पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४३६

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मिलेंगे। - कामरूप ४३० कामरूपतन्त्र समझेंगे, उन्हें यथाका सम्पूर्ण फल नहीं पड़ता। अन्यत्र देवीका दर्शनचाभ सुकठिन है। किन्तु कामरूपमै घर घर देवी विरानती है। 'यह अभिशाप है वशिष्ठके अन्तहित होते ही योगिनीतन्त्रक पाठसे भी. कामरूप तीर्थका ऐसा हो परिचय मिलता है.-'महापीठ कामरूप अति कामरूपके प्रमथगण म्लेच्छ बन गये। उग्रतारा वामा हुयीं। महादेव म्लेच्छवत् फिरने लगे। कामरूप. गुध तीर्थ है। यहां महादेव पार्वतीके साथ नियत माहात्म्य-प्रकाशक सकल सन्त्र विरतप्रचार हुये। अवस्थान करते हैं। इस पीठमें शत नदी और कोटि. सुतरां क्षणकालके मध्य कामरूप वेदमन्त्रहीन और लिङ्ग प्रवस्थित हैं। वायुकूटको अन्तिम सीमा पर चतुर शून्य बन गया। फिर कामरूपपीठ में विष्णुका धनुर्हस्त परिमित वायुरूपी चन्द्रका अवस्थान है। पागमन हुवा। इससे कामरूपका शाप छूट गया। वायुगिरिको पूर्व और चन्द्रकूट थैल, मध्यभागमें गोदन्त फिर वह सम्पूर्ण फल देने लगा। किन्तु देवता और और चन्द्रशैलके मध्यस्थलमै इन्द्रशैलसे कुछ दक्षिण मनुष्य पूर्ववत् इसका माहात्म्य समझ न सके। एवं चन्द्रशेलके कुछ उत्तर चन्द्रकुण्ड नामक सरो- उसी समय ब्रह्माने सब कुण्ड और नदी छिपाने के लिये घर है। इस सरोवरके दक्षिणदिक्मागमें चार धनु भान्तनुपनी पमोधाके गर्भसे एक जलमय पुत्र उत्पादन परिमित मानसतीर्थ है। मानस की दक्षिणदिक् किया था। उस पुत्रने परशुराम द्वारा अध्यन २८ धनु परिमित अयुततीर्थ है। उसके दक्षिण भागमें भावमें अवतारित हो समुदाय कामरूपको जलमें डुवा दश धनु परिमित ऋणमोचन नामक सरोवर है। दिया। सुतरा अन्यान्य तीर्घ गुप्त हो गये। अश्वकान्त पर्वतके दक्षिण और अम्निकोणांथ में प्राद्ध- 'जो अन्य किसी तीर्थका विषय न समझ केवल क्रान्ता नामक सरोवर भरा है। चन्द्रशैलसे गिरने- ब्रह्मपुत्रका ही अस्तित्व जानते और उसमें नहाते हैं, वह वाले निझरको नाङ्गवो और इन्द्रशेलसे निकलनेवाले केवल मात्र ब्रह्मापुत्रके मानसे हो सकल फल पाते हैं। निरको सरस्वती कहते हैं। वर्षाकाल प्रश्वक्रान्ता फिर जो ब्रह्मपुत्र में समस्त तीर्थों का गुप्त भाव समझ तीर्थमें दोनों निझर मिल जाते हैं। इस लिये वह कर नहाते हैं वे लोग समस्त तौक मानका फललाम प्रयागतीर्थक तुल्य माना जाता है। . करते हैं।' (काधिकापुराए १०) 'इन तीर्थों में मान, दाम और पूजादि कार्य करनेसे उक्त विवरण के पाठसे समझते हैं कि किसी समय विविध पुण्यफल मिलता है। विशेषतः प्रयागतीर्थक कामरूपमें बहुत तीर्थ थे। वास्तविक आज भी काम तुल्य माना जानसे अश्वक्रान्ता तीर्थमें मस्तक मुण्डनादि रूपके नानास्थानों में पर्यटन करनेसे देखते हैं कि काम कार्यका भी विधान है। इससे इहलोकमें यावतीय रूपके अनेका तीर्थ और अनेक पवित्र स्थान ब्रह्मपुत्रके सुखसम्भोग और परलोक में स्वर्गलाम होता है।' गर्भमें दव है। ब्रह्मपुत्र कामरूपके प्राचीन (योयिनीतव पाय पटस) गौरवके साथ ही हिन्दुवोको सकल प्राचीन कोलियां 'अश्वतीर्थको किचित् पथिम पार पाठ धनु- भी खा गया है। योगिनीतन्त्र में लिखा है,- परिमित स्थानमें सिद्धकुण्ड है। इस तीर्थ के पश्चिम "वो काम वियतन्य न वह ममम् । मरके निकट ६४ धनु-परिमित स्थानमें ब्रह्मसरः तीर्थ पन्यव विरला देवी कामरूपे गहरा" है। इन्द्रकूटके उत्तर ८० धनु-परिमित गमक्षेत्र है। कामरूप देवीक्षेत्र है। ऐसा स्थान दूमरा देख यहां भी एक कुण्ड विद्यमान है। रामतौर्य के 2 धनु, • वर्तमान पासामकै उचापूर्व मानवासिबमि प्रबाद है कि दूरवर्ती पूर्वदिकभागमें सौतातीर्थ है। सोतातीर्थक परपरामने अपने कुठारसे धश्च स्थानम अमपुषवा पवताप किया था। दक्षिण १० धनुपरिमित विजयतीर्घ है। यहां अद्यापि सस स्थानका नाम "षिकुठार"। यह एक पवित्र वीर्ष विजय नामक शिवलिङ्ग अवस्थित है। इसके निकट है। मंदिया उत्तरपूर्व प्रमय निकट अषिकठार स्थित है। योगतीर्थ है। वहां योगीय नामक शिवचिङ्ग अधि- IV. 110 1 Vol.