पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४३

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कमलपण्ड-कमला सकर पूजा महासमारोहसे सम्पव करते। विशेषतः नारस, फारसी में भारत, ब्राहीमें थनबय और ब्राधय पण्डितों पर इन्हें विलक्षणं वहाभक्ति थी। सिंहलीम दोदा कहते हैं। (.Citrus Aurantium) दीनदरिद्रोंको यह यथेष्ट साहाय्य पहुंचाते । फिर इसको अंगरेजी पारेन, फेछ पारेखर, पोतंगोज़ ब्राह्मण पण्डितोंको भी यह कितनी ही जमीन माफी | रजिरा ( Laranjeira de fructo dolce'), रूसी दे गये हैं। कहते-रामकमलके घरसे कभी अतिथि नारस, स्थनीय नारन, जमैन पोरङ्गन बीम विमुख फिरते न थे। (Orangen baum), szele qafest (Arancio) ५३ वत्सरके वयसमें ५ पुन, कलकत्तें एवं चन्दन और लाटिन अरणिया (Arangia) है। अंगरेजी नगरमें भूमिसम्पत्ति और बहुतसा नकद रुपया छोड़ 'भारत' शब्द अरबी 'नारका प्रपत्रंश है। इहसंसारसे रामकमन्न चल बसे। फिर अरबी 'नारक्ष' संस्कृत 'नार शब्दका मध्य मध्य कम्तकत्ते या अपने भवनमें यह ठहरते रूपान्तर मात्र लगता है। थे। सर्वप्रथम उसी भवनमें डेविद् हेयरने हिन्दू इस बातपर भी गड़बड़ पड़ता-नारङ्गका नाम कालेजकी स्थापना की। फिर राममोहन रायने भी कमला क्यों चलता है। किसी किसीके कथनानुसार उसी भवनमें प्रथम अपना मत चलाया और डफ आसाममें कमला नदी है। उसके निकट विस्तर उत्पन साइबने पाकर बङ्गालको चारो ओर मिशनरी होनेसे इसको कमला कहते हैं। फिर कोई बताता- मेजनेका बीड़ा उठाया था। कलकत्लेमें प्रादि ब्राह्म पहले त्रिपुराको राजधानी कुमिनासे यह नौवू पाता समाजके निकट दो-तीन मकान् छोड़ कमल वभुषा था। इसीसे कुमिलाके प्राचीन नाम कमलाडके बदल वही प्रसिद्ध भवन विद्यमान है। इनके वंशधरोंसे कमन्ना नाम पड़ गया। किन्तु हमारी विवेचनामें मलिकोंने उक्त भवन खरीद लिया है। आज भी यह दोनों बातें ठीक नहीं। क्योंकि बहुत दिनसे पनिक वृद्ध उसे 'फिरङ्गी कमल बोसका घर' कहते हैं। तैलङ्ग देशमें इसे 'कसलापन्दु कहते पाये हैं। फिर कमलपण्ड (सं० पु.) कमलानां षण्डः समूहा, कमला नाम भी अन्ततः २१३ शत वर्षका प्राचीन ६-सत्। पद्मसमूह, कंवलौका मजमा। है। कृष्णानन्दने तन्त्रसारमें इसका उल्लेख किया है- कमलसम्भव (सं० पु०) कमलात् सम्भव उत्पत्तिर्यस्य, "रम्भाफलं विन्तिडोकं कमल नागरबकम् । बहुव्री०। कमलसे उत्पन्न होनेवाले ब्रह्मा। फलान्येवामि मौज्यानि एभ्योऽन्यानि विवजयेत् ।" कमलसिंह-तचकवंशीय एक प्राचीन विद्वान् नरेश । इसकी कृषि भारतके अनेक प्रान्तमें होती है। १३२५६० को यह राज्य करते थे। कमलसिंह देववर्मा विशेषतः खासिया पहाड़ोके दक्षिण सुखको उपत्यका (१३५०ई०)के पिता और वीरसिंहके पितामह रहे। और मध्यप्रदेशके नागपुर जिलेमें इसे बहुत लगाते कमला (सं० स्त्री० ) कमल-टाए। १ लक्ष्मी। यह हैं। कुछ कुछ नारङ्गी नेपाल, सिकिम और हिमा विष्णुको पत्नी हैं। २ सुन्दरस्त्री, खूबसूरत औरत । लयके दो-एक स्थानमें भी लगायो जाती है। ब्रह्म- ३ निम्बुकविशेष, नारङ्गो। इस वृक्षको संस्थात भाषामें . देशमैं यह बहुत कम होती है। निम्नवङ्गमें या कमला, नारक नागरज, सुरग, वगगन्ध, बकसुगन्ध, तो फल ही नहीं पाता या फोका पड़ जाता है। गन्धाव्य, मन्धपत्र एवं मुखप्रिय ; हिन्दीमें नारङ्गीभारतवर्ष में जलवायुके अनुसार दिसम्बर और मार्च गन्नामें कमया नेबू, नेपालीमें सुन्तला, पजावीमें मासके मध्य फल उतरता है। नागपुरको नारङ्गी -सन्तरा, गुजरातोमें नारुङ्गी, बम्बैयामें नारिङ्गसाल, वर्षमें दो बार होती है। मारवाड़ी में सप्लिम्बा, दचियोंमें नारिहो, तामिलमें उशिदतत्त्वज्ञ डि कण्डोलने लिखा, 'दो.सहस किचिति, तेलगु, गन्ननिम्म, कर्णाटीमें कित्तबोइप्येवर्ष पूर्व भारतवर्ष कमला नोवू न था। यदि इसका मलयमें माहरनारवा, महिमरीमें जेरूक, परखौमें ।। अस्तित्व रहता, तो संस्खत शास्त्रमें पश्य उल्लेख