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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४०७

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काविलीयत-काबुल काबिलीयत (अ. स्त्री० ).१ योग्यता, लियाकृत, घर मी हैं। घरांकी छत भारतवर्षकी भांति सम-

पहुंच। २ विद्वत्ता; समझदारी।

तल होती है। गो और मेष ही यहां धन गिना काविस (हिं० पु.) कपिशवणं, एक रंग। इसमें जाता है। उत्तरम. तुर्कस्थान पौर दधिपमें भारतवणे-

मट्टीके कच्चे बरतन रत कर पावा लगाने से साल के साथ वाणिच्य होता है। तुर्कस्थान के पाखका की

निकल आते पौर चमकीले दिखाते हैं। काविस वाणिज्य अंधिक चलता है। ग्राम छोटे बड़े नाना बनाने में सोंठ, मट्टी, रेह, पामको छाल और बवूल तथा प्रकारक हैं। एक एक ग्राममें सौ-डेढ़ सौ धरोंकी बांसको पत्ती घोच कर डालते हैं। २ मृत्तिकाविशेष, बसती है। ग्रामके भीतर बीच वीच छोटे किले बर्न एक मिट्टी। यह रक्तवर्ण होता है। नन्त मिलानेसे है। जल पनेक स्थानों में मिलता है। उपत्यकामें इसमें लस आ जाती है। प्रायः बैलगाड़ी चलती है। वहिर्वाणिज्यमें उष्ट्र, प्रवः काबी (हिं. स्त्री०) मल्लयुद्दका एक इस्तलाधव, और अश्वतर व्यंवत होते हैं। तुर्कस्थानमें रूमियोंने कुश्तीका कोई पेंच । इसमें एक पहलवान् दूसरेके शुल्क बढ़ाया था, इस लिये वहांका वापिन्य कुछ घट पौछे जा एक हाथसे उसके जांघियेका पिछोटा पकड़ गया। पहले भारतसे झपड़ा और चाय भेजते थे। लेता और दूसरे हाथसे पैर खोंच. कर पटक देता है। किन्तु यह काम भी बन्द हो गया। इससे उसके कावुक (फा० स्त्री० ) कबूतरोंका दरवा। शुल्ककी आमदनीमें घटी पाई है। कावुन-१ अफगानस्थानका एक जिला। इसके पश्चिम काबुलके प्रादेशिक शासनकर्ताको हाकिम कहते कोहबाबा, उत्तर हिन्दूकुश पर्वत, उत्तर पूर्व पञ्चसरा हैं। १८८२ ई०को अमौर शेर अली खान्के भाता नदी, पूर्व मुलेसान पर्वतश्रेणी, दक्षिण सफेदकोह तथा सरदार अहमद खान यहांक हाकिम घे। कावुन्नका गजनी और पथिम इनारा प्रदेश है। श्राय प्रायः अठारह लाख रुपया है। श्राफगानस्तानके कावुन्तका अधिकांशस्थन्न पर्वतसे परिपूर्ण है। अन्चान्य प्रदेश की अपेक्षा काबुलको सैन्य-संख्या कुछ इसकी पनेक उपत्यका उर्वरा हैं। इन उपत्यकावों में अधिक है। यहांकी राहें भी खराब नहीं। इसका वड़े बड़े वृक्ष होते हैं। उनके कड़ी और वरगे बनते : वहुत प्रमाण मिन्नता है कि पहले कावुनमें हिन्दू हैं। कोहिस्थान पौर कुरममें पच्छा अच्छा काष्ठ राजावोंका अधिकार घा। उपलता है। कावुलके नानास्थानों में मैके बाग : २ उल काबुल जिलेका प्रधान नगर। यह पक्षा. हैं। कोहदामन और हस्तान्तीफ उपत्यकामें वाग; ३८.३ उ० एवं देशा० ६८१८ पू. में काबुत और बहुत हैं। बाग देखने में पति मनोरम है। लोगर नगर नामक दो नदीके सङ्गमस्थल पर पवस्थित है। और धारवन्द नामक प्रदेशमें पशुचारणका स्थान है। कावुन गजनौने ८८, खिलात ए-निचजाईसे २२८ यहां पावादिका आहार भी अधिक मिलता और पेशावरसे १८५ मील दूर है। लोकसंख्या डे. यहां गई और यव यथेष्ट उत्पन्न होता है। किन्तु उसे साखसे कम है। यहां तापमानयन्त्र ३. डिगरी केवल दरिद्र लोग व्यवहार करते हैं। सब सम्पन उतरता और १.५ डिगरी चढ़ता है। लोग मांस अधिक खाते हैं। गजनीसे नानाविध कोह ताकतशाह और कोह खोजासफर नामक शस्य यहां पाता है। उत्तर बदख्शान्, जलालाबाद, दो गिरियेणौ मिलनसे कोणकी भांति बननेवाला नामघन पौर कुनारसे चावलको पामदनी होती है। स्थान ही समतल है। उसी स्थानपर कावुन नगर इस जिलेमें स्थान स्थान पर शस्यादि अधिक उपजता अवस्थित है। यह चारोदिक् डेढ़ कोससे अधिक , रामयान और इजारसे धो पाता है। यहां न निकलेगा। प्रधान दुर्ग वाताहिसार नगरके द्रव्यादिका महयं नहीं। ग्रीमके समय लोग अधि. दक्षिण पूर्व भागमें खड़ा है। , पहले काबुलको कांश खोममें रहते हैं। प्रस्तर और इष्टकनिर्मित चारो पोर इष्टकका प्राचीर था। किन्तु पात्रमा 1 1 -