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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५४४

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सकता कापास ५४५ यथा-नन्दमाःही, अनारदाना, कबुतरखोप, सकूत, सूत इङ्गालैण्ड़से पाता है। परले इम देशमें वस्त्र बनाकर विदेश भेजते थे। अाजकल मिर्फ रुईको बछादार और कुडिदार। ४ जामदानी-प्रकारेज इसको नैनसुख शइते रफतनी होती है । सुतरी वस्त्रषधन करनेवामें पनिक अन्नहीन और अन्यव्यवसाय-प्राधित है। थे। साधारण यह बूटेदार होती थी। यथा-सुबरन- आसाममें आज भी देशो कार्याससे देशी वस्त्र बूटी, छब्बाल, दुचनीजान्त मेल, तिरछा। एतव्य- तीत ढाकेको धोती, प्रीदनी और साड़ी चिर. प्रस्तुत होता है। स्त्रियां की सूत कातती और कपड़ा वुमती है। विन्तु वहां भी विनायती वस्त्रका प्रादर प्रसिद्ध है। टाकेके सन्चार्योने दिखाया घऔर दिखाते भी क्रमशः धढ़ रहा है । घासामियोंके बहुतसे कपड़े है-रुईका बागा कितना बारीक बन कपाससे बनते हैं। और उम धागेसे कैसा उमटा कपड़ा बुना जा स- युक्तप्रदेशके सिकन्दराबाद और बुलन्दशहरमें कता है। इसके सम्वन्धमें एक गल्प है। धारीक बदुत यह बात तैयार होता है। उसके किनारे कपड़ा जपर निखे नामोंको पढ़ते ही समझ पहती है कि जरीको गोट लगती हैं । दुपट्टे और पगडीमें हीजरीको मुसलमान बादशात्रों के समय उन वस्त्रों का विशेष गोटका अधिक व्यवहार है। सिकन्दराबादके दुपट्टे पादर रहा । कहते हैं कि औरङ्गजैवको एक कन्या बहुम अच्छे होते हैं। प्राजमगढ़का बना बारीक कपड़ा उनके निकट उल टाके वस्त्र पहनकर एहुची | नेपाल में बहुत खपता है। अवधका शरवती, मममन, थो। पिताने उसे भर्त्सना दी कि यह लजाहीन | पड़ी और तारन्दम सूक्ष्म वस्त्र प्रसिद्ध है। रायबरेली- है। उत्तरमै कन्धान कहा कि उसने सात तरहका के जई नामक स्थान, काशी और फैजाबादक टाईमें कपड़ा पहना था। नवरच अलोवर्दी खान्के समय अतिचमत्कारी मुख्य वस्त्र प्रस्तुत होता है। किन्तु किसी जुनाईने एक धोया कपड़ा धामपर सुखानको अवधक अधःपतनमे उक्त कारकार्य भी बिगड़ गया है। उसकी गाय वहां घास चरने गयो । रामपुर का कार्यसनिर्मित खेमा कलकत्ते को प्रदर्शनी. गायने कपड़ेको घास समझ चवा लिया। सूक्ष्मताका मैं पुरस्कृत हुवा था। मुरादावाद, प्रतापगढ़, कानपुर, इससे पधिक परिचय दूसरा क्या हो सका है। उa ललितपुर, शाहपुर, मिसौली, अलीगढ़, झांसी सूक्ष्म वस्त्र प्रस्तुत करने में बड़ा समय लगता है । २० अन्तर्गत मऊ, आजमगढ़ के अन्तर्गत मज, सहारनपुर, हाथ लम्या और २ हाथ चौड़ा वैसा कपड़ा बुनने में मेरठ, और घागरा अञ्चन्नमें नानाविघि कासवस्त्र ५१६ मास बीत जाते हैं। तिसपर भी ग्रीषके समय बनता है। उसमें कितना ही पाज भी विदेश भेना बुननेका डौल नहीं बैठता । वर्षाकात हो वैसे जाता है। एतदव्यतीत गाढ़ा, गनी और धोती जोड़ा पासवस्त्रके बुननेका उत्तम समय है। उसका युक्तप्रदेशके प्रायः सकन्न स्थानों में प्रस्तुत होता है। देशक मूथ तीन चार सौ रुपये से कम नहीं लगता । जो सामान्य लोग अधिकांश वही वस्त्र व्यवहार करते है। स्त्रिया वैसा सूक्ष्म सूत कातती थों, उनमें अनेक पनाबप्रदेशके पूर्व एक प्रकारके मसन्निनसे सुन्दर न रही दो एक बाज भी बनी हैं। पाज उन पगड़ी बनती थी। वह वस्त्र प्राजकात देख नहीं पड़ता। वस्त्रोंका विज्ञकुल पादर नहीं होता। फिर पाया होगियारपुर, सिरसा, जानन्धर, सोधियाना, शाहपुर, भी नहीं कभी उनका पादर होगा । अाजकल गुरुदासपुर और पटियालेमें पगड़ीका कपड़ा बनता विलायती कनके कपड़ेसे देश भर गया है। सौभाग्य- है, किन्तु वह पूर्वको भांति. उत्कृष्ट नहीं होता। क्रमसे पाज भी देशके कुछ लोग देशीय कार्यास- रोहतक तजेच नामक एक प्रकारका अपेक्षाकृत वस्त्र पहनते हैं। उसीसे हिन्दुस्थान में स्थान स्थान : उल्का ष्ट मसचिन बनाया जाता है। जालन्धर, घाट पर देयी कपड़ा थोड़ा बहुत बनता जाता है। किन्तु नासक मारकानकी भांति मोटा कपड़ा होता है। Yol, 187 डान्ता था। IY