पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५०४

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कायस्थ ५०५ तसवी समुता: पचविता महाजमा:। पूर्वी हादश शाखाके लाला कायस्योंको छोड़ वाक्यगीय ऽनादिवरः सोमः सौकालिनेन च १८ दूसरे कई प्रकारके नीच कायस्थ भी होते हैं। किन्तु पुरुषोत्तमो मौहलो विश्वामित्रः सुदर्शनः । या पाप ही पपनको कायस्थ वतात, अपर जातीय कामपेज देवनामा इति ते कथितं मुदा"१९ वा पूर्वोक्त हादश शाखाके कायस्थ उन्हें कायस्थ कहना (घटक कैयौकी चरसदीय कुलदीपिका) नहीं चाहते। सारन जिले के सेवन नगरमें कितने ही दरजी पौर कितने ही ठेकेदार भी कायस्थ-नामसे अर्थात् क्रियावान् चित्रगुप्त सर्वशास्त्रमें पूजित हुये थे। उनके वंशधर सेनी रहे। इस पृथिवी पर सेनीके सर्व- अपना परिचय देते हैं। किन्तु उनके साथ लाला सम्म तिशाली पाठ सन्तान हुवे। उनका नाम गौड़, - कायस्थों का कोई संम्रव नहीं। बहुतसे चोग अनुमान करते कि वह वस्तुत: कायस्थ हैं, फिर भी नीच कर्म माथ र, शकसेन, भटनागर, अम्बष्ठ, श्रीवास्तव्य, कर्ण और उपकर्ण था। पाठोम कर्ण श्रेष्ठ रहे। उसीसे वह ग्रहण करनेसे समाजच्युत हो एकबारगी ही भिन्न श्रेणी समझे जाते हैं। कारण प्राज भी जो लाला इस पृथिवी पर श्रीकर्ण नामसे विख्यात हुवे। उनके कायस्थं बंधानुक्रमसे गांवके पटवारी होते आये हैं, वंशम पांच विन मामावोंने नन्भग्रहण किया था। बहुत से लोग उनके घर पादान-प्रदान करना नहीं पांघों का नाम वास्यगोत्र पनादिवर, सौकालिन सोम, चाहते। पटवारी, कानूनगो, अखौरी, पांडे वा मौहल्य पुरुषोत्तम, विश्वामित्र सुदर्शन और काश्यप देव रहा। बख्शी उपाधिधारी कायस्थ शतगुण धनी वा सत्- कर्मशाली होते भी सामाजिक मर्यादामें हीन समझे उत्तराठीय कुलाचार्य पचाननको कारिकांमें जाते हैं। कहा है- युक्तप्रदेश और विहारके कायस्थों का धर्मकर्म "कगणिमुन्नाः पवित्रा महाजनाः । प्रायः मिलता जुलता किन्तु देशभेदसे वाम गौवोऽमादिवरः सीमः सौकालिनता। पाचारमें भी कुछ प्रमद पड़ गया है। पुरुषोतमी मीहल्यः विश्वामिवः सुदर्शनः । विहारी कायस्थम वैष्णव, शैव, शाक्त, कवीरपन्थी, काप्यपी देवनामा च पति के कथितं सदा। सूर्यगौरवी धनी दत्तदासी महावती। नानकशाही प्रकृति हुवा करते हैं। उनमें थानों को ही चन्द्रवंगाव: चवो मिनकुले सदनः ।" संख्या अधिक है। धाद्वितीयाके दिन वह चित्र. गुप्तको पूजा करते हैं। श्रीपञ्चमी अर्थात् वसन्त श्री कर्ण-वशको श्रेणिसे पांच महाजन आविर्भूत पञ्चमीको दावात कचम पूजते हैं। हुवे। उनमें : वात्स्यगोत्र पनादिवर (सिंह), बनदेश। मौकालिन गोत्र सोम (घोष), मौहत्य गोत्र पुरुषोत्तम बङ्गालमें प्रधानतः चार श्रेणियाँके कायस्थोंका वास (दास), विश्वामन गोत्र सुदर्शन (मित्र ), और है। वह स्थानमैदर उत्तरराढ़ीय, दक्षिण-रादोय, पणन काश्यप गोत्र देव (दत्त) थे। दत्त तथा और वारेन्द्र कहलाते हैं। उक्त चारो श्रेणियां अपना दास सूर्यवंशीय और मित्रकुलमें सुदर्शन · चन्द्र 'परिचय चित्रगुप्त-सन्तानके नामसे दिया करती हैं। वघीय भी कहलाते हैं। उत्तरराठीय कुलग्रन्यमें लिखा है- वङ्गजकायस्थकारिकामें लिखते है- "चित्रगुप्तः क्रियोपतः ममानेषु पूज्यते । "चिवदेवसुतायाष्टी समासन् वै महाशया: । सैनी पुवाटकाः प्रथा सर्वसम्पत्तिस युसा: १५ तेषान्तु कल्पयामास कम्पापी बावकर्म च । गौडालो माथ रसव शकमेनो भनागरः। एकव बहुधा माति गोविर्ण गोवदेवता । पष्टय थीवास्तव्य कोषका उच्च तैषां मध्ये प्रवरय एकथितमः स्वः। पुवायामष्टकानाच वर्ष: प्रोविक्षः। सूर्यबजी चन्द्रशसान्द्रा चन्द्रका थोक ति समसः विद्यावी मुवि सर्वदः ।। रविदासी रविरणी रविधीरय गौरकः। Vol IV, 127