कामरूप ४५३ । । उस खड़ा है। पर राजमहनमें स्वर्गनाम किया। उनके साथ जो फिर उन्होंने वेड़ा बांध कर पार होनेके लिये काष्ठादिके मन्त्री या दीवान् थे, वह कामरूपके कानन्गो हुये। संग्रह करनेकी चेष्टा को। कामरूपके राय उक्त संवाद परीक्षितके चन्द्रनारायण नामक एक पुत्र थे। उन्हीं के सुन सन्ध वहां गये। उन्होंने मन्दिरको चारो पोर वंश विजनीके राजावों की उत्पत्ति है। तीक्ष्णमुख वंपदण्ड गाड़ और उनमें बरगवन्दो डान्त ववृत्तियारके सहयोगी मिनहाजउद्दीन्ने तवकात मुसलमानोंके सैन्यका निर्यापपथ रोकना चाहा। वख- नासिरी नामक अपने इतिहासमें लिखा है,-लक्ष्मणा तियारका सैन्य विपद देख एक भोर तोड़ कर निकला वती अधिकारके कई वर्ष पौछ (सम्भवतः ६०१ और बिलकुल नदीतौर पहुंचा था। कामरूपका सैन्य हिमरोको) बखूतियार तिब्बत और तुर्कस्थान जीतनेको पोछे लगा। फिर प्रत्येकने प्राणमयसे घोड़े के साथ अग्रधर हुये। तिव्वत और लागावतीके मध्यवर्ती नदी में कूद कर पार जानेको चेष्टा को। किन्तु नदीके भूभागमें उस समय कौंच, मैछ तथा तिहारू (वर्तमान मध्यस्थल में पहुंच प्राय: सब ब सरे। केवल बतियार थारू) नामक तीन प्रधान जातिका वास था। कोंचा और कुछ थोड़े लोग प्रति कष्ट से प्राण बचा दूसरे पार और मैचोंका एक सरदार (तवकात-इ-नासिरीमें इस आये। अत कोच-सरदार भलौने जा कर उन्हें उठाया सरदारका नाम मेघोंका “अन्तो लिखा है ) बखूति और दोनाजपुरके देवकोटमें पहुंचाया।" बङ्गालवालों यारमें हार गया। फिर उसने मुसनमान धर्मग्रहण एशियाटिक सोसाइटीको पत्रिका २० खण्डके २८१ किया था। वही पथप्रदर्शक बन बतियारको ससैन्य पृष्ठ पर डाल्टन साहवन सिलहाको नामक सेतुको वर्धनकोटकी राह बाघमतीके तीर ले गया। वर्णना इस प्रकार लिखी है,-"यह सेतु पश्चिम.काम- स्थानसे वह दश दिनमें पार्वत्य प्रदेश के किसी बौससे रूपमें गोहाटी पहुंचनेको एक पुरानी चौराहके बीच मी अधिक मेहरावधाले प्रस्तर-सेतुके निकट पहुंचे थे। सम्भवतः इसी सेतुसे बखूतियार खिलजी उस सेतुको रक्षाके लिये बखतियार एक दल सैन्य छोड़ (मतान्तरसे बखूतियारके पुत्र मुहम्मद खिलजी) आगे बढ़े। सेतु पार होने पर कामरूपके रायने किसी सातारके पवारोहो ले गौहाटीमें घुसे थे । कारण, विखासौ व्यक्तिको भेज कहला भेजा कि उस समय यह गौहाटीके उत्तर-पश्चिम प्रान्तको गिरिमानासे तिब्बत पर पाक्रमण करना युक्तिसङ्गत न था। उस अति निकट अवस्थित है। इस पर्वत पर प्राज भी समय लौट कर अधिक सैन्य संग्रह करना उचित था। नगरप्रवेशके मार्ग और पथरक्षणोपयोगी वहिदुगके फिर उन्होंने भी स्वीकार किया कि आगामी वर्ष वह भग्नावशेषादि देख पड़ते हैं। किन्तु इसके विश्वास अपना सैन्यदल ले उस देश जीतनका प्रयास उठायेंगे। -करनेका यथेष्ट कारण मिलता है कि वह महम्मद-इ. वतियारने किन्तु उक्त प्रस्ताव पाचन किया। इसके बखूतियार खिलजीके तिब्बत-पथका सिनहाकोवाखा पोछेवह १६ वें दिन तिव्वत पहुंचे। वहां युहादिके पीछे वृहत् प्रस्तर सेतु हो नहीं सकता। अपने सेन्य में कुछ गड़बड़ हो जाने से लौटनेको बाध्य उसके पीछे गौड़के नवाब गयास-उद-दीन ये। उनके लौटनेका मार्ग कामरूप और बिहुतके (१२११.१७ ई.) कामरूप. जीतने गये। कामरूपसे मध्य तीस गिरिवन का एकतम था। फिर १६ दिन सदिया नामक स्थान पर्यन्त उन्होंने जय किया और अनाहार अविश्रान्त चल उक्त सेतुके निकट आने पर कर लिया था। किन्तु सदियाको पूर्वओर पहुंच उन्हें उसके दो मेहराध टूटे मिले। सेतु रक्षाके लिये वह परास्त हुये। १२५७-५८ ई०की गौड़के सेनापति नियुक्त सैन्यदलमें दो नायकोंके मध्य विवाद बढ़ा था। मनिक ऐबकने कामरूप पर आक्रमण किया था। इमोसे वह मुख्यकार्य छोड़ चलते बने। फिर कामरूपके उन्होंने यहां एक मसजिद बनवायो । किन्तु वह युद्दमें हिन्दुवों ने उसे तोड़ा था। पार जानेका उपाय न देख जयंलाभ न कर सके। वर्षाले देश जलमें डूब जाने बखतियारने ससैन्य एक देवमन्दिरमें पाश्रय लिया। पर उनकी यथेष्ट सैन्यहानि हुयो। अन्तका वह महा Vol. IV. 114
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