५.४ और कायस्थ कायस्थों को भाखावाका नाम खरे, दूसरे, वङ्गाली, किन्तु हमने ऐसा क्या अपराध किया है कि उस अपने दिल्लीसीमाली और बदायूनी है। कार्यमारको एक मुहतके निये भी छोड़ नहीं सकते। क्या हिन्दू-राजत्व क्या मुसलमान-सरकार दोनों पाप हमें यन्न करनेका उपाय बता दौनिये। ब्रह्मान समय कायस्थ साधिविग्रहिक वा. राजसभाव यमको उक प्रार्थनार्क अनुमार अपने शरीरमे चित्र- लेखकका पदभोग करते थे। इनमें अनेक संस्कृत गुप्तको उत्पन्न करके कहा था-'यह महामाग माहाय्य ग्रन्यकार और सुपण्डित प्राविभूत हुवे। मुसल" करके तुम्हारे कमेंका अवमरकान्न ठहरा देंगे और मानों के अधिकारमें पश्चिमके वहुतसे कायस्थोंने मैनिक- सबके कर्माकर्मको वर्णना करेंगे। उसके अनुसार तुम विभागका भी एच पद पाया था। उनमें प्रकावरके स्वर्ग-नरकादिको व्यवस्था कर सकोगे।' राजस्व सचिव टोडरमल, महाराज नवन्तराय, पचिमी कायस्थों की भांति विहारो कायम्यासें मी पटनाके शासनकर्ता राजा रामनारायण प्रमृतिका द्वादश शाखा है। उक्त बादश शाखाबों घादि नाम उखयोग्य है। आजकल भी कायस्य पुरुष चित्रगुप्त वंशधर थे। विहारी कायस्थ आन वृटिश गवर्नमेण्टके अधीन क्या शिक्षा विभाग क्या भी उपवीत धारण करते हैं। कारण उनके कथना- न्याय विभाग (कचहरी-अदालत) सर्वत्र उच्च प्रासन नुसार चित्रगुप्तने मीपवीत जन्म लिया था। उनको सम्मान नाम करते पाते हैं। धानकन्न द्वादश शाखाका नाम है-अष्ठिाना, अम्बष्ट, युवा प्रदेशके समस्त कायस्थ एकताके सूत्र में पावर वाल्मीक, गोड़, कुलश्रेष्ट, माधर, निगम, गक्रमेन, होनको चेष्टा करते हैं। युक्तप्रदेशमें प्रायः माढ़े पांच श्रीवास्तव, सूर्यध्धन और करण। उक्त दादा गामा- स्लाख कायस्खों का वास वाम अहिठानोंका प्रादिनिधाम जौनपुर है। पटना राजपूताना। और विद्युत पक्षसमें अम्बष्ठ गावाके लोग हौ अधिक राजपूतानेके कायस्य प्रायः अपनेको राजधाना देख पड़ते हैं। वात्मीक शाखाका प्रादि वाम स्थान कहते हैं। वृंदीमें माथुर और भटनागर कायस्थोंका अम्बष्ट, श्रीवास्तव और करण एकही वास है । मारवाड़में कायस्थों को 'पञ्चौन्ली ठाकुर' कहा। हुक्के मे तम्बाकू पिया करते हैं। नाता है। राजपूतान में अजमेरी, रामसरी और पम्वष्ठ ब्राह्मणप्रस्तुत अन्न एक जगह बैठकर खा केकरी तीन श्रेणियां मिलती हैं। उनमें सभी यज्ञसूत्र सकते हैं। धारण करते हैं। फिर अखाद्य भोजन करनेवालों का निगम शाखा कायस्य विहारमें अधिक देख नहीं यन्नसूत्र उतार डाला जाता है। वहां सभी कायस्थ पड़ते। सूर्यध्वजोंके पधिदेवता सूर्य माने जाते है। अपनेको जत्रिय बतानके लिये तैयार हैं। माघर, गकसेन, श्रीवास्तव और भटनागर पपनको पाचार व्यवहार अधिकांश युक्तपदेशके कायस्थों जैसा चित्रगुप्तकी प्रथमा नीका गर्मजात बंग बताते हैं। है। राजपूतानक कायस्थों में बहुतो ने रानहारमें विहारके गौड़ कायस्पोंको विश्वास है कि बट्टानक सैनिककृत्तिको भी अवलम्बन किया है। सेन राना उन्हींको थेगोके अन्तर्गत रहे। श्रीवामनद विहार। शाखाके दो वेणी विमाग हैं-वरे और दूसरे। वर विहारक कायस्थ अपनेको चित्रगुप्तका प्रकृत येणोके लोग अन्यान्य श्रीवास्तवो येष्ट होते हैं। वह वंशधर बताते हैं। उनमें प्रवाद है-सत्ययुगमें जब अपनी 'पांडे बताते हैं। वरे और दूसरे नौमि पाना- सब देवता यज करने लगे, तब यम ब्रह्मासै बोल हार तथा प्रादान-प्रदान नहीं चलता। कमेन गावाम, उठे-'पितामह ! इन्द्रादि सकन्न दिक्पान्त हैं। मी उसी तरह श्रेणी विभाग है। प्रथच उन्हें यन्नादि करनेका समय मिल जाता है। भार प्रक्रीन परम्मर एक दूसरेका अबव्यञ्चनादि Rajputada Gazetteer. गुजरात है। करण और उनका मायर, मटनागर यहा करते हैं।
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