पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४१२

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कामकला-कामकलावटी ४१३ - पाशा मेधापासूनशरपसाकारितखकरा!-: शिव पोर इकार अक्षरसे शक्तिका बोध है। इसीखिये बालारुचारचाको शशिमानुक्रमानु लोचनविवया । शिवविन्दु, मतिविन्दु पार नाद तीनांके संमिश्रणसे मिथुम गुणमेदादा विन्दुवयात्मक वाले। "आई"कारको उत्पत्ति हुवा करती है। इसीको कामशीमियशप्रमुखइन्वयात्ममा बितसम् । कामकला करते और इसी शक्ति का नाम त्रिपुरा वसुकोणनिवासिन्यो याताः सध्यारयावशिन्धाधाः । सुन्दरी रखते हैं। उक्त तीनों विन्दु एक त्रिकोण- पुर्यटकमेवेदं चक्रमनीः सम्बिदामनी देव्याः । सहिषयहरयता: सर्वचादि-खरूपमापनाः । चक्रके मध्यस्थित हैं। सुतरां त्रिपुरासुन्दरी उसी अन्नदशारनिलया लसन्ति शरदिन्दुसन्दराकाराः। चक्र मध्य प्रवस्थान करती हैं। फिर उसके कोण नहायपतिकोषे योगिन्धः स सिडिदाः पूर्वाः । समूहमें सिविपदा योगिनियाँका अधिष्ठान है। इन देवौधोक में न्द्रियविषयमया वियदेवभूपाद्याः । त्रिपुरासुन्दरीका बालारणकी भांति अरुण वर्ण है। भुवमारचक्रमवमा देवीमनुकरणविवरयस्फुरपाः । मस्तकमें चन्द्रकला चन्द्र, सूर्य और अग्नि सध्यासवर्णवसमाः सवित्याः सम्प्रदाययोगिन्यः । चक्षुब्रय हैं। पाश, अङ्गुम, इक्षु. धनुः और पचथर भध्यामहदहातिसम्मावा: खौलतामाकाराः। हिरदच्छदमसरीने नयन्ति गुप्ततरयोगिनीस मा. इस्तमें प्रतिष्ठित हैं। पोष्ठदयमें अव्यक्त, महत्, भूतानोन्द्रियदयकं ममय देण्या विकारपोड़कम् । अहार और पञ्चतम्मान गुप्ततर योगिनीसमूह है। कामाकर्षियादिस्वरूपतः योदमारमध्याम्ने । फिर मध्यम पचभूत, दश इन्द्रिय, मन और षोड़श सद्रास्त्रिखण्यास सम्धिन्मष्य; समष्ठिताः सर्वाः । विकार अवस्थित है। पादिमहाग्रहवामा मासा बालार्ककान्तिभिः सदृशाः ॥ यह कामकलाविद्या अवगत हो सकनेसे त्रिपुरा- पाचारनषकमस्या भवचक्रावन परिणतं येन। सुन्दरीत्व मिलता है। किन्तु गुरुके उपदेश व्यतीत नवनादयनयोपि च सद्राकरिष परिपसायक। पस्खास्तगादिसप्तकमाचारयं वमटका स्पष्टम् । केवल शास्त्रपाठसे इसमें कभी ज्ञानलाभ नहीं होता। माध्यादिमावरुप मध्यमम्पियामेतदध्यास, इसके ४६ मूलतत्त्व हैं। यथा- अणिमादिम क्योऽस्था: खोकरकममीयकामिमीरूपाः । १ शिव, २ शक्ति, ३ सदाशिव, ४ ईश्वर, ५ शुद्ध विद्यान्तरफलम सा गुपमा मान्यम निकैतमगाः ॥ विद्या, ६ माया, ७ कन्ना, ८ विद्या, राग, १० काल, परमानन्दानुभवः परमगुरुनिर्विषविज्ञामा । ११ नियति, १२ पुरुष, १३ प्रकृति, १४ प्रहार, स पुनः क्रमेया मित्रः कामयत्व ययौ विमर्शा'मान। पासोमः थोपीठ कृतयुगकारी गुरुः शिवो विद्याम् । १५ बुधि१५ मनः, १७ श्रोत्र, १८ त्वक, १८ नेत्र, तस्य ददी खगव्य कामेव विमर्श कपि। २. जिवा, २१-वाण, २२ पाद, २२ पाणि, २४ पायु, साप्येय मिबसचान स्थानेशन् नाष्ठमध्यवासाख्यान्। २५ तपस्य, २६ शब्द, २० स्पर्श, २८ रूप, २८ रस, चित्रमाणविषयमूस्त्रेितायुगादिकारणविगुरुन् । ३. गन्ध, २१ आकाश, ३२ वायु, ३३ तेना, ३४ पप बौविवाधिपतीन् परोषा विद्यर्ण प्रकाशयामास । ३५ पृथिवी इत्यादि। पतरोधवितयामनुयझौतु गुरुममा विहितः" कामकखाख्यरस (सं० पु.) बाजीकरणौषध, ताकतको भावार्थ-पादिसृष्टि का कारण शिव और शति एक दवा। मृतसूमानक और स्वर्णको पखगन्धा एवं दो विन्दुखरूप है। इन दोनों विन्दुमें शिवरूप विन्दु | गुड़चौके रस पौर मुसती तथा कदलीकन्दके द्रवमें खेतवर्ण और शतिरूप विन्दु रतवर्ण है। शिव घोंटते हैं। मृतसूताम्रक एवं स्वर्णको धीमी धीमी विन्दुसे जब यतिविन्दु मिलता, तब उभय विन्दुके आंचमें पका फिर उक्त ट्रवोंसे मटन करना चाहिये। संयोगका काम नाम पड़ता है। दोनों विन्दु भाना इसी प्रकार बारवार घाटते और पकाते आठ पुट लगाते . कला और नाद रखते हैं। इन शिवशक्ति विन्दुसे | है। शाल्मलौनात निर्यासके साथ चार भाषा सेवनः इनीस पचर, समुदाय भाषा. एवं पत्र भूतादि करनेसे यह बसवीर्य बढ़ाता है। (रसरबाबर ) यावतीय पदार्थको सृष्टि होती है। कार अचरमे ! कामकसावटौ । स्त्री) औषषविशेष, एक दवा। Vol. IV. 104