पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४३७

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४३८ कामरूप ष्ठित है। उसके निकट २२ धनु परिमित मुक्ति. ८ धनु दूरवर्ती दक्षिण दिक्में पागस्त्यतीर्थ है। इस तीर्थ है। मुक्तितीर्थ से बहुत दूर वृत्तकुण्ड है। आगस्त्य तीर्थक किञ्चित् पश्चिमांशमें अग्निकोण पर २१ इन्द्रशैलके दक्षिण १२ धनु परिमित सूर्यतीर्थ | धनुपरिमित स्थानमें पासव नामक . तथं है। इसको है। यहां सूर्य देव अदृश्य मूर्तिमें प्रवस्थान पश्चिम भोर अनतिदूरवर्ती ७ धनुपरिमित स्थानमें करते हैं। रामक्षेत्रके मध्य दो दुर्गकूप और एक रम्भातीथें है। उसकी ३० धनुपरिमित दूरवर्ती ब्रह्मयूप देखते हैं। इन्द्रकूटमें मणिनाथः नामक पश्चिम दिकमें रुक्मिणी कुण्ड है। इस कुराहके वायु- महादेव अवस्थित हैं। सोमतीर्थ की शेष सीमा पर कोणमें ८ घनुपरिमित स्थान पर पिटतीर्घ है। उक्त ५ धनुपरिमित नागतीर्थ है। चन्द्रशैलके उत्तर ६४ भस्मशेलके अग्निकोणमें ८ धनु दूर पिशाचमोचन धनुपरिमित एक पर्वत अवस्थित है, उसके जलाशयका तीर्थ है। यहां कपर्दीश्वर नामक शिवलिङ्ग प्रवस्थित नाम गयाकुण्ड और तौरको भूमिका नाम क्षेत्र है। है। भस्मकूटके वायुकोणमें कपालमोचन तीर्थ है। पूर्वमें लोहित्य और उत्तरमें ब्रह्मयोनि पर्यन्त विस्तृत यहां कपालेश्वर नामक शिवलिङ्ग अधिष्ठित है। -२२ धनुपरिमित स्थानको गयाशीर्ष वा गयातीर्थ कपालमोचनसे ५ धनु दूरवर्ती उत्तरको कपिन्ना- कहते हैं। तीर्थ है। इस स्थानमें हपमध्वज नामक शिवलिङ्गका "इम समुदाय तीर्था में स्नान, दान, पूजा एवं अवस्थान है। इस शिवलिङ्गके पश्चिमभागमें २२ धनु प्रदक्षिण और गयातीर्थमें श्राद्धादि कार्य करनेसे अक्षय परिमित मातङ्गदेव है। मन्दर पर्वतकी रंगान पुण्य मिलता है।' (योगिनौतम्ब, २ । ४र्थ पटल) ओर १६ धनु-परिमित चक्रतीर्य है। चक्रतीर्थक 'सोमशैलकी ईशानदिक् मणिल है। मणि पश्चिम नन्दन पर्वत है। इसका परिमाण ६२ धनु शैलके किञ्चित पूर्वाश ईशानकोणमें ७ धनु दूर वारा है। यहां बुद्धरूपी जनार्दनदेव अवस्थित हैं। मन्दर यसी नामक कुण्ड है। इस कुण्डका दैत्र २२ धनु शैलके - उत्तरांशमें ईशान कोणपर विरजातीय है। है। इसको दक्षिण दिक् ५ धनु दूर २२ धनुपरिमित | गजशैलके दक्षिण-पश्चिम भागमें शोधनिङ्ग है। मणिकर्णिका नामक कुण्ड है। मणिशैल को ईशान चक्रतीर्थ के अग्निकोणमें २ धनु परिमित स्थान पर कोणमें मङ्गला नदी है। फिर दक्षिण दिक् कामेश्वरी, | शौभ्रलिङ्गतीर्थ है। इसी के निकट शुक्राचार्य-स्थापित पथिम हयग्रीव; उत्तर कमललिङ्ग और पूर्व विरजा शुक्रखर नामक शिवलिङ्ग अधिष्ठित है। है। इस चतुःसीमाके मध्यस्थल में तीन कोस परिमित 'इन तीर्थों में मान, दान, पूजा, प्रदक्षिण और स्थानका नाम मणिपीठ है। -मानशैलके वायुकोणमें मान विशेषके समय याहादि करने से विशेष पुण्यनाम वराहपर्वत है। (योगिनीवन्न सघन पटल) उसके पूर्व-दक्षिण भागमें नर- होता है।' नारायण सरोवर है। इसके वायुकोणमें ८ धनुदूर 'लोहित्यसे दक्षिण दिक् जाते वायुकोण पर कोन- वैमायक तीर्थ और १०० धनुपरिमित दीर्घ प्रभासतीर्थ पर्वत है। कोलपर्वतको पश्चिम ओर पाण्डुनाथ हैं। है। प्रभासतीर्थक वायुकोणमें विन्दुसरर है। नाटका. उनके वायुकोणमें ब्रह्मकुण्ड नामक १२ धनु विस्त त चलके पूर्व भागमें मातङ्ग नामक पर्वत पौर अग्नि सरोवर है। इस सरोवरसे अनतिदूर दक्षिण दिक कोषमें ध्याचल है। . इस तीर्थको शिवका अन्तर्ग्रह धन्वन्तर कूम्स पर्यन्त विस्तृत विष्णुकुण्ड है। विष्णु- कहते हैं। हयाचलके पूर्व और ईशानदिकभागम कुण्डके दक्षिणंगमें नैऋतकोणेपर ११ धनुपरिमित भस्माचल है। इसको उत्तर ओर उर्वशी नामक तीर्थ - शिवकुण्ड है। इसीके निकटवर्ती स्थानमें पाण्डुगै न है। उर्वशी नीर्थ के पूर्व और सूर्यतीर्थ है। उससे ५ धनु दूरवर्ती पूर्व दिक्में कामाख्या सरोवर है। मदन पखत्य-चिड़ित धर्मक्षेत्र है। फिर इसी गैससे ५ तीर्थको दक्षिण पोर गडासरोवर तीर्थ है। गङ्गातीर्थसे धनु दुरवर्ती पर्वदिकमें स्वच्छाशति शिवा है। यह - है। पाण्डुथै लके . ५ धनुदूरवर्ती नैऋतकोणमें