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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५१८

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२१८ कारक-कारकल पाशा दूर एवं समीपार्थ शब्दके योगमें षष्ठी और .पा २०५। कृत् प्रत्ययके योगसे कम विकल्पसे षष्ठी

पश्चमी विभक्ति लगाते हैं। शोऽषिदर्थस्य करणे पा ।३।५५ । पाती है। तुच्या रक्षोपमामा वायाऽन्यतरखाम् । पा राशर

अज्ञानार्थ झा धातुको करण विवक्षा षष्ठी होती तुल्य एवं उपमा शब्द व्यतीत अन्य तुल्यार्थ शब्दके है। अधीगर्ष दयेशा कर्मणि। पा २२२५२। स्मरणार्थ शब्दके योग विकल्पसे द्वितीया और षष्ठी होती है। फिर योगमे और दय तथा ईश धातुके प्रयोगमें कम- तुत्य और उपमा शब्दके प्रयोगमें नित्य षष्ठी लगती विवक्षारी षष्ठी पाती है। छनः प्रतियवे पा राश। है। चतुर्थी चागिण्यायुष्य-म-भद्र-कुशल सुखार्थ हितः। पा १०३ । - क धातुके गुणान्तराधान प्रथैमें कर्मविवक्षासे पठी आशीर्वाद, श्रायुष्य, मद्, भद्र, कुगल और सुखार्थ लगती है। रुजार्थानां भाववचनानामज्वरः । पाराश५४ । भाव शब्दके योगर्म तथा हित शब्दके योगमें विकल्पसे का विशिष्ट ज्वरभिन्न रोगार्थ धातुके प्रयोगमें कम चतुर्थों और पठो होती है। विवक्षासे षष्ठी होती है। चामिपि नाथः । पा २३५५। पाठी विभक्ति सम्बन्ध मात्र बता देती है। धात्व के आशीर्वादार्थ नाथ धातुके प्रयोग कर्मविवक्षासे पाठी साथ सर्वप्रकार असङ्गत रहनेसे सम्बन्धको कारकता लगती है। नासि-नि-म-हए-जाट-माथ-पियां हिंसायाम् । पा राश५६ । नों होती। उसीसे कारकका प्रधान लक्षण है,- हिंसाथै जास, नि-प्रहन, नाट, काय और पिप धातुके "क्रियाप्रकारोभूतोऽथ : कारकम् ।" प्रयोगर्म कर्मविवक्षासे षष्ठी लगाते हैं। व्यवधपणोः क्रियाके साथ कट कर्मादि भेदके अनुसार किसी समर्थयोः । पाराश५०। वि और अव पूर्वक ह एवं पण प्रकारका सम्बन्ध रखनेवालेको हो कारक कहते हैं। धातु प्रयोगमें कर्मविवक्षासे पष्ठी लगती है। दिवस्तदर्यस्य । हिन्दीमें कर्ताका 'ते', कर्मका 'को', करण का 'मे', पा ४३५८। द्यूतार्थ वा क्रयविक्रय व्यवहारार्थ दिव सम्प्रदानका 'लिये', अपादानका 'से' और अधिकरण धातुके प्रयोगमें कर्मविवक्षासे पठी होती है। कारकका चिह्न 'म' या 'पर' है। विमापोपसमें। पा२३५८ । उपसर्गयुक्त होते दिव धातुको २ वर्ष शिलाजात जन्च, भोले का पानी। (नि.) कामविवक्षामें विकल्पसे पठी लगती है। प्रेष्यन वोई वि प्यो ३ कर्ता, करनेवाचा। देवता सम्प्रदाने । पा ३६१। लोट् वितिके मध्यमपुरुषके कारकदीपक (सं. ती० ) कारकेन दीपकम्। दोपक एकवचनान्त इष और ब्रू धातुके देवता सम्पदान अन्नधारका एक भेद। इसमें कई क्रियावोंका अर्थमें हविष् शब्द कम होनेसे पठी विभक्ति पाती है। एक हो कर्ता रहता है। दीपक देखो। छत्वोर्थप्रयोगे कालेऽधिकरणे। पा राश। 'कत्वा' अर्थ प्रयोगसे कारकर (सं० वि:) कारं करोति, कार-क-ट। कालवाचक अधिकरणमें षष्ठी होती है। कई कर्मणोः क्रियाकारक, काम करनेवाला। नाति । पा ११३॥ ६५। कत् प्रत्ययके योगसे कर्ता और कर्ममें | कारकरदा (फावि.) कार्य करने में अभ्यस्त, निसे षष्ठी होती है। समयमामी कमयि । पा ३६६। कर्ता और काम करनेका महावरा रहे। क' उभय पर प्राप्तिको सम्भावना होनेसे कर्म में ही कारकवान (सं• पु. ) कारकोऽस्तपस्य, कारक मतप । षष्ठी लगेगी। कस्य च वर्तमाने । पा राश३०। वर्तमानार्थ मस्य वः। १ कारकविशिष्ट, मददगार। २ कतयुक्ता । का प्रत्ययके योगमें षठो पड़ती है। अधिकरणयाचिनय । कारकल-मन्द्राजप्रान्तके दक्षिण कमाड़ा जिलेको उदीपी तहसोलका एक नगर। यह अक्षा० १३१२ पा राश। अधिकरणवाचक त प्रत्ययके योग षष्ठी पाती है। न लोकावायनिष्ठाखलर्घटनाम् । पा २ ल, उ, .४०"० और देशा. ७५.१ ५.पू. पर अवस्थित बहुत है। लोकसंख्या प्रायः साढ़े तीन हजार है। उक, अव्यय, निष्ठा, खलथं और ढन् प्रत्यययोगमै षष्ठी होती अकनोभविष्यदाधमण्य यो:। पा २२००। दिनतक वहां जैनोंका प्राधान्य रहा। जैन-मन्दिरोंका भविष्यत् पर्थमें अक, भविष्यत् अर्थमें प्राधमयं और भग्नावशेष पाज भी देख पड़ता है। गोमटराय नामक उनको प्रस्तरमयो एक एक व्यक्तिराजल करते थे। इन-प्रत्ययक योगमें षष्ठी नहीं लगती छत्यानां करिव 1 -