४४ कायस्थ तुम वहां पाप मेरा नामकरण कीजिये ; और मेरे लिए कार्य दौजिये। भगवान् ब्रह्माने उसके मधुर वाक्यों की सुन कर बड़ी प्रसन्नतासे कहा-“हे वस! मैंने स्थिरचित्त हो कर समाधि लगाई थी, उसी अवस्थामें तुम मेरे कायसे पैदा हुए, इसलिए तुम संसार में कायस्थ नामसे प्रसिद्ध होगे और तुम्हारा नाम चित्रगुप्त हुपा। धर्माधर्मके विचार करनेके दिए यमराज न्यायालय में तुम्हारा स्थान निर्दिष्ट हुआ। क्षत्रिय धर्म पालन करना और पृथिवीमें बलिष्ठ प्रजा उत्पन्न करो।" ऐसा वर दे कर बना वहांसे अन्तर्धान हो गये। कमलाकर महोइत वृहत्वाखण्ड में भी लिखा है- "भवान् चवियवच समस्थान-समुद्भवात् । कायस्थ: पवियः खयाली भवान् भुषि विराजते । तमसम्भवा येतेऽपि त्वत् समतां गताः । तेषां लेखादितिय चनियाः रमतत्परः। सकारादीनि कापि यानि वियनातिः । तानि सर्वाणि कार्यापि मदानावयतचिता:। घका प्रजापतिरिदं व बान्तर्दधे विभुः। एवमुक्तविश्वतः प्रसन्नध्दयोऽमवत् ।" (Vyavastha Darpana by Syámácbaran Sarkar, Srd, Ed. Part I, p. 664, ) ब्रह्माने कहा था कि, हे चित्रगुप्त ! समस्थान अर्थात् कायसे पैदा हुए हो; इसलिए तुम भी क्षत्रियवर्ण हो। तुम पृथिवीमें कायस्थ-क्षत्रिय नामसे प्रसिद्ध होग। तुम्हारे वंशधर कायस्थ भी तुम्हारे समानं कायस्थ-क्षत्रिय गिने नायगे। उनकी लेख्यादि वृत्ति होगी और क्षत्रियकन्याके साथ उनका विवाद होगा। क्षत्रियों में जो जो संस्कार होते हैं, हमारी पानानुसार उनको भी वे ही संस्कार करने होंगे।" इतना कह कर ब्रह्मा वहांसे अन्तर्धान हो गये; और चित्रगुप्त उनके वचन सुन कर प्रसन्न हुए। गरुडपुराणमें और एक जगह सिखा है- "प्रयाति चिननगरं वौचिनो यब पार्थिवः । यमवैवाचनः मौरियंव राज्य प्रशान्ति दि" (उपरखए १०५०) • फिर वह ऋषि · चित्रनगरमें पहुंचे जहां घोचित, यमके छोटे भाई-सौरि अर्थात् पूर्वके पुत्र राज्यशासन करते थे। उक्त गरुडपुराणमे यह भी ज्ञात होता है कि, यही चित्रनगर पीछे 'चित्रगुप्तपुर' नामसे विख्यात हुआ है। "चिवगुतपुरं तन योजनानां तु विशक्तिः । कायस्थानव पश्वन्ति पापपुण्खानि मगा।" (अत्तरखण १२) उस यमलोको (२० योजनमें विस्त त) चित्र- गुप्तपुर है। वहांक कायस्थ सबके पाप-पुण्य का विचार करते हैं। देवीभागवतमें लिखा है "ग्राममायायां यमपुरी तव दाउघरो महान्। स्वमटेव टिसी राजन् श्विगुतपुरोगनः । मिन शक्तियुती मानधनयोति यनो महान् ४ (१२०००). हे राजन् । दक्षिण दिशामें यमपुरी है; जहां चित्रगुप्त प्रादि अपने सुभटों सहित और अपनी समस्त. शक्तियों सहित सूर्यके पुत्र यम विराजमान हैं। गरुडपुराण में भी लिखा है,- "वायुः सर्वगतः सृष्टः सूर्य जीविहहिमान । घरासतः सृष्टरिवाहन मयुवः । सष्ट्रवमादिकं सर्व वयसे पै तु पद्मना ।" (गरपुराए, मेदकटर, १०) ब्रह्माने सबसे पहिले सर्वव्यापी वायुको ; फिर. तेस्रोमय सूर्यको सृष्टि की थी। उसके बाद सूर्यसे चित्रगुप्त सहित धर्मराज ( यमराज) को सृष्टि की। इस तरह आदि जगत्को सृष्टि करके ब्रमा तपस्यामें. स्कन्दपुराणके प्रभास-खण्डमें चित्रगुप्तको कायस्थ- कहा गया है। और उनकी उत्पत्तिको कथा इस. प्रकार है- "मिमा जान पुरा देवि धर्मात्मामूदराती..२ कायवः सर्वभूतानां निव्य प्रियहितैरतः । तस्थापत्य' हाच या ऋतुकालामिगामिनः ।। पुनः परमतेजसो चिनी भान वरानने। तथा विवाभवत् मन्या व्यायामोदमनार भाभ्यां तु जावमावा मिवः परत्वमा वान् । भय वस्त्र च मा माया मा तैनानिमाविश्न पघं चौ बालकौ दौमापिमिः परियालिवी हगिती महार बाहादेव स्थिती तर -प्रमार नमामाच वयः परनमाथिवी। प्रतिष्ठापा महादयं माखरं बारितस्करम् ।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४८३
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