पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५०५

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कायस्थ प्रति चाष्टमुताः खयानाः कुलानां पतयोऽभवन् । कुलग्रन्वमें सेमक वा सेनीको चित्रगुप्तका भ्राता और एतेषाच सुमाः सर्वे दवाखाायाच स'शिमाः। चित्रगुप्तव्रतकथा तथा पश्चिमाचलके कायस्थकुल- घोष: सूरध्वनाब्बासयन्द्रहासावसुतण । रविरवात् गृहश्चैव चन्द्रदेशातु मिवकः । परिचय-ग्रन्यसमूहमें उनको चित्रगुप्त का पुत्र बताया चन्द्रार्धात करणी जास: रविदासाच दत्तकः । है। प्राचीन पुराणमें चित्रगुप्तका चार-परिचय न मृत्यु नयस्तु गोडाच कप्यन्त ग्रन्थकारकः । रहने पौर महल्याकामधेनुकृत यमसंहिता तथा युक्ता दासको नागनाथौ च करणाश्च समुद्भवाः । प्रदेशीय कायस्थोंके . कुलग्रन्यसमूहमें चित्रगुप्तसे मृत्य भयसुती नातः देवसेमय पालितः । विभिन्न श्रेणीके कायस्थों की उत्पत्ति विहत होने पर सिव तथा खाामाः एते पद्धतिकारकाः। हमने प्राचीन मतके अनुसार सेनी वा सेनकको चित्र- मृत्यु भय कुलोमती मित्यानन्दो मृरेश्वरः। गुप्तका पुत्र ही माना है। युक्षप्रदेश में विभिन्न श्रेणोक तस्यापि शे सनाता: सप्ताशोनिः प्रकीर्तिताः । जो सकल कायस्थ मिलते, उनके मध्य श्रीवास्तव, कुलाचारप्रभेदेन दिसप्तत्यचलामवन् ॥" शकसेन, करण, सूर्यध्वज, अम्बष्ठ, रावधाना पौर चित्रगुप्तदेवके पाठ महाशय पुत्र हुवे थे। गौड़ कई श्रेणोके कायस्य बङ्गाल पहुंचे थे। इनके कश्यपने उनका जातकर्म किया। उनमें एक एकसे वंशधर विभिन्न स्थानमें इस समय विभिन्न श्रेणीमुक्त हो फिर बहुवंश (गोत्र ). उत्पन्न हथे। उनके मध्य गये हैं। मुतरां कुलप्रत्यके अनुसार वसु, घोष, मित्र, २१ वश ही प्रधान माने जाते हैं। उक्त एकविथति दत्त, सिंह प्रभृति उपाधिधारी कायस्य भी युक्तपदेशीय वंशो में सूर्यध्वन, चन्द्रहास, चन्द्रा, चन्द्रदेशक, रवि- श्रीवास्तव प्रभृति विभिन्न शाखाके प्राति होते और दास, रविरत्न, रविधीर और गौड़क कुलपति गिने गए। युक्तप्रदेश कायस्थाको भांति बालके घोष, वसु, उनका सन्ततिवर्ग देशनामसे भी पाख्यात है। मित्र प्रति विशद कायस्थ वंशधर त्रियवर्णक सूर्यध्वजसे घोष, चन्द्रहाससे वसु, रविरवसे गुह, चन्द्र अन्तर्गत ठहरते है। देहसे मित्र, चन्द्राधसे करण, ररिदाससे दत्त और गौड़से मिथिला। मृत्युच्चयकी उत्पत्ति है। फिर करणसे नाग, नाथ एवं दास और मृत्यु अयसे देव, सेन, पारित तथा कर्णाटकबंधीय महाराज नान्यदेव ई० यताब्दको सिंह नामक प्रसिह पतिकारकों ने जन्मलाभ किया। मिथिला पदार्पण करते हुवे अपने साथ मिज अमात्य मृत्यु जयके वशमें नित्यानन्द नामक एक नृपेखर कायस्य कुलभूषण श्रीधर तथा उनके १२ सम्बन्धियोंको पाविर्भूत हुवे थे। उन्होंके वंशसे ८७ घर कायस्थ लाये थे। वह जब समस्त मिथिलाके अधिपति निकले। उनमें ७२ घर कुलाचारके प्रभेदसे 'पचला' हुये, तब उनके सचिव श्रीधर और उन १२ कुटुम्बी कहलाते हैं। पन्य उच्च पद पर नियुक्त किये गये और उन्हें - उत्तरराढीय कायस्थकारिका जिस प्रकार खानपीनेके लिये बहुतसे गांव मिले। उस समयसे उक्त कार्यस्थ मिथिसामें ही रहने लगे। उसके पीछे चित्रगुप्तले विभिन्न शाखाके कायस्खोंकी उत्पत्ति मन्त्रिवर श्रीधर महोदयने अपने बहुतेरे. बन्धु- वर्णित हुयी है, चित्रगुप्तको पूजा पौर व्रतकथाके मध्य बान्धवोंको धौर घोर मिथिला बुलाया और उन्हें भी उसी प्रकार शोकशेस्तो देख पड़ी है- जीविका दिला करके मिथिलामें ही बसाया था। "चिवगुप्मान्वये गावाः शणु तान् कथयामि वै । गोडाखया माथु राय व मडकरपसेनकाः । कायस्थ चार बारको जा कर मिथिलामें बसे । अहिष्ठाना: श्रीवास्तव शैकसेनास्तव च। प्रथम बार (जैसा पहले लिख चुके है) श्रीधर और कुशलाः सर्वशास्त्रेषु सम्बछाया नराधिप।" उस श्लोक कुलग्रन्यके अनुरूप. हात भी.इस विषयमें

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घोरतर मतभेद विद्यमान है। बालके किसी किसी आदिपरिचय और इतिहास द्रष्टा है।