पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४५१

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४५२ कामरूप देशमें शान्ति स्थापित होना दूरकी बात थी, अधिक था। फिर भी वदितनारायणका वंश विसकुच मिटा न अशान्ति बढ़ गयो। भोट और कछारके अधिवासी था।. उनके वंशीय दरङ्गके सिंहासन पर प्रतिष्ठित दोनों ही उक्त प्रान्समें महा उपद्रव मचाते थे। फिर भी रहे। फिर इन्द्रनारायणके पीछे प्रादित्यनारायपने वलितनारायण दरङ्गा नगरमें राजधानी बना देशके सिंहासनाधिरोहण किया। उनके समय राज्यको शासन पर मनोयोगी हुये। किन्तु प्रासामराजका सीमा उत्तरमें गोसाई-कमन की प्रालि, दक्षिपमें उपद्रव न घटा। पीछे उनको भ्रातुपुत्रीका विवाह ब्रह्मपुत्र, पूर्व में धनथिरी और पश्चिममें बहनदी होनेसे अासामराजके साथ उनको मित्रता हो गयो ।* निरूपित हुयो। उसोके मध्य क्रियदंश भाग कर स्वर्गनारायणने नतन पत्नी के नाम पर नगरको स्थापना आदित्यके भ्राता मधुनारायण राजा बने। आदित्यके और एक नदीका नामकरण किया। वनितनारायण मरने पर ध्वजनारायणकी सिंहासन मिन्ना। उनके को धर्मशीलता तथा सव्यवहारसे प्रोत हो उन्होंने समय दरग राज्य सम्म गरूपसे पहोमके अधीन हो उन्हें 'धर्मनारायण' उपाधि दिया और उनके कनिष्ठ गया। सूर्यनारायणक धोरनारायण नामक एक पुत्र चाता गजनारायणको बेलतलाका राजा बनाया। वैन थे। (आधुनिक दुरनी मतमें १७४४ शक ।) उन्होंने तलाके राजा उक्त गजनारायणके वंशधर हैं। आधुनिक ध्वजनारायणको मार राज्य लिया। किन्तु वह तीन बुरचोके मतमें १५३८ शकको वलितनारायणने स्वर्ग: वर्ष ही राज्य कर डिमरूयाको ओर भाग गये। उनके लाभ किया और उनके पुत्र महेन्द्रनारायणको सिंहासन पोछे महतनारायण बड़े पराक्रमी थे। वह दोनों मिला। महेन्द्रनारायणने ब्राह्मणांको बहुतसी निष्कर भाई एकत्र राना बने थे। उनके पोछे (१७८८०). भूमि दी थी। उन्होंने १८ वर्ष निरापद यथेष्ट शान्तिसे कीर्तिनारायणके पुत्रने राज्य पाया। उनके समय राजत्व कर १६४३ शकको परलोक गमन किया। दरङ्गाके राजावोंका पराक्रम बिलकुल खर्व हो गया। फिर उनके पुत्र चन्द्रनारायण राजा हुये। चन्द्रनारायण वलितनारायणके समयसे इन्द्रनारायणके समय का राज्यकाल १७ वर्ष रहा। पीछे तत्पुत्र सूर्य-) पर्यन्त वही कामरूप पर शासन करते रहे। मध्य मध्य नारायण राजा बने। आधुलिक बुरझोके मतमें मुसलमानों के आक्रमणमें भी उक्त वंशका ही प्राधान्य उनके समय १६८२ ई.को मन र खान् नामक किसी था। इन्द्रनारायणके समय कामरूपमें अहोमकाः मुसलमान सेनापतिने उक्त देश पर पाक्रमण किया अधिकार हुवा। किन्तु ध्वजनारायणके समय हो था। उस युद्ध में सूर्यनारायण बांध कर दिल्ली भेजे गये। कामरूपको स्वाधीनता मिटी थी। उनके पीछे राहसे सूर्यनारायण किसी प्रकार भाग आये। किन्तु | कीर्तिनारायणके पुत्रके समयसे दरङ्ग राज्यका नाम वह लज्जासे फिर सिंहासन पर न बैठे। सूर्यनारायणके उठ गया। वन्दी होते समय उनके भ्राता इन्ट्रनारायण पांच विजनीके राजबंधका इतिहास पालोचना करनेसे वर्ष के थे। मन्त्रियों ने मिल कर उन्हें राजा बनाया। समझते है कि महाराज विश्वसिंहके दो पुत्र रहे। किन्तु मन्त्रियों में परस्पर विवाद उठनेसे आसामके न्ये ४ नरनारायण भूप करतोया तथा विहारके मध्य अहोमराजने कामरूप पर्यन्त पधिकार कर लिया और कनिष्ठ शुक्लध्वज भूप विहारसे दिकराई तक राज्य करते थे। शलध्वजके पुत्र रघुदेवनारायण पहले का चुके हैं कि परीचितनारायएने शसामराजक रहे। रघुदेवके तीन पुत्र थे। उनमें यह परीचित्- पाक्रमपसे पव्याइति पाने के लिये खर्गनारायणको मङ्गलदेवी नामो कन्या नारायण विजनीक, मध्यम वलितनारायण दरपके प्रदान की थी। इससे समझ सकते कि परीचितनारायणक राशत्वकालमै और कनिष्ठ गजनारायण बेततलाके राजा धुये । ही बलितनारायण उक्त प्रदेश पर शासन करते थे। पौधासाकै मरने ज्येष्ठ परीक्षित्नारायणकी दिल्ली के सम्राट्ने खिलपत पर उन्होंने साधीन हो मुसलमान शासनकर्तासे निन राजा पृथक् । दी थी। देशको दिशीसे लौटते समय उन्होंने राज 1 पर खिया।