पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४३५

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४३६ कामरूप फिर कामरूपेश्वर अन्य भूपालोंके पाक्रमणसे लथ लगे। विष्णु भी सब बातें सुन यम और ब्रह्मा दोनोंको प्रतिष्ठ प्रभिन्नगण्ड सब हाथी ले कर इन्द्रविजयी रघुके साथ ले शिवके निकट उपस्थित हुये। महाटेवने शरणापन्न हुये और सुवर्णपीठके पधिदेवता स्वरूप उनके | सत्कारपूर्वक अभ्यर्थना कर उनसे पाने का कारण चरण कमल परं रत्नरूप पुष्पोपहार प्रदान किये। पूछा था। विष्णुने कहा,-कामरूप समस्त देवता, आसामको बुरजीके मतमें रूपिका वा रूपही सकल तीर्थ और सकल देव द्वारा परिहत है। उसकी नदीसे भैरवी वा भरली नदो तक स्वर्णपीठ है। पपेक्षा उत्कृष्ट स्थान दूसरा काई नहीं। सुतरां उस कालिकापुराणके मतानुसार कामदेवको महादेव पीठमें मरनेसे सबको स्वर्ग वा आपका पावंचरत्व क्रोधानलसे भस्मीभूत होने के पीछे इसी स्थानमें महा. मिलता है। फिर वहांके लोगों पर यमराजका कोई देवकी कपासे स्वरूप प्राप्त हुवा था। इसीसे इसका अधिकार नहीं रहता। यमका भय छुट जाने से उस नाम कामरूप पड़ गया। (कालिकापुराण, ५०) पीठका नियम भी बिगड़ सकता है। इसलिये कोई पहले ब्रह्माने यहीं रह नक्षत्रोंकी सृष्टि की थी। इसीसे ऐसा उपाय करना चाहिये, जिसमें यमका अधिकार कामरूपका प्राचीन नाम प्राग्ज्योतिष है। पूर्ववत् अक्षुण रहे। "अवैव हि स्थिती ब्रमा प्रतिनचत्र' समर्न । 'महादेवने विष्णुवाक्य पालन करने पर स्वीकृत हो ततः प्राग्ज्योतिषावापुरी शक्रपुरी समा " उन्हें विदा किया। फिर महादेव अपने गोंके (कालिकापुराण, २०० साथ कामरूपमें भा पहुंचे। कामरूपमें पाते ही कामरूप अति प्राचीन तीर्थ है, यह पहले ही उन्होंने देवी उग्रतारा और अपने गोंसे कहा,- लिख चुके हैं। कालिकापुराणमें कामरूपतीर्थका 'सत्वर यहांसे सब लोगोंको भगा दो। विवरण इस प्रकार लिखा है,- 'शिवकी पाज्ञा पाते ही महादेवी उग्रतारा और 'पूर्वकालको महापीठ कामरूपको नदीमें नहा, गणसमूहने समुदाय लोगोंको भगाना पारम्भ किया। जल पी और तथाकार देवता पूज अनेक लोग स्वर्ग क्रमशः उन्होंने कामरूपके अन्यान्य लोगों को दूरीभूत जाते थे। फिर किसीने निर्वाणमुक्ति और किसीने कर वशिष्ठको निकालने की चेष्टा की थी। इससे शिवत्वको प्राप्त किया। पार्वतीके भयसे यमराज इन वशिष्ठ ने बहुत कह हो उग्रताराको अभिशाप दिया,- लोगोंमें किसी को न तो स्वर्ग जानेसे रोक सके और 'हे वामे। हम मुनि हैं। फिर भी तुम हमें भगानके न अपने घर ले जा सके। प्रथमतः उन्होंने कई बार लिये चेष्टा कर रहे हो। इसलिये तुम माळगणके यमदूतोंको भेजा। किन्तु शिवके दूतोंने यमदूतोंको साथ वाम अर्थात् वेदविरुद्ध भावसे पूजित होगी। लोगोंके निकट जाने. न दिया। सुतरां. यमराजका तुम्हारे प्रमथगण मदमत्त चित्तसे म्लेच्छकी भांति घूमते कर्तव्यकार्य एक प्रकार बन्द हो गया। - उन्होंने फिर फिरते हैं। इसलिये वह म्लेच्छरूपसे इस कामरूपमें विधाताके निकट पहुंच कर कहा,-है विधाता ! वास करेंगे। हम शम-दम-गुणविशिष्ट, वेदपारग मनुष्य कामरूपमें नहा, जल पी और देवता आदि पून और तपोनिरत.मुनि हैं। फिर भी महादेवने विवे- मृत्युके पीछे कामाख्यादेवी वा शिवके पाचचर हो जाते चनाशून्य हो म्लेच्छ की भांति हमें भगानेको कहा है। हैं। वहां अपना अधिकार न रहनेसे हम उन्हें किसी इसलिये वह भी स्लेच्छकी भांति भस्म और अस्थि प्रकार वाधा नहीं पहुंचा सकते । इसीसे हमारा काम धारण कर इस कामरूपमें रहेंगे। फिर यह कामरूप- बन्द हो गया है। अब इस सम्बन्धमें किसी उचित क्षेत्र अद्यावधि मेच्छपरिहत होगा। जबतक खयं उपायका अवलम्वन बहुत आवश्यक है। पितामह विष्णु यहां न आयेंगे, तब तक इसमें यही भाव दिखायेंगे। कामरूपके माहात्म्यप्रकाशक सकल तम्ब ब्रह्मा यह कथा सुन यमको साथ ले विष्णुके निकट विरल हो जायेंगे। फिर भी जो परिहत विरसमचार पहुंचे और उनको उक्त समस्त कथा विष्णुसे कहने 1