पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३९७

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३२८ बाफिर दादी के बाद मी वैसे ही टेढ़े होते हैं। दोनों हाथ, पैर प्रतिमा १८ रहती है। प्रत्येक घटनाको और हासोमें भी कुछ बैसे ही वास रहते हैं। अक्षतामें वह उस देवताकै निकट प्रकाश करते हैं। उनकी वह माय जातिको प्रयेला दोध, प्रायः युरोपीयांकी विधवायें खामौके सामं रहती है। प्रन्याय सामों मांति होते है। पदय दीर्घ राते हैं। मुखमा काफिरॉकी अपेचा मवगिनिके पापया सम्य हैं। दीर्घाकार, कपास चपटा, नासाछिट्र प्रशस्त, सुखवियर किन्तु अधिकांय प्रति सामान्य पर्णकुटीरमें रहते हैं बड़ा और मोठ मोटा तथा भारी होता है। वह और शिकार या स्वभावजात फरमूखसे जीविका वामकाज और बातचीतमें बड़े हड़प्रतिज्ञ होते हैं। निर्वाह करते हैं। उपकूलमागके पापुया अपेक्षाकृत वह लोग पिता कर और खूब जोरसे हंस हंस कर सभ्य है। वह अंचे खम्भोंपर खत्तीको भाति महे तथा उस कूद कर आनन्द प्रयास करते हैं। वर घर बांध रहते है। यह हार, नौका और तेजस आदिको खोद कर चित्र डोरी दीपमें पापुयायोंको "माईफोर" कहते हैं। बनाते हैं। अपनी अपनी शिशसन्तान पर पापुया बहुत वर साढ़े तीन हाय दोध होते हैं। जातिमुखम कुह रहते हैं। वह वेपो कभी सामाजिक बन्धनमें कुचित केयों को माइफोर स्त्रियोंको मासि बढ़ाकर पड़ रहन सकेगी। समझमें ऐसा पाता कि काल रखते हैं। उन बाचक चारण व अधिक भयानक पाकर युरोपीय सभ्यता फैलनेसे उस पुरमिय जातिका लगते हैं। पुरुष थिरमें एक कंघी खोस रखते। सीप होगा। वह बड़े विवासी होते हैं। किन्तु स्त्रियां वैसा नहीं करती। उनकी दाड़ी शोम हत्काय पाया थातिमें श्रेष्ठ और वनादिमें कुक्षित, कपाल उच्च एवं प्रशस्त, चक्षुइय बड़े, वर्ष विख्यात है। उनका विस्तृत स्कन्ध और गमोर काला, नाव चपटी और पोष्ठ मोटे होते हैं। किन्तु वक्षस्थर प्रीतिकर देख पड़ता है। काफिर जातिका दांत विचकुच मोतीको भांति रहते हैं। पुरुष कपिल साधारण दोष पददयको शीयता और अपूर्णता है। की भांति एक प्रकारका छोटा कपड़ा पानी का पायुयानों में भी इसका प्रभाव नहीं। स्वाधीन पाया कपड़ा मार" नामक पक्षको छायसे बनता है। उनकी जाति बड़ी प्रतिहिंसापरायण और महतस्वभाव है। नव स्त्रियां नीले रंग के सूत्रका वन परिधान करती है। गिनिके उत्तरपूर्व प्रान्तमें वह रहते हैं। पापुया अपने वह घंटने के नीचे नहीं पहुंचता। उत्सवादि का देशमें अन्य किसी जातिको निरापद वसने नहीं देते। गोदना गोदाते हैं। वह गोदना अधिक दिन नहीं निहायत परेशान करके भी भगानसकनेसे अपना स्थान रहता। गोदना गुदाते समय मछली कांटेसे वहां छोड़ भभ्यन्तरमागमें पार्वत्य प्रदेश पर वह चले जाते गोदना बनाना चाहते हैं, वहां रख निकाल कर हैं। पापया गोदना नहीं गोदात। किन्तु अर, भूषा लगा देते हैं। वह समुद्रगमनमें पतिमय पारदर्थी वक्ष और पृष्ठ पर एक प्रकारके प्रलेपसे चमड़े को होते हैं। नौकाके वासन, सन्तरण और समुद्री डबकी उभार बह कड़ा कड़ा पावला बना लेना अच्छा मार समुद्र के गर्भपर कर्मादि करने में उनकी बराबर समझते हैं।, कभी कभी यक्ष कर पाया उसे एक निपुष और कोई नहीं होता। वह बचको पड़ी खोद अंगुल तक ऊंचा उठा देते हैं। अपनी नौका प्रस्तुत करते हैं। मकई, धाम और शोरिस और नवगिनि प्रति होपों में काफिरो मिसनसे शूकर मांस भी खा जाते हैं। वह चौर्य- बसते हैं। नवनिनिके पाया भित्र भित्र चौक वृत्तिको सर्वापेक्षा दुख और खपराध समझते हैं। माइकोर साम्प दोषयनित है। विवाह एक बार साध परबर बुद्धमें लिप्त रहते है। इस युपमें विपक्ष होता है। पचका मक्षक काटन सबने से कोई पच निरत नहीं होता भवमिनिके काफिर एकबाहमयी प्रतिमाको पापना करते हैं। देवताका नाम "बारवर"। . पर दीप बाम खान-पर परिवारमपूर्ण इवाय पोर दुबम निरोग -मान