४२४ कामदेव : "कामदेवम्त कर्तव्यः शवपाविभूषयः । (हेमाद्रिधत विषधर्मोचर) १० राम, ११ रम, १२ रमण, १३ रतिनाथ, १४ रति कामदेवको ध्येयमूर्ति इस प्रकार कही है,- प्रिय, १५राविनाथ, १६ रमाकान्त, १७ रममाण, १८ निशाचर, १५ नन्दक, २० मन्दन, २१ मन्दो, चापवायकरराव मदाधितखोचनः । २२ नन्दयिता, २३ पञ्चवाण, २४ रतिसख, २५ पुष्यः रतिः प्रतिक्षधामतिर्मार्थाय वास्तवोच्चताः। धन्वा, २६ महाधनु, २७ भ्रामक, २८ भ्रमण, चतम्नस्तस्त्र कर्तव्या: पबनी रूपमनोहरा २८भ्रममाण, ३० श्चम, ३१श्चान्त, ३२ भ्रामक, चत्वारय करातस्य कार्या मालिनीपमाः । २३ भृङ्ग, ३४ धान्तचार, २५ भ्रमावह, २६ मोहन, कैतुय मकर: कार्य: पचमाचमुखी महान " ३७ मोहक, २८ मोह, ३८ मोहवर्धन, ४० मदन, कामदेव शाह, पद्म, धनुः और वाण धारण करते ४१ मन्मथ, ४२ मासा, ४३ भूननायक, ४४ गायन, हैं। मदके कारण चक्षु ईषत् कृश्चित हैं। केतु मकर ४५ गौतिज, ४६ नर्तक, ४७ खेलक, ४८ उन्मत्तो- है। पच्च वाण हैं। रति, प्रीति, शक्ति पौर उज्वमा मत्तक, ४८ विलास और ५० लोभवर्धन । नानी चार स्त्री हैं। निम्नलिखित कई स्थान कन्दपक माने गये हैं- बेदमें कामको उत्पत्तिके सम्बन्ध में कहा है, “पाद गुल्फे तोरीच मग नामो कुछ छदि। "कामो नई प्रथमो नम देवा पापः। (ऋक् २08). की कर च पीठच गरे नेत्रे असावपि । सर्वप्रथम मनके ऊपर कामका प्राविर्भाव पाता ललाट शीर्षकैमेषु कामस्थान विधिक्रमात् । सुतरां उससे पहले उत्पत्तिका कारण दर्य पुसी स्त्रिया वामे सकल विपर्ययः । पादानुष्ठ प्रतिपदि हितीवायाध गुरुफकै । निकला है। कादश वनीमायाँ भतु भगदेशतः। कालिकापुराणमें भी लिखा है- माभिस्थाने च पक्षम्या पायात कुचमधले। ब्रह्मान दच ग्रंथति मानस पुत्रोको सृष्टि की थी। सप्ता उदय च षष्टम्पा कदमतः। 'उसी समय सन्ध्या नानी एक रूपवती कन्यामी उत्पन्न भवमा कण्ठदेशे च दशमा चौदासः। इयो। उस मनोरम कन्याको देख ब्रमाके दयमें एकादया गयादा भयने वधा। चिन्ता उठी-'यह जगत्का कौन कार्य करेगी। इसीसे अव च वयोदयो चतुर्दो घलाटक। पौरमास शिखाया भातम्यक्ष विक्रमात् ।". परम रमवीय मूर्ति कामदेवका जन्म हुवा। समाने (परदीपिका) उन्हें जगत्के नरनारीसमूहको मुग्ध करने के लिये पदइय, गुल्फच्य, अरहय, भग, नाभि, कुचहय, आदेश दे पुष्पधनुः और पुष्यथर प्रदान किया। काम- हृदय, कच, कण्ठ, श्रीष्ठ, गण्ड, चक्षु, कर्ण, ललाट, देवने यह देखना चाहा कि इस पुष्यवाय हारा कार्य मस्तक और कैयौ तिथिके अनुसार कामदेवका अधि सिरि होगी या नहीं। इसीसे उन्होंने परीक्षाके लिये छान होता है। शुक्लपक्ष में पुरुषके दक्षिण अङ्ग एवं समीपख ब्रह्मा, दशादि ऋषि और सन्धया पर वाचा- स्त्रीके वाम अत और कृष्णपक्षमें पुरुषके वाम पर तथा घात किया। उससे सकस कामपौड़ित हो गये। स्त्रोके दक्षिण अङ्गक क्रमानुसार उक्त स्थान समूहका इसी समय महादेव वहां जा पहुंचे। उहोंने कन्याके । प्रतिपद तिथिको पदके अङ्गष्ट, प्रति ब्रमाका.कामभाव देख उपहास किया था। अधाने उस उपहाससे पत्यन्त सजिलो कामका वेग हितीयाको गुरुफ, वतीयाको जरदेश, चतुर्थीको भग, पक्षमीको माभि, षष्ठीको कुचमडल, सप्तमीको रोका। फिर उन्होंने कामको अत्यन्त क्रुज हो अभि- दय, अष्टमीको कक्ष, नवमीको कण्ड, दशमीकी माप दिया वा-हरके कोपानससे बस जावेगा। पोष्ठ, एकादशीको गण्ड, बादशीको चन, वयोदशीको कामदेवने पकारण इस प्रकार प्रमियत हो, प्रभासे कर्ण, चतुर्दशीको ससाट गौर पूर्णिमाको मतको अनुपायी मार्थना की। उस समय बचाने मो बाम. देवका बैसा अपराध न देख यावर कर पाबस्त कामदेव रहता है। विपर्यय पड़ता
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४२३
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