज्वार तथा गई पौर मिलता । इसी प्रकार रसूलाबाद और शिवरानपुरमें दक्षिणाचलम वाजरा पधिक उपजता है। बिल्हौर, २५ मौल विस्तृत स्रोत है। उसे भी लोग प्राचीन नदी रसूलाबाद और शिवराजपुरके दक्षिणायमें धान्य होता का गम मानते हैं। इस जिले में जंगल नहति भी है। शिवराजपुरके उत्तरांशमै नौल ही प्रधान है। स्थान स्थान पर भूमि पड़ी है। पतित भूमिमें कि एक सकल क्षेत्र गङ्गाको नहर, कूप, पुष्करिणी, गड्ढे, झोल (ढाक) वृक्ष ही अधिक विद्यमान है। कानपुर जिले इत्यादिसे सौंच पाबाद किये जाते हैं। कानपुर में में चौता, बाघ, नोलगाय, हरिण, लोमड़ी, शृगाल, अनाष्टिका भय अधिक रहता है, सुतरां दुर्मिक्ष भी शूकर इत्यादिको छोड़ पन्च काई वन्य जन्तु देख नहीं यथेष्ट ठहरता है। प्रधानतः इस जिलेके पश्चिमांशमें पड़ता। दुर्भिक्षके भयसे लोग घबराया करते हैं। कानपुरमें इस जिलेमें युवप्रान्तके सब जातिवाले हिन्दू, कई दुर्भिक्ष पड़े और उनसे लाखों लोग और जान- सकच श्रेणीके मुसलमान और यूरोपीय रहते है। वर मरे हैं। ग्रामका सामाजिक बन्धन अन्तर्वेदके अन्यान्य स्थानांकी कानपुरसे गला, कपास और नालका बीज बाहर भांति है। जमीन्दार ही प्रथम गण्य हैं। प्रधानतः भेजते हैं। यहां जो नील उपजता, उससे केवल बीज राजपूत ही जमीन्दार होते हैं। उसके हो संग्रहीत होता है, वंद्य वीज विहार प्रदेशमें पधिक पोछे साविक अधिवासियोंके वंशधर कषक हैं। यह विकता है । कानपुर नगर में घोड़े का साज, जूता, जमीन्दारोंको नमौन वंशानुक्रमसे मौरूसी तौरपर पोटमाण्टो इत्यादि चमड़े का ,व्यादि यथेष्ट और जोती है। फिर बनियाँ और दुकान्दार हैं। इसो उत्कृष्ट रूपये प्रस्तुत होता है। चमड़े के कई कारं- प्रकार दूसरे किसान, नाई, लोहार, कुम्हार इत्यादि खाने खुले हैं। रहते हैं। कानपुरके पुतलीघरों में रूईका कपड़ा भी बनता कानपुर जिलेमें खेती बाराका विशेष प्रभेद देख है। बहुतसे तम्बू और डेरे तैयार किये जाते हैं। नहीं पड़ता। दोवाबके अन्यान्य स्थलोंमें जैसी प्रणाचीसे कानपुरके पुराने किलेमें गवरनमेण्टने अपना.चमड़ेको कृषिकार्य चलता, यहां भी वैसे ही दुवा करता है। कारखाना खोल रखा है। उसमें सैन्यका व्यवहार्य कानपुरमें दो बड़ी फसलें होती है। परत्कारमें होन ट्रव्यादि बनता है। सरकारी पाटेको कल भी है। वाची फसलको खरीफ और वसन्त कालमें होनेवाली इसमें सैन्य के लिये भाटा, सत्त इत्यादि तैयार करते फसलको रवी कहते हैं। ज्योटको प्रथम बष्टिम खरीफ़ा हैं। रेलपथ, नदी, नहर, पक्की और कच्ची सड़क बोते हैं। इस फसलमें धान, मकई, बाजरा, ज्वार, प्रभृति नानाविध पथ यथेष्ट है। आर्यावर्तका प्रधान कापास, नील इत्यादि होता है। इसका अधिकांय मार्ग प्राण्ड-ट्राइरोड गङ्गाके समान्तरात इस जिलेमें पाखिन मासमें पक जाता है। धान शीघ्र शीघ्र प्रायः ६८ मोल विस्तृत है। पकनसे भाद्रमें भी काट लेते हैं, किन्तु कपास फाल्गुन यहां एक कलेकर मजिष्ट्रेट; दो ज्वाइण्ट मजि- व्यतीत बुननेके लायक नहीं होती। रबी भाखिनमें ट्रेट, एक प्रसिष्टण्ट और दो डिपटी मजिष्ट्रेट रहते बोई और चैत्र बैशाखमें काटी जाती है। इस जिलेका हैं। सकल प्रकारकै राजनका पूरा परिमाण प्रधान खाद्य गेहू है। आज कल कानपुर में कपास ३८.०२८६०) रु० है। पुलिस, टेलीग्राफ, विद्याजय बहुत बोते हैं। कारण इससे लाभ बहुत होता है। इत्यादि सुविधाके पनुसार विद्यमान हैं। यहां खेतीकर लोग एक प्रकार स्वच्छन्द संसारयात्रा कानपुर जिले में चार प्रधान नगर हैं। उनसे चलाते हैं। किन्तु चमार, काछी, कुरमी प्रति कृषक प्रत्येक ५ हजारसे अधिक लोग रहते हैं। प्रधान श्रेयी बहुत दरिद है। इसीसे कानपुरको दरिद्रता नगर कानपुर में कोई ८७१७०, विठ रमें ७१०३, Vol. IV: 95 ।
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