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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३७७

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. ३७८ कानपुर बिरहोरमें ५१४३ पौर अकबरपुरमें ६३४८ नांगोंका उस समयसे कानपुर एक जिया और प्रधान नगर वास है। गिना जाता है। १८५७ के सिपाही विद्रोहको कानपुर नगर गङ्गानदीके दक्षिण कूल पर प्रव- स्थित है। प्रयागके विवेणीसङ्गमसे १३० मोच ऊपर छोड़ दूसरी कोई ऐतिहासिक घटना या नहीं हुई। मुसलमानोंके अधीन यह जिला पनेक परगनौम यह नगर पड़ता है। युक्तपदेशमें कानपुर चतुर्थ नगर विभक्त था। उस समय कानपुर इलाहाबाद और है। समुद्रपष्ठसे यह ५०० फीट ऊपर है। यहां सेना प्रागरेमे लगता था। ११८४० को सारव उद्-दोन निवास (छावनी ), अदालत, टेशन इत्यादि विद्यमान | गोरीने दोवाव अधिकार किया, उसीके साथ कानपुर हैं। सेनानिवास और अदालत गङ्गा किनारे है। भी उनके हाथ लगा। औरंगजेबके समय यहां दो एक पूर्वा शमें देशीय पखागेही सेनानिवास और कवायद सामान्य मपनि वनों यो। मुगच सबाटोको परड़की जमीन है। कवायद परड़की नमोनसे पशिम | दुर्दशाके समय १७२६ ई०को यह अंश महाराष्ट्रोंके युरोपीय पदातिको वारीक और सेण्टजान गिरना है। अधिकारमें गया। प्रवधके नवाबसे सन्धि होने पोछ इसके मध्य गङ्गा किनारे मेमोरियल गिरजा है (यह अंगरेजी सेनाने प्रथमतः बेलगांव (विश्वग्राम) और १८५७ ई को सिपाही-विद्रोहके स्मरणार्थ बना था)। फिर कानपरमें श्रावस्थान किया। नगरके उत्तरांशमें साधारण कवायदपरड़को जमीन है सिपाहीविद्रोहके समय कई दिन तक समस्त इसके सम्मुख गङ्गातीर म्युनिसिपल गार्डन है। इस जिलेमें विद्रोहानच जला था। मेरठमें विद्रोह भारम्भ उद्यानमें एक कूप था। आज कल उसी कूप पर एक होने पीछे ही नानासाहवको कानपुरके धनागारको स्तम्भ बनाया और उसकी चारों और प्राचीरका घेरा रक्षाका भार सौंपा गया । जुनमासके प्रथम यहां चारो लगाया गया है। इस स्तम्भ पर एक वर्गविद्याधरीको पोर किले और गड्ढे बना समस्त यूरोपीय बैठे थे। मूर्ति है। स्तम्भके गावमें अंगरेजीसे लिखा है-ठौं जूनको कानपुरका देशीय द्वितीय पधारोही "विठूरके विद्रोही नाना धुन्धुपन्यके दलने १८५७ दन्त तथा प्रथम पदातिदलने बिगड़ ने तोड़ा, ईको १५वौं जुलाईको इसी स्थानके निकट अनेक धनागार लटा और पाफिस भादिको गिरा डाला। युरोपियों विशेषतः युरोपीय स्त्रियों और शिशवोंको उसके पीछे विद्रोही दिल्लीक अभिमुख चले गये। उसी अन्यायरूपसे मार इस कूप में डाल दिया था समय ५३ एवं' ५४ संख्यक सैन्धदर विद्रोही हुवा। उद्यानको रक्षा के लिये गवरनमेण्टका वार्षिक ५००००/ नानासाहवने विद्रोहियोंसे मिन उनके साहाय्यसे रु. खर्च होता है। उस विद्रोहमें जो निहस हुये, वह यूरोपियों के आवास पाक्रमणपूर्वक तीन सप्ताइ अव- इसी उद्यानके दक्षिण और पश्चिमांशमें गड़े हैं। रोध किये थे। वैवीगारदसे अंगरेज (कैवलं सात सौ कानपुर नगर प्राचीन नहीं। इस लिये यहां या एक हजार ही लोग हांगे ) धूपमें खड़े हो चड़ने दर्शनीय अष्टालिका, प्रासाद पौर मन्दिरादि कम है। लगे। विद्रोहियोंका भाक्रमथ तीनबार था हुवा था। १७६४१० को बकसर और १७६५ ई०को कोड़े के शेषको अधिकांश अंगरेज मारे गये। बिद्रोही उन्हें परास्त कर उन्मत्त भावसे स्त्रियां और शिशवोंको भी युद्दमें शुजा-उद-दौला (अवधक नवाबवजीर) परा- जित होनेपर यह नगर बना। नवाब अंगरेजोसे सन्धि मारने लगे। २५ो जूनको नानासाहबने तावशिष्ट कर फतेहगढ़ और कानपुर में सैन्य रखने पर खोजत अंगरेजीको रचा करनेमें प्रतिश्रुत हो सबको लेकर इये थे। १७७८ को वर्तमान स्थान नवाधिनत | कानपुरके सतीचौराघाटमें नौका पर बैठाया था। स्थानको प्रान्तसीमाके सेनानिवासको निरूपित होनेसे नौका इलाहाबादको खुननेके पहले तोरस विद्रोही सिपाही गोली चला पारोहियोंको गिराने बगे। दी इस नगरको नीव पड़ी। १८०१ १०को अंगरेजोने नौकाबौने भागनेको चेष्टा को थी। किन्तु सिपाहियोंने अवधके नवाबसे इसको चारो ओरका स्थान पाया था। इस