कामदेव ४२५ किया कि वह फिर शरार पायेगा और दक्षको देह- पूर्वक महादेवका योग तोड़ने पहुंचे और पुष्पधनुः पर जात रति नानी सुन्दरी रमणीको कामदेवको पत्नी पुष्यवाण चढ़ा महादेवको लक्ष्यकर फेंकने लगे। महा- बना दिया। (कालिकापुराण १५०) देवने कन्दवाणसे पाहत होते ही क्रोधके साथ उन इधर सन्धया यह सोच अत्यन्त दुःखित हुयौं कि पर अपनी दृष्टि डाली थी। फिर महादेवके ललाटसे पिता तथा भ्राता उन्हें चाहते थे और अपना दृणित प्रदीप्त अग्निशिखाने निकल कन्दमूर्तिको बिलकुल देह छोड़नेको तपस्या करने लगीं। कठोर तपस्यासे जला दिया ।" दूसरे जन्म में कामदेव ही श्रीकृष्ण के पुत्र • प्रीत ही भगवान्ने उनसे वर मांगने को कहा। सन्ध्याने प्रद्युम्नरूपसे पाविर्भूत हुये। हरिवंशमै कामदेवके प्रथमतः अन्य कोई वर न मांग यही चाहा था कि जन्मका विवरण इस प्रकार वर्णित है,-"श्रीकृष्णक प्राणी उपजते हो सकाम न हों। भगवान्ने उनको औरस और रुक्मिणीके गर्भसे प्रद्युम्नका जन्म हुवा था । इस प्रार्थनाके अनुसार शैशव, कौमार, यौवन एवं जन्मके पीछे सातवों रातको शम्बरासुरने मायाके बल बार्धक्य चार भागमें क्याक्रम बांट द्वतीय भाग अर्थात् उन्हें सूतिकारहसे हरण कर स्वीय पत्नी मायावतीको यौवनको कामौत्यत्तिके कालरूपमें निर्देश किया दे दिया। मायावतीके कोई शिशु न था। और कौमारका शेष समय भो उसीके भीतर लगा प्रद्युम्नको पा कर अत्यन्त पाल्हादित हुयौं। फिर दिया। (कालिकापुराण १९०) इसीसे प्राणियोंके उत्पन्न थिशके अङ्गप्रत्यङ्ग आदि विशेष रूपसे लक्ष्य कर माया- होते ही कामभाव प्रकाधित नहीं होता। वतीने समझा कि वही शिशु उनका प्रियतम स्वामी देव तारकासुर्के उत्पोड़नसे अत्यन्त व्यतिव्यस्त कन्दप था। उनको यह भी स्मरण पाया कि हरके हुये थे! उसी समय इन्द्र के प्रादेशी कामदेवको कोपानससे जलनेके पीछे देवगणने वैसे ही उन्हें पुनर्वार शिवका ध्यान भङ्ग करने जाना और कुछ दिनके लिये 'पतिको प्राप्तिका विषय बतला दिया था। मुसरी वह प्रजाहीन होना पड़ा। शिवपुराणमें इसको पाख्या मारवत् शिशुका पालन न कर सकी। उन्होंने धाबीके यिका इस प्रकार वर्णित है,-"महादेवी सतीने हाथ उसे सौंपा था। फिर रसायन प्रादिके प्रयोगले दक्षके यन्त्र में देह छोड़ा था। उसके पीछे महादेव सत्वर बर्षित कर मायावती उससे मिल गयौं। कठोर जितेन्द्रियता अवलम्बनपूर्वक महायोगमें प्रद्युम्न भी बैष्णव अस्त्रसे शम्बरासुरको मार पीके निमग्न हुये। उसी समय तारकासुरने देवसमूहके साथ पिटर लौट आये। कहनेको शम्बरासुरको प्रति अत्यन्त उत्पीड़न प्रारम्भ किया। देव व्यतिव्यस्त पत्नी होते भो वस्तुत: मायावती उसकी पत्नी न थौं। हो उसके वधसाधनका उपाय सोचने लगे। . इन्द्रादि कन्दप को पनी रति पुनर पतिप्राप्तिको कामनासे देवगणने स्वयं कोई उपाय निश्चय न कर सकने पर देवगणके पादेशानुसार मायावलसे शम्बरासुरको ब्रह्मासे परामर्म मांगा था। ब्रह्माने उनसे कहा- पत्री बन कर रहती थी।" (हरिवंय १६९ प.) 'महादेवके वीर्य व्यतीत तारकासुरका निधन न होगा। महाभारत और विष्णुपुराणमें कामदेव धर्भके पुत्र महेश्वरी सती हिमालयके ग्रहमें पुनर्जन्म ले महादेव माने गये हैं,- की शश्रूषाको सर्वदा उनके निकट रही हैं। “श्रद्धा काम चला दर्प नियम तिरामनम् । समय महादेवका योग तोड़ उनको पार्वतीके प्रति सन्तीषश्च तथा सुष्टिोमं पुष्टिरसूयन । अमिताषी कर सकने पर महादेव पौरससे महावीर मेधा श्रुतं किया दर्थ नय विनयमेव च । बोध बुद्धि तथा बना विनयं वपुराणम् ॥ कुमार मन्नग्रहण कर तारकासुरका निधनसाधन करेंगे। देवगणने उसी परामर्थके अनुसार कामदेवको व्यवसाय प्रजभे व चेमं शान्तिरस्यत । मुख सिडियम कोसिरिये ते धर्मसूनवः ।" महादेवका ध्यान छुड़ाने पर नियुक्त किया था। माना (परिषभम.१८) पाली कामदेव रति एवं वसन्तके साथ अभियान तेरह धर्मपनियों के मनमाने काम, चचान र Vol. IY, 107
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४२४
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