पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४४

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कमला मिलता और प्रौक वर्णनामें भी नाम निकलता। नारङ्गी चीनसे भारत पायी है। किन्तु डाकर नारोका व्यवसाय प्रधानतः दो स्थानों में होता है-सिलहट (श्री) और नागपुर। इसके लगाने- बोनेविया इसे भारतका ही द्रव्य बताते हैं। में मूलपर पार्द्रता रहना आवश्यक है। किन्तु अस यह चार प्रकारको होता है-(२) सन्तरा, नियल होना न चाहिये । श्रीमहमें इस बातको (२) नारङ्गी, (२) मलता और (8) मन्दारिन । सुविधा है। भूमि ढाल रहनेसे नदीकी लहर प्राती (१) सन्तरका छिलका चिकना, पीला और और वृक्षोंको सौंचकर चली जाती है। वहां कमसे भारली रहता है। त्वक् पृथक् पड़ती है। इस कम १००० एकरमें नारङ्गी लगाते हैं। , पधिक घटे पातिकी कमला नागपुर, दिल्ली, अलवर, गुड़गांव, दो घण्टे इस बाग में घूम सकता है। दिसम्बर और लाहोर, मूलताम, पूने, मन्द्राज, कुर्ग, सिलहट, जनवरी मास नारङ्गीसे लदे वृक्ष देख हदय फूच उठता भोटान, नेपाल और सिंहलमें लगायी जाती है। है। ऐसा वाग युरोपमें भी कहीं देख नहीं पड़ता। अग्रहायण वा पौष मास इसका फल पकता है। कपि-वीज जनवरी और फरवरी मास प्रायः ६ इन (२) नारङ्गी सन्तरसे अधिक उत्पन होती है। भूमिकै सम्मट में सघनरूपसे बोया जाता है। उक्त सम्पट लगानसे यह भारतमें सब जगह उपन सकती है। इतने ऊंचे रहते, कि शूकर अपना दांत सगा नहीं इसका छिलका सन्तरसे कड़ा और पतन्ना रहता है। सकते। फिर चहों और गिलहरियोंको रखनके फिर त्वक् भी पृथक् नहीं पड़ती। यह माघ मास लिये जाल भी डाल देते हैं। इष्टि होनेसे वीजादुर फल देती और धूप सह लेती है। इसका रस भिन्न किये जाते हैं। किन्तु इस कार्यम सम्मट तोड़. सम्सरेसे फीका निकलता है। मूलसे मृत्तिकाको इस प्रकार झटकते, जिसमें कोई (३) मलता या सुख नारङ्गी कई प्रकारको होतो हानि न पड़े। पीछे उन्हें उद्यानके पोषणस्थानमें भाजकल हिमालय और दारनिलिङ्गमें जो लगाते हैं। वोजार पोषणस्थानमें तबतक राहते, हरी और बड़ी नारङ्गी उपजती, वह इसीको भव जबतक उद्यानमें अपने ईप्सित स्खलपर फिर नहीं नति मात्र समझ पड़ती है। ब्रह्मदेवमें विलकुन्त पहुंचते। किन्तु यह नियम सदोष प्रतीत होता है। इसी प्रकारको एक नारङ्गी मिलती है। पूनको छोटी कारण पोषणस्थान वर्षमें केवल एकवार पहोवर मास लाल 'मुसम्बो' जनीवारसे इस देश में पायो है। लख निराया जाता है। कलम लगाना किसीका मालूम मकमें सिपाही विद्रोहसे पहले सुख नारङ्गी बहुत नहौं। फिर बीज चुनने में भी अस्प ही चेष्टा करते हैं। लगायी जाती थी। यह कंकरीली जमीन्में खूब संग्रहप र मिहन्तन-प्रत्येक संग्राहकके पास २० फौट होती है इस अमृततुल्य खाटु रहती है। गुजरान् अंची बांसको सिट्टी होती है। उसकी पीठपर वालेकी सुख नारङ्गी अंगरेज़ों को बहुत पच्छी लगती एक मोटा जालीदार थैला लटकता, जिसका मुंह और सबसे उम्दा समझ पड़ती है। वैसके छल्लेसे खुला रहता है। इसी धैसे में वह नारङ्गी (४) मन्दारिन देखने हुद्राकार और रक्तवर्ष सोड़ तोड़ डालता है। फिर पर उतरने से पहले होती है। यह खाने में सुखाटु लगती है। सकल मुरझायो पत्तियां पौर सूखी डालियां भी गिरा देता प्रकार कमलाको अपेक्षा इसके पत्र और पलमें सद है। सिवा इसके नारङ्गीके हमें दूसरा साथ नहीं गन्ध अधिक रहता है। प्रधानतः यह पर्वतोपर उप लगाते। सड़के गुलेल लिये कौवे उड़ाया करते हैं। जती है। भारतवर्ष में प्रवत मन्दारिन नहीं मिलती, पांचौसे गिरी भारनियां सूवरों और कुत्तों को खिलायो सिंहसमें देख पड़ती है। बातीरें। इसकी गवना गरहेके हिसावमै चलती पडसे सुरोपमें कमला उपजती न थी। इसे हैं। ७५० गई (३...)का एक मोन होता है। पोत गोल भारतवर्ष वहां ले गये है। इसकी नाङ्गियां लोन विकती है।