करते। U - ५५.. कार्य भ्रष्ट कार्याकार्य विचार कार्यभ्रष्ट (सं०वि०) कार्यात् भष्ट्रः, ५-तत्। कार्य मात्र पाता है। नैयायिक उस बात को स्वीकार नहीं श्युत, कामसे छूटा हुवा। उनके कथमानुसार भनित्य होनेसे गय्दकी कार्यवत्ता (सं० स्त्री० ) कार्यवती भावः, कार्यवत्-तल। उत्पत्ति होती है। अनित्यताक सम्बन्धमे वह उक्त कार्यविशिष्टता, काममें लगे रहनेको हालत । 'शब्दोऽनित्यः प्रयत्नानन्तरीयकत्वात्' भनुमान वाक्य को कार्यवत्व (सं० ली.) कार्यवत्-त्व । कार्यवत्ता, काम ही प्रमाण समझते हैं। मीमांसक उक्त अनुमान काजीपन। वायमें यों भापत्ति लगाते हैं,-'इस अनुमानमे कार्यवश (सं० पु. ) कार्यस्य वयः वश्यता। १ कार्यका | शब्दको पनित्यता सिद्ध हो नहीं सकती। . क्यों कि अनुरोध, कामको मातहतो। (त्रि.) २ कार्यके प्रयत्नासम्यादमाय वस्तु पनेक है। अर्थात् नित्य पौर वशीभूत, कामके मातहत। जन्य सकल वस्तु प्रयतम दारा प्रात्मनाभ करते है कार्यवस्तु (स. क्लो०) कार्याथै वस्तु, मध्य पदलो । सर्वदा एक भावमें अवस्थित रहते भी प्रयत्नहारा कार्यनिष्पादनके लिये आवश्यक ट्रव्य, काम करनेकी मित्य वस्तुको उपाधि हो सकती है। जैसे यवपूर्वक जरूरी चीज। वस्त्र उठा कर फेंक देनसे वस्त्रद्वारा पमित्यताको कार्यवान् (म• पु०) कार्यमस्यास्ति, कार्य-मतप स्थिति स्थिर होना कठिन है। उसी दोषको वह मस्य वः। कार्यविशिष्ट, काममें लगा हुवा। "कार्याक्षम" वा "कार्य विशेष" जाति कहते है। कार्यविपत्ति (स' स्त्री०) कार्येषु विपत्तिः, ७-तत् । कार्य सम प्रभृति जासिस मुह दोपदाताकै पक्षको कार्य के सम्पादनमें उपस्थित हनिवाली विपद, जी क्षतिकारक है । उसोगे वह “असदुत्तर" और "लव्या- श्राफत काम धारने में पड़ जाती हो। घातक" उत्तर नामसे अभिहित होते हैं। जाति देखो। कार्य शब्दिक (म त्रि०) कार्यः शब्द इत्याह, पाय- कार्य मागर ( • पु.) गुरु कार्य, बड़ा काम। शब्द-ठक । नैयायिक विशेष, एक मन्तिको। शायं साधक ( स० वि०) कार्य साधयति, कार्य-साध. शब्दको कार्य अर्थात् अनित्य मानते हैं। इससे इनका णिच् पनुस्। कार्यसम्पादक, काम पूरा करनेवाला । यह नाम पड़ा है। कार्य साधन (स'• को०) कार्य स्व साधनं निष्पादनम्, कार्य शेष (संपु०) कार्यस्य शेषः, ६-सत् । १ मारब्ध ६ तत्। कार्य सिद्धि, कामयांग। २ कार्य निष्पादन कार्य को निष्पत्ति, शुरू किये ये काम का खातिमा। करमेका उपाय, काम पूरा करनेको तरकोय । २ कार्य का पवशिष्ट अश, कामका वाकी हिस्सा। कार्य सिबि (मजो) कार्य समिति तत् । कार्य सन्देह (स.पु.) कार्य कार्यस्य निष्पत्ति १ कर्तव्य कर्मको निष्पत्ति, कामयाबी। विषये सन्देशः, ७-सत्। कार्य को निष्पत्तिमें प्रनिश्च " विधि कार्यसिविरद्वला यो साये मयम् । (सिविल) यता, कामके पूरा होने में शक । कार्यसम (स.पु.) न्यायके मतानुसार चतुर्विशति ३ज्योतिषोश एक सहम। नातिके अन्तर्गत एक जाति । लक्षण इस प्रकार - कार्यस्खान (सं• को.) कार्यस्य सानम् तत् । १ कार्य "मयनकार्यानकत्वात् कार्यसमः।" (न्यायसूत्र, EN) निष्पादन करनेका स्थान, कामको जगई। प्रयव सम्पादनीय वस्तु भनेक है। उसीसे कार्य- | कार्या (सं. सी.) व-सत्-टाप् । कारीहक, एकपेड़ सम नामक कार्य विशेष जाति होती है। कार्यहन्ता (सं.वि.) कार्य विनाय करनेवासा, जो "मब्दोऽमित्यः प्रयन्तानतरीयकलात् स्वादि।" काम विगाड़ता हो। मीमांसक शब्दको नित्य मानते हैं। उसीसे उनके कार्याकार्यविचार ( सं• पु. ) कार्यक्ष कार्यकं तयोः मैतमें शब्दको उत्पत्ति नहीं होती। किन्तु किसी 'विचारः एतत् । कर्तव्य और प्रकर्तव्यका विचार, कारने और न करने सायक कामका साथ । वसमें पाघात लगने पर उस पाघाससे शब्द प्रकाश यह २ अभी. सिधि। जैसे-
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५४९
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