पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५१९

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५२१ कारवक-वारखता पशुपरिमापसे उत्पन्न परिमार अपरिमाणको | कारमगत (सं० वि०) कारणं गच्कृति प्राप्नोति, कारण- अपेक्षा छोटा लग सकता है। जैसे महत् परिमाण गम-छ। कारणस्थ, सबब पर मुनासिर या मौक, फ। जन्य परिमायकारणीभूत परिमाणको पपेचा महत्तर कारणगुण (सं. पु.) कारणस्य गुपः, 'इ-तत् । रहता, वैसे ही अपरिमापजन्ध परिमाण भी उपादान कारणका गुण, सबबका :वसका। यही कार्यके गुणका उत्पादक है,- पशुतर ठहरता है। साधारण और प्रसाधरण भेदसे कारण दो "वारपगुणः वायंगुबमारमन्ते ।" (न्याय) प्रकारका होता है। खरच्छा, काल, पदृष्ट, उद्योग कारणका गुण हो कार्य के गुणको प्रारम्भ करता और प्रागभाव कई साधारण अर्थात् समुदय कार्यक है। जैसे रूप 'कारणका शक्ल क्षण प्रति वर्ण वस्त्र- कारण है। उससे उन्हें साधारण कारण करते हैं। रूप कार्यका भी शुक्ल अष्णादि वर्ण उत्पादन फिर जो विशेष कार्यों के कारण देखावे, वह पसा. करता है। धारण कारण कहाते हैं। लेसे कामपक्षके प्रति । कारणगुणपूर्वकत्व (सं० को०) कारणगुणः पूर्व यस्य पाचवीज है। पामबीन केवल पामवाचको अत्यत्तिके तस्य भावः त्व। कारणको गुणविशिष्ठता, सववके ही कारण है, कण्टकचकी उत्पत्तिके नहीं। सुतर्ग वस्फ. रखनेको हालत। उहावीन मत वृक्ष असाधारण कारण सिहये। कारणगुणोत्यवगुणत्व (सं० क्ली०) कारणगुणेन उत्पत्रो २साधन, वसोला। यह नैयायिकोंका मत है। यो गुणः तस्य भावः, त्व। कारपके गुणसे निकले ३ कर्म, काम। ४ करण, कारवाई। ५ वध, कत्ल । गुपका धर्म, सबबके वस्फ.से येदा वस्फ का काम । ६पादि, मूल, शुरू, जड़। ७प्रमाण, सबूत। न्यायशास्त्र में इसका सक्षण इस प्रकार निर्दिष्ट है- इन्द्रिय। शरीर, जिस्म । १० हेतु, वनह। "साश्यसमवायिमानसमवेतस्वसजावौयगुपजन्यवृषिः पृथक्त्वसंख्या- ११ उद्देश्य, मकसद। १२ उत्तरविशेष, कोई जवाव। बाविरिया माधनाइत्व्यन्या च या नातिप्ताहभशाविसत्वे सन्यपाशजस्वम् ।" १३ मद्यपानविशेष, एक पराबखोर । तान्त्रिक तन्त्रानुसार पूजादि कर मद्यपान करते हैं। उसका | कारणगुणोडव (सं० पु० ) कारणगुणन उद्भवो यस्य, नाम कारण है। १४ कायस्य, कायथ । १३ वायविशेष, बडुव्री। उपादान कारणके गुणसे उत्पन्न एक गुण। कोई वाना। १६ गानविशेष, किसी किसका गाना। कारपगुयोवगुण (सं• पु०) कारणगुणोद्भववासी १७ विष्णु। १८थिव। गुणायेति, कर्मधाम कारणगुणाजात गुण, सबके कारणक (सं० लो०) कारणमिव, कारण बाथै कन् । वस्फ.से निकला वस्फ,। भाषापरिच्छेदमें कारपके कारण, सबब यह शब्द यौगिक पदके पन्समें | गुणसे निकले गुण विखे हैं,-रूप, रस, गन्ध, पाता। अपाकन स्प, द्रवता, मेह, वेग, गुरुत्व, एकत्व, कारणकारण (सं० को०) कारयस्य कारणम् तत् । पृथकत्व, परिमाण और स्थितिस्थापक संस्कार। १ कारणका कारण, सबब-उन-सबब। यह भी पांच | कारणजल ( सं० को• ) कारणरूपं जलम् । अवाखको प्रकारके पन्यासिझमें पड़ता है। जैसे पुवके जन्म- सृष्टिका कारणस्वरूप जल, दुनियाको पैदा करनेवाचा विषयमें उसका पितामहै। पुवके अम्पका कारण पानी। भगवान्ने प्रयासको सृष्टिसे पूर्व केवल जल पिता और पिताके भाका कारण पितामोसा बनाया था। फिर उसमें वोन डालके ब्रह्माण्डको है। मृत पितामह कारपका कारण ठारत भी सृष्टि की पुनके प्रति पयामि।।२परमेम्बर। ३प्रयोजक, "अप एव ससादी वास बोनममासमना" (मरा) बमानवासा कारवता (सं...) बारपस भावः कार-तस् । Maraारस पवारवाले इपि प्रबोजवान पडे() ! सता, तसबीब, बारबका धर्म। VOL IV. 131