- नाम पर ४२२ कामतापुर अधिकारकाल विवेचना करनेसे समझ पड़ता है कि ब्राह्मणको वहां जाने पर डवको नगानेसे जाचमें कुछ दिन कामतापुर में मुसलमानोंका पंधिकार रहा। कवच मिस गया। उन्होंने इस्तस्थित एक रेगमी कामतापुर नामका कारण क्या है ? बुरुजीके थैलीमें डाल उसे हाथोकी पीठ पर रखा और हायीको मतसे तौलध्वज इसके स्थापयिता नहीं। किन्तु उनके उसको इच्छाके अनुसार चलने दिया। हाथो गिट्टी- द्वारा संस्कृत होनेसे इसका प्राचीन नाम मौजूद रहा। मागके तौरसे जाने लगा। अवशेषको जहां नदीने क्यांकि बुरुष्ली पढ़नेसे १२२० शकमें भी इसका नाम प्राचीन नगरको सीमाको छोड़ा है, उसके निकट मिलता है। किन्तु इसके मूल स्थापयिताका नाम गोसाई नौमारी नामक स्थान पर वह खड़ा हो गया; बुरुजीमें नहीं लिखा है। इस नगरमें शिङ्गीमारीके फिर किसी प्रकार वहांसे न हटा। ब्राह्मणोंने स्थिर सौरवर्ती गोसाईनीमारी नामक स्थानपर कामतेश्वरी किया कि देवी वहाँसे जाना घाइती न घौं। इसीसे देवी हैं। अनेकोंके मतानुसार इन्हीं रानाने वहां मन्दिर बनवा दिया। प्रथमतः विश्व. नगरका नामकरण हुवा. है। कामतापुरके दुर्गम सिंहके मानीत वैदिक ब्राह्मणोंमें एक पुजक नियुक्त भग्नावशेषके विवरणस्थल पर कामदेश्वरी देवीका हुवा था। किन्तु देवीने स्वप्न में मैथिली ग्रामपोंके मध्य उल्लेख किया गया है। दुर्गमें उत्तरांधके बहत् स्तूप पर पूजक नियुक्त करनेको पादेय दिया। कारण वही इनके प्राचीन मन्दिरका भग्नावशेष है। इन देवीके पहले देवीको पूजा करते थे। इसी प्रकार एक मैथिली सम्बन्ध में एक प्रवाद है,-"प्रागज्योतिष्य राधिपति ब्राह्मण पूजक बनाये गये। कुछ दिन बीतने पर भगदत्तकी शिवके वरसे एक कवच मिन्ना था। महा उन्होंने राजासे कहा-देवीके प्रदिशसे हमें प्रत्यर भारतके युद्धौ भगदत्तके मरने पर यह कवच हस्तिना रात्रिको मन्दिरमें चक्षु बांधकर जाना पड़ता है। पुरमें ही रहा। शेषको उक्त नौलध्वजके पुत्र चक्र हम वहां तबला बजाते हैं। देवी एक सुन्दरीके ध्वजने एक दिन स्वप्नमें देख और स्वप्ननिर्दिष्ट उपायसे वैशम नग्न होकर तास ताल पर नाचती है। किन्तु कवच आहरण कर दुर्ग के मध्य मन्दिर निर्माण पूर्वक देवीके निषेधसे हमने उन्हें कमी इस प्रकार प्रांखसे स्थापन किया। उन्हें स्वपमें ही कवचको पूजा-पहति नहीं देखा।' यह बात सुन राजाको कौतूहल उत्पन्न और प्रधिष्ठात्री देवीको मूर्ति अवगत हुयो यो। उन्होंने हुवा। वह इसी रात्रिको मन्दिर जा दरबानकी उसीके अनुसार देवीकी प्रतिमा बनवा उसके मध्य मांससे झांकने लगे। - देवी अन्तर्यामिनी हैं। उन्होंने कवच रख दिया। पहले इसके निकट पनि होता राजाको देखते ही नृत्य बन्द कर भाप दिया,- था। . अवशेषको मुसलमानोंके हाथ देवीको प्रतिमा प्रतापर यदि वर्तमान नारायणवंशीय कोई राजा किसी विनष्ट होने पर कवच एक पुष्करिणीमें छिप गया। दिन या रातको मन्दिरको सीमामें पायेगा, तो उसके पछि विखसिंह-वंशीय विहारके चतुर्थ राजा माण उसी समय वह मर जायेगा। उस दिनसे पान नारायणके अधिकारकाचमें भूना नामक एक धीवरने तक उनके वंशीय मन्दिरको सीमाके मध्य प्रवेश नहीं • उस स्थान पर एक पुष्करिणीमें मत्स्य पकड़नेको जान करते। किन्तु सेवाका प्रबन्ध लगा दिया जाता है डासा, नहाँ शिङ्गीमारी नदीने नगर में प्रवेश किया है। यह मन्दिर प्राज मो.वना है। मन्दिर इष्टनिर्मित किन्तु वह नाल इतना भारी समझ पड़ा कि किसी है। गठनप्रवासी मुसमानी चानकी है। मन्दिरको प्रकार उठ न सका। अवशेषको धीवरने राजाके चारो ओर पुष्पोद्यान है। प्रतिमा नतन है। निर्मित प्रतिमाके ममें उन कवच रखा है। मन्दिरके मध्य निकट सम्वाद भेना। राजा प्रावनारायण कवचका व्यापार जानते और उसके लिये उत्सुक भी थे । उक्त सम्बाद सुन वह उमसित हुये। उन्होंने ग्रामसे कथनानुसार यह प्रसरण प्राचीन मगरके मनाव-
- परामर्श कर हाथी पर चढ़ा:एक आए मेना.या। शेषसे मिलता है। प्रवादासार पाने पर पत्रक
.. एक प्रस्ताफलक पर वासुदेवको मूर्ति की है।