४५४ कामरूप दुरवस्था में पड़ कर गौड़ लौटे। फिर १२५८ ई०को कामरूपके अन्तर्गत हाजोप्रदेश (परीक्षित्का राज्य ) गौड़के नवाब तुगलक खान खयं कामरूप पर चढ़े थे। ले लिया था। मुमतमान सेनापति मकरम खान् रांगा- कामरूपराजने उन्हें बांध कर मार डाला। यह माटीमें रह उक्त प्रदेश पर शासन करने लगे। फिर निरूपित करना दुःसाध्य है, उस समय कामरूपमें कौन | बड़टेनीलक्ष्मो नामक कोई व्यक्ति गंगामाटी गया था। राजा थे। कामरूप जिलेमें "वैदरगड़ नामक एक उसके पीछे सैयद अबू बकर नामक एक व्यक्ति प्रामाम पुरातन गढ़ है। प्रवादानुसार १२०४ से १२५८१ जीतने गये। तेजपुरके निकट भरतीमें युद्ध हुवा। वीच कोई मुसलमान-सेनापति कामरूप पर पाक्रमण युहमें अबूबकर मारे गये। उस समय कामरूपका करने गये थे। उनके हाथसे देशकी रक्षा करने के लिये अधिकांश पहोम राजाके, कुछ अंश रांगामाटोवान्ले फेंगुवा नामक राजाने वह गढ़ वनवाया। परन्तु उसके सुसन्तमान शासनकर्ता और कुछ अंश राजा दरंगर्क पहले वैद्यदेवने उक्त गढ़ स्थापित किया था। फेंगुवाके अधीन था। कुछ दिन पाछे मिर्जाबाद नामक रांगा. पोछे फिर मुसलमान वहां न पहुंचे। एक बार राजा माटोके किसी शासनकर्ताने पहोम राजावोंके हाथ में नीलाम्बरके समय गौड़के नवाब हुसेनशाहने (१४८८. गौहाटी निकाल न्ने नेका यत्न किया। किन्तु वह बन १५९६ ई०) १२ वत्सर अवरोध करनेके पीछे कामरूप न पड़ा। शेषको उनके परवर्ती बहरामवेग उसमें कृत- पर अधिकार किया था। हुसेन शाह कामतापुर जीत कार्य हुये। फिर क्रमशः मिर्जा रमन खान्, अवटुन- कर स्वीयपुत्र नसरत शाहको प्रतिनिधि बना बङ्गालको इसलाम शाह, इसलाम ग्वान्, शेख बहराम खान्, शेख लौटे। नसरत शाह काचविहार-राजवंशके पादि समस्तो खान्, मकदूम इसलाम और मही-उद-दोन पुरुष विश्वसिंहसे हारकर भागे थे। फिर कामरूपके रांगामाटीके शासनकर्ता बने। उसी बीच मोमाई. सौमारखण्ड (वर्तमान प्रासाम )में चहुंमुङ्ग वा स्वर्ग तामूली बड़बडुवा नामक किसी प्रासामी सेनापतिन नारायण राजा हुये। ( १४८७-१५३८ ई० ) उस एक बार पत्यल्प दिनके लिये गौहाटीको उहार किया समय तुरबक नामक किसी पठान-सेनापतिने काम- था। किन्तु वह फिर छोड़नेको वाध्य हुये। फिर मिर्जा रूपके अन्तर्गत उनाई देश पर आक्रमण किया। जैन-उल-प्रावदीन, इसपच्चर खान्, नवाव नर-उन्न ना पासाममें कलियावर नामक स्थान पर युद्ध हुवा। युद्दमें अनवर .खान्, मिर्जा हुसेन खान, जारी मियान, • तुरवक जीते थे। किन्तु स्वर्गनारायणके प्रधान मन्त्री सैयद हुसेन, यद कुतुब, नाखुबा, प्रभृति कई लोगोंने कन्चेंगने उनके विरुद्ध युद्दयात्रा की। वह तुरवकको कुल २६ वर्ष कामरूप पर शासन किया। उक्त शासन- पराजित कर करतीयाके अपर पार भगा गये थे ।* कर्तावों में कोई हानी, कोई गंगामाटी, पोर कोई फिर विश्वसिंहके पुत्र नरनारायणके समय कालयवनने गोहाटीमें रहता था। शेषको उस समय ममस्त कामरूपमें गौहाटी तक पहुंच कर अनेक देवालय नष्ट कामरूप जिला एक प्रकार मुसलमानोंक पधीन था। किये। परीक्षित्नारायणके मरने पर ढाकाके नवाबने बिजनीका राज्य और ग्वालपाड़ा जिला भी मुसन- मानोंके ही हाथ था। केवन दरग-राज स्वाधीन इससे पहले दस प्रबन्ध किसो स्थान पर कामवापुरकै विवरण रहे। किन्तु वह भी मुसलमानों का प्रभुत्व मानते नसरत शाहके हाथसे विश्वसिंह द्वारा कामतापुर वा कामरूपरान्यके उद्दार सोनेकी बात लिखी जा चुकी है। फिर यहां देखते है कि पहोम राजा थे। १६५४ ई०को जयध्वज सिंह वा चुतामूला स्वर्गभारायणक मन्ची कनचे करतोया तक तुरबककै पौके लगे थे । पचान्तर रङ्गपुरमें महाम-सिंहासन पर बैठे। उनके किसी पर तुरवक नामक किसी पठान सेनापतिक कामरूप जीतनेकी वात भारतवर्ष सेनापतिने गौहाटी अधिकार किया । १६१२ ई.को या बगालके दूसरे इतिहामि नहीं मिलती। यह विषय पर्यालाचना करनेसे मौर जुमला कोचविहार जीतने गये। गौमाटोक समझ पड़ता कि तुरवककै कामपं पाक्रमयकी कथा प्रबादमाव । पूर्व उनाई गड़गांव तक उनका अधिकार हुवा। फिर 'क्योंकि विश्वसिंह कोचविहार और कामलापुरमै रहते तुरवककै अनुमरपको मौर जुमला स्वयं पीड़ित हुये। उनके सैन्यमें भी कनग क्यों चलते। .
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४५३
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