५३५ कात्तिकमहिमा-कातिको मुंड, तित, यय, कसाय, कानधान्य, नीवारधान्य, मध्यपदनो०। कार्तिक माममें किया जानेवासा प्रातःसानादि नियम। वास्तुक, हिलमीचिका पाक कामशाक, मूलक, सैन्धव एवं समुद्रलवण, गव्यदधि, गष्यवृत, कार्तिकशालि (सं० पु.) कार्तिक परिपक्षः शालिः, मक्खन न निकाला हुवा दुग्ध, पनस, आम्ब, मध्यपदती । कार्तिक मासमें पकनेवाला धान्य, हरीतकी, तिम्सिाड़ी, जीरक, नागरग, पिप्पली, कदली, कतिकहा धान। सबली, आंवला, इक्षु और गुड़ । असिन्धपक्क ट्रव्य द्वारा कार्तिकसिद्धान्त (सं० पु.) कातिनी पौर्णमासी इविश्वावकी व्यवस्था है। नारदीयपुराण के मतसे मत्स्य, घमिन् मासे, कार्तिक-ठक् । १ कार्तिक मास, कूर्म और अन्यान्य सकस्त कन्तुका मांस खाना निषिद्ध कातिकका महीना। २ कात्तिकोयुक्त पक्ष, जिस है। क्योंकि वैसा करनेसे चण्डावतुल्य बनना पड़ता पखपारमें कतिकी पड़े। ३ कार्तिक नामक एक है। महाभारतमें भो समांस परित्यागका विधान | वर्ष। है। ब्रह्मपुराणके मतसे घोल, पटोल, कदम्ब और कात्तिको (सं• स्त्री०) कात्तिकस्य इदम्, कात्तिक भण्टाको भोजन करना मिषिद्ध है। फिर कांस्यपाबमें | अण-डीप । १ देवशक्ति विशेष। कौमारी देखो । भी खाना न चाहिये। कार्तिक मास ही उत्यान २ नपपविकाकी जयन्तीस्य गक देवी। ३ कृत्तिका एकादशी होती है। उस दिन हरि शय्या त्याग नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा, कतिको। कार्तिकीको ब्रह्मावत करते हैं। मनुषों को यथानियम उपवाम कर श्री. (विठ्ठर )में गङ्गास्नानका बड़ा मैना लगता है। हरिको पर्चना करना पड़ती है । 'पुरागाके मतानुसार कासि केय (सं० पु. ) कृत्तिकानामपत्यं पात्य- कार्तिक मासमें जब सब कार्य करनेमे पुण्य मिलता त्वेन इति शेषः, क्षत्तिका-टक । मौष्णे टक् । पाहा । फिर उस कार्य प्रतिपालन न करनसे नरकादि शिवपुत्र । पार्वती के साथ खेखते समय शिवका वीर्य विविध यातनायें उठाना पड़ती है। भूमि पर गिरा था। भूमिने पग्निमें और अग्निने २ वर्ष विशेष, कोई साल। कत्तिका वा रोहिणी फिर भरवममें से निश्व किया। वहां कृत्तिका मसनमें सहमतिका उदय वा अस्त होनेसे कार्तिक गणने उसे उठा पाला-पोसा। (अयवर्तपु.) वर्ष कहाता है | ३ कार्तिय कल्पविशेषमें कार्तिकेयने पुमरि अग्निपुत्ररूपसे समग्रहण किया था। उसी समय अग्निके वीर्य और "हा वान् हत्तिकाः सर्वाः मविहनमानसाः । गङ्गाके गर्ममे उनका जन्म दुश। उसके पीछे कत्तिका- कारिक कथयामासुञ्चन्त' अवतकमा ३" (अप्रायवत पु०) गणने उन्हें प्रतिपालन किया। कत्तिफागपके सनपान ४.चरकादि चिकित्साशास्त्रके कोई संग्रहकार। काल उनके छह मुख उत्पन्न हुये थे। फिर कृत्तिका- ५ बम्बई प्रदेशकी एक जाति। इस जातिके लोग गणक प्रतिपाशित होनेसे ही वह कार्तिकेय नामसे भेड पादि पशुओंको मार कर उनका मांस वेचते विख्यात हुये हैं। (रामायर) है। कसारका काम करनेसे ये गांवके वाहर रहते हैं एभय नमोका एक ही कारण समझा जाता है। और हिन्दू इस नातिके लोगोंको महौं कृते । दुर्दान्त तारकासुरके उत्पीड़नसे देव बहुत व्यतिष्यस्त बार्तिकमहिमा (सं० पु.) कात्तिकस्य महिमा हो गये थे। बहुचेष्टासे भी वह असुरको मार न माहाकाम, इतत्। १ कार्तिक मासका माहामा। सके। फिर उन्होंने मासे जाकर उसके निधनका २ कार्तिकेय देवका माहामा कात्तिकमाहामा (सं.ली.) पद्मपुराणका एक उपाय पूछा। ब्रह्माने उनमे महादेवका ध्यान तोइनको कहा था। तदनुसार उन्होने कन्दर्पक अध्याय। कार्तिकवत (सं.सो.) वाप्ति के कर्तव्यं व्रतम्। साहाय्यसे महादेव का ध्यान भन किया। कन्दवाण- विड महादेवने पास पार्वतीके प्रति सामिलाप दृष्टि -
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५३४
दिखावट