पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४१

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कमल-पराडा-कमलबन्ध . वह नगर। १०इन्दीविशेष। इसमें तीन तीन इख. यह कसे वहिगत होता है। वल्कल कठोर पड़ता वर्षके चार पद होते हैं। एकमात्रिक छन्द और कमलगट्टा खेतवणं सारभूत ट्रव्य के समान छप्पय भी कमल कहाता है। १८ अधिगोलक, रहता है। कमलवोन देखो। पांखका डेला। १८ गर्भाशय का पप्रभाग, धरन, | कमसगर्भ (संपु०) पद्मछवक, कंवलका शता। फन। २. दीपक रागका हितीय पुत्र और जय- कमलगभभ (म त्रि.) कमलगर्भस्य आमा इव नयन्तीका पति। २१ काचपात्र विशेष, शीशका एक। पामा यस्य, मध्यपदलो।। पलके मध्यस्यसको भांति गिलास। इसको श्रावति कमलसे मिलती है। कान्तिविशिष्ट, कंवलके छत्ते की तरह चमकनेवासा । मोम-बत्ती जचानेके काम आता है। २२ रोगविशेष, कमलगुप्त-संस्कृतके एक प्राचीन कवि । ( सन्धिकमत ) एक बीमारी। इससे चक्षु पीले हो जाते हैं। बहुधा कमलच्छद (स'• पु०) कमल: कमलवर्ण: छदः लोग इसे 'कांवर कहते हैं। (त्रि.) २३ कामुक, पक्षो यस्य, बहुव्री। १ कपची, बगला, बूटीमार। खाहिशमन्द, चाहनेवाला। २४ पाटलवर्णयुक्त। २ पद्मदल, कंवलका पत्ता। कमल-अण्डा (हिं. पु०) पद्मवीज, कमल-गट्टा । कमलज (स.पु.) कमलात् विष्णोर्नामिकमलात, कमलक (सं० लो०) कमल स्वार्थ कन्। १ कमल, जायते, कमल-जन-ड। वधा। वेला २ काश्मीरस्थ नगरविशेष। ( राजन० ४२५२) कमलदेव-संस्कृतके एक प्राचीन विद्वान। इनका कमलकन्द (संपु०) भालूक, कमलको जड़। निवासस्थान चन्द्रपुर रहा। कमलदेव निम्वदेवके यह कट, तुवर, मधुर, गुरु, मलस्तम्भकर, रुक्ष, पिता और गलितप्रदीप रचयिता लमोधर तथा नेवा, वृष्य, पीतल, दुनर एवं ग्राहक और रक्तपित्त, पदन्याससिहि रचयिता नागनाथके पितामह थे। दाह, तृष्णा, कफ, पित्त, वात, गुल्म, कास, कमि, | कमलदेवी (सं० स्त्री० ) काश्मीरराज ललितादित्यको मुखरोग तथा रत्तदोषनाशक होता है। (चकनिघण्ट.) पत्नी और राजा कुवलयापोड़का माता। कमलकणिका (म० स्त्री०) पद्मयोजकोष, कमल- (रामतरविधी ३०२) गट्टे को खोल। यह मधुर, तुवर, शीतल, लघु, सिस, | कमलनयन (सं० वि०) कमलसदृश सुन्दर नेत्रयुक्त, मुखखच्छकर और रसदोष तथा बवाहर होती है। जिसके कंवलको तरह खूबसूरत भांख रहे। (१०) (याकनिघण) २ विष्णु। ३ रामचन्द्र। ४ कंण। कमलकोट (स• पु०) कमलवर्ण: कोटः । १ कोट- कमलनयन-संस्कृतके एक प्राचीन विहान् । देवराजने विशेष, कोई कोड़ा। २ ग्राम विशेष, कोई गांव । निघण्ट भाष्यमें इनशा वचन उद्दत किया है। कमसकै घर (स• पु:-क्लो० ) पद्मकिनल्क, कमलका | कमन्ननयनदीक्षित-संस्कृत के एक प्राचीन विधान् । सूत। यह शीतल, ग्राही, मधुर, कटु, रक्ष, गर्भ कवीन्द्र ने इनका उमेख किया है। स्थ र्यकर पौर रुच होता है। (वकनिघण्ट) कमन्नाभ (सं० पु०) नाभि, कमल रखनेवाले कमनकारक (सं० पु.) कमलस्य कारकः, -तत् । पाकलिका, कमलकी कली। कमलनाल (सं० लो०) मृणाल, कंवलको डण्डी। वामनकोष (स'• पु०) 'कमलस्य कोषः, ६-तत् । "वमखनाव व चाप चढ़ा। कमलकारक, कमलकी कसी। यत योजम प्रमाप ले धाव" (तबसी) कमलखण्ड (सं. लो०) कमल-खण्ड। कमखादिभ्यः | कमतपत्राक्ष (सं• वि.) कमलपत्रवत् प्रधियंस। सखा पा रा५५ । (वार्षिक) . पद्मसमूह, कमसोका कमलपत्रको मांति चविशिष्ट, जिसके कंबसको पखुड़ी जैसी पांख रहे। कमलगट्टा (हिं. पु.) पद्मवीन, कंवसका तुखमा कमलबन्ध (सं० पु. ) विकाव्य विशेष, किसी Vol, 11 1 विष्णु । मनमा। IV.