पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५४६

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५४० कापासक-कामण कामका (सं० पु० लो०) कार्यास स्वार्थ कन्। और तिल फैला देना चाहिये। फिर उसके मध्य कार्यास वृक्ष, कपासका पेड़। इसका संस्कृत पर्याय देशमै कार्पासवस्वनिर्मित पर्वत स्थापना कर यथाविधि कार्यास, कार्यासो, सुगडकरी और समुद्राता है। पूजा समापनान्त कृयास्त मन्त्रपाठपूर्वक डिजातिको कासको (स्त्री) कार्यासो, कपास। . दान करते हैं। उस कासवनराशि विंशति भार कार्यासतेल (E- ली.) नाडीव्रणका लविशेष, कपासका होनसें उत्तम, दश भार होनेसे मध्यम और पञ्च भार सेम । सिन्नका देश ४ शराधक, जल १६ राषक और होनेसे अधम गिना जाता है। उसमें विविध धाग्य कार्यास मूलं तथा हरिद्राका कारक १ शरावक यथाविध पभूति और नानाविध औषधि तथा रस सत्रिविष्ट घकानये यह तेल बनसा है। (रसरवाशर) करते हैं। कार्पासपर्वत चारो दिकखणं शिखर, कामधेनु (सं. स्त्री०) कार्यासवस्त्रनिर्मिता धेनुः, विविध रत्न पीर नानाप्रकार मध्यभोज्ययुक्त चार मध्यपदक्षोपी कर्मधा। दानके लिये कार्यास निर्मित कुलाचन स्थापन कर दान करनेका विधि है। इस धेनु, कपासकी गाय । वराहपुराणमें इसके दानका प्रकार दान करने से स्वीय वंश बार होता है।" विधि कही है। यथा,-"विश्वनक्रान्तिको, युगाम्मके कार्याससौत्रिक (सं० वि०) कार्यासस्वेए नित्तः, दिम और ग्रहयोड़ा, दुःसनदर्शन एवं परिष्ट दर्शनादि | कार्यामसूत्र ठक्, हिपदाधिः। कार्पासके सूत्र बारा अमलात पड़नसे पवित्र देवालय पथवा विशव गोचारण | मिर्मित, कथासक सूतका बना हुवा। स्थलपर गोमय द्वारा दामस्थान लोपना चाहिये । कार्यासास्थि (सं० को. ) कार्पासानों परिवं, तत् । फिर उसके अपर कुथ तिल फैला देते हैं। उसके कार्याधीज, विनीला। पीछे उक्त स्थानके मध्यस्यचमें धेनु स्थापनकर पत्र, कार्यासिक (सं• वि.) कार्पासालातम्, कामि-ठक । माध, अनुलेपन, नैवेद्य और धूप दीपादिसे कार्यास द्वारा निर्मित, कपाचका बना पुवा । चाहिये। अमन्तर कुशहस्त दाममन्त्र पढ़ यहाके साथ कार्यासिका (स• स्त्री.) कार्याची खाथै कन-टाएँ कार्यासधेनु विजातिको देनी पड़ती है। यह ४ भार पूर्वखः। कार्पासी, कपास । स्त्र द्वारा निर्मित होनेसे उत्तम, २ भार बछ द्वारा कार्यासी (सं० स्त्री.) कार्यास-बातिवात् डोपं । मिर्मित होने से मध्यम, और १ भार वस्त्र द्वारा निर्दिस रक्त कार्यासचुप, साल कपास । इसका संरक्षन पर्याय - होनिमे पधम गिनी जाती है। उक्त परिमाणके बदरा, तुण्डिकरी, समुद्रान्ता, सारियो, चष्या, तुला, चतुर्थाश हारा बस बनाना पड़ता है। फिर कार्यास- गुड़ तुकेरिका, मकडवा, वि, और वादर है। धेमुके सकन दन्त मानाविध फल हारा, पुर रोप्य | काम (सं. वि.) कर्मसु पोल पर छात्रादित्वात् कः, हाग और अङ्ग स्वर्णधारा निर्माण करते हैं। उसका निपातनात् साधुः। १ फवको पाकाहा छोड़ कम- गर्भस्थल विविध रखसे पूर्ण किया जाता है। इस करनेवासा, जोमतीमा मिचनेको खारिश न रख काम प्रकार यथाविधि धेनु दान करनेसे अन्तिम समय करता हो। २ कर्मयोस, कामकानी । इन्ट्रलोक मिलता है। कामक, कामुक देखो। कार्यासनासिका (सं० स्त्री.) कार्यासस्य नासिका इव, कामण (सं.लो) . कमै एव, कर्म चाय भए । उपसि । सङ, सकला, तक। नयुशवान कर्मयो । पा र १ मूलकम, जादू, कार्यासपर्वत (सं० पु.) कार्पासवस्त्रनिर्मितः एवैतः, टोना। औषधादिके मूलसे जो वासन, उचाटन, मध्यप । दामके निमित्त कार्यासवम्बनिर्मित एवंस, मारय, वशीकरण प्रमति कार्य किया जाता, वही कोले कपड़े का पहाड़ प्राण्डपुराध में उसके दानका शर्मण कहता है । ३ मन्नास्वादि योग । (वि.) विधानादि इस प्रकार लिखा है,-"देवाशय प्रभृति क्षमसाध्यत्वेन अस्वस्य, कर्मन्-पण। १ कर्मदछ, पवित्र स्थानका कियदंश गोमयसे लोप उसपर कुछ। काममें होषियार । पूजा करना