। कमलाकर-कमलाकान्त भट्टाचार्य एक लम्बा पौर सफीद कोड़ा। यह अन्न और बीय २ एक प्रसिद्ध साधक पोर वर्षमानको रामसभाके माण फलादिमें पड़ता है। परिणत। १८०८०को पम्बिकाकालनासे वर्षमान कमलाकर (सं० पु०) कमलानां पाकरः उत्पत्ति आ इन्होंने तत्कालीन वर्धमानाधिपति वेजचन्द्रको स्थानम्. ६-तत्। सरोवरविशेष, एक तालाव। जिस रिझाया और सभाके पण्डितका पद पाया था। सरोवर वा तड़ागमें अधिक कमल रहते, उसे ही कमलाकान्त साविक, अभिमानशून्य और देवौके कमलाकर कहते हैं। २ पद्मसमूह, कलोंका परम भक्त रहे। इष्टको निष्ठास मुग्ध हो तेजयन्द्र ने मजमा ३. कमलाकरभट्टनिर्मित स्म तिशास्त्रका इन्हें अपने गुरुपदपर वरण किया और निवासार्थ एक ग्रन्थ। ४ गोदावरी-तौरवती देवगिरिनिवासी वर्धमानके निकट कोटानहाट ग्राममें मुन्दर भवन नृसिंहके पुत्र । इन्होंने सिद्धान्ततत्त्व विवेक पौर बनवा दिया। उक्त भवनमें कमलाकान्त महासमा- नातकतिन्तक नामक संस्छत प्रन्य बनाया था। रोहसे श्रीश्यामापूजा मनाते। इस पूनाके दिन शव कमलाकर भट्ट-विख्यात स्मृतिसंग्रहकार । यह राम- मित्र सकल एकत्र हो इन्हें कतार्थ करते और इनकी कृष्णभट्टके पुत्र, नारायणभट्टके पौत्र और दिनकर भलिगाया सुनते थे। भट्टके सहोदर थे। इन महात्माने अनेक स्पतिशास्त्र जैसी पदावलीसे रामप्रसादने देवोको रिझाया और बनाये। इनके निम्नलिखित ग्रन्य प्रधान हैं-तत्त्व- जैसी पदावलीने आजतक बङ्गालियोंके हृदय में अमृत कमलाकर, २ पूतकमलाकर, ३ तीर्थकमलाकर, वहाया, कमलाकान्तने वैसी हो पदावली गा कर ४ सस्कारप्रयोग वा संस्कारपद्दति, ५ कार्तवीर्यार्जुन- किसो समय वर्धमानवासियोको उन्मत्त बनाया। क्या दीपदानप्रयोग, ६ शान्तिरत्न, ० शूद्रधर्मतत्व, ८ सहस बालक, क्या युवक, क्या इ-जो लोग अनुरोध चण्ड्यादि विधि, निर्णयसिन्धु, १० विवादताण्डव । लगाते, उन्होंको यह किसी न किसी ताल-स्वरमें एक इनके अन्य पढ़नेसे समझ सकते-कमलाकर भट्ट श्यामाविषयक पद खयं वना, गा एवं सुनाकर रिभात थे। १५३८ शकको विद्यमान रहे। यह निर्भीक और सरतचित्त रहे। लोगोंसे सुन कमलाकान्त ( स० पु० ) १ लक्ष्मीपति विष्णु। पात, एक दिन कमलाकान्त रात्रिकासको प्रोड़- २रामा ३ कृष्ण। कमलाकात भट्टाचार्य-१ बङ्गालके एक दिमाजपण्डित। गांवके मैदानसे चले जाते थे। हठात् कतिपय यह नवदीपाधिपति महाराज कृष्णचन्द्र के समसाम दस्युने भीमरवसे उनपर पाक्रमण किया। उन्होंने यिक रहे। किसी किसी प्रलोकमें इनका नाम पाया देखा, कि उसवार उनका अन्तिमकास उपस्थित था। फिर वह निर्भय परमानन्दसे राममसादके स्वरमें है-"श्रीकान्तकमलाकान्त घरामय शहरसा' किन्तु अन्य कोई उक्त गान सुन दम्यु श्यामा माताको पुकारने लगे। परिचय नहीं मिलता। कहते-श्रीकान्त, कमलाकान्त, बलराम और शहर चारों पण्डितोंके एकत्र एकपक्ष हो मोहित हुये थे। उन्होंने वैरभाव छोड़ और उनके विचारपर बैठनेसे स्वयं सरस्वतो भी अपर पक्ष अव पदपर नोट क्षमा मांगी। कमलाकान्त उन्हें सन्तुष्ट कर वर्धमान लौट गये। • सम्बन कर जीत सकती न थौं। महाराज कृष्णचन्द्रने यह विवेकके स्रोतमें डब रहते, संसारको कुछ इन्हें खीय सभामें रखनेके लिये.बड़ी चेष्टा की। किन्तु किसी विशेष कारणसे यह विरत हो और राजसभा भी ममता रखते न थे। सुनने में पाया-स्त्रोको जलानेके लिये चिता प्रज्वलित होते कमलाकान्सने छोड़ अपने ग्राममें पाकर रहने लगे। चौबीस-परगनेके नाच नाचश्यामामाताका नाम गाया। अन्तर्गत पूडा' याममें इनका वास था। पण्डित- कुमार प्रतापचन्द्रमी इनके शिथ हो.गये थे। मण्डलीका वास रहनेसे पूड़ा छोटे नवदीपके नामसे करते-मृत्व कास महाराज तेमचन्द सयं कमला- विख्यात हुवा । पान भी वहां इनके वंशधर रहते है।
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