पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५५

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कम्बलिवाहक-काम्बोज कम्बन्लिवाद्यक (सं० ली.) कम्बनः साना- अस्त्यस्य, जिसके गले में शायो तरह-तीन सतर रहें। "कम्व बोकः कम्वल इनि; कम्बनिमिरचते, कम्बलिन्-वह पुकराधो मतायुको भवेन्मम ।" (भारत ११५१) कर्मणि ण्यत् खार्थे संज्ञायां वा मन्- गोशकट, कम्युग्रीवा (सं० वि०) कम्बुरिव रेखात्रययुक्ता दैलगाड़ी। इसका संस्कृत पर्याय-गन्द्री और ग्रोश, उपमि० । शङ्गको भांति रेखावययुक्त ग्रीवा, गान्द्री है। राष्ट्रको तरह तीन सतर रखनेवानी गर्दन । कम्बली (सपु०) कम्बल: गलकम्बलः प्रशस्तो | कम्बुपुष्पी (सं. स्त्रो०) कम्खुवत् शुच पुष्यं यस्याः, ऽरत्यस्य, कम्बल-इनि। १ वृष,- बैल। (वि.) बहुव्री०। सपुष्यो, सखौनी। २ कम्बलाच्छादित, जनी कपड़ेसे ढका हुवा। कम्बुमालिनी (स' स्त्री० ) कम्बुतुल्य पुष्याणां माला- कम्बलीय (सं.वि.) कम्बलाय हितम, कम्बश छ । समूहः अस्त्यस्याः। शवयुष्यो, सखोली। मेषलोमयुक्त, जनो कपड़ेके लायक। कस्व .(० वि०) कम्ब-कू निपातनात् साधुः । कम्बला (सं• लो०) कम्बल-यत् । कम्बलाच सशायाम् । पन्दूढम्फ नम्बू कम्य कफेलूकर्कन्धूदिधिषु । उण १६६५ । १ अपहरण- पा शा। शतदनपरिसित अर्या, सौपल जन । कारी, चोरानेवाला । ( पु० ) २ तस्कर, चोर। कम्बालायो (सं० पु.) अहचिल्ल, किसी किस्मनी ३ वस्तय, चड़ी। (स्त्री०) ४ शवः । चौल। तम्बूक (स• पु० ). कम्बू स्वार्थ कन्। १ कम्य, कम्बि (सं० स्त्री०) कसु वाहुलक्षात् विन्। १ दर्वी, शह। (वै०) २ प्रनत्वक, धानको भूमी । हत्या, चम्मच ! २ वंशांश, बांसको खपाच। ३ वैशा- कम्ब पूत (स० पु०) शह, खरमोहरा। हुर, बांसको कोपल। कम्बो-जातिविशेष एक कौमा आजकल इस जातिके करिखका (सं० स्त्रो०) वादिनविशेष, एक बाजा। लोग पञ्जाब और युक्तप्रदेशके विजनौर जिले में रहते कम्बु (स० पु० ) कम-उण बुकम् । १ शत, घोंघा, हैं। पूर्वका कम्बो सिन्धुनद छोड़ कावुलके उत्तर कौड़ी। २ वलय, सौपको चूड़ो। ३ शामुक, घोंघा । प्रदेशमें वास करते थे। संस्कृत शास्त्र में इन्हों को ४ हस्ती, हाथो। ५ चित्रवर्ण, काई-तरहका रंग। 'काम्बोज' और इनके पूर्ववासस्थानको 'कम्बोज' कहते ६ ग्रीवादेश, गटैन । ७ नलक, नली, इड्डी। ८ मान है। उस समय यह सकन भारतीय क्षत्रिय रहे। भेट, एक नाप। किन्तु मुहम्मद गजनवीने इनमें कितनों ही को मुसल- सम्वुक (सं० पु.) कम्बु स्वार्धे कन्। १ कम्ब, मान् बना डाला ।- सुगल इनसे बड़ी घृणा रखते थे। शङ्खः । २ नोचपुरुष, कनीना खस। फारसीमें कहते हैं, कम्बुकण्ठो (सं• स्त्री०) कम्युरिव कण्डो ऽस्याः, "पोषल कवो दोयम अफ्गान् सोयम बदनात करमोरी।" कण्ठ डोष । शड्डकी भांति कण्ठ में तीन चिह्न रखने-सम्बोज (सं० पु.) कम्व-रोज। १ शवविशेष, वाती स्त्रो, निस औरतके गलेमें शवकी तरह तीन किसी किस्पका खरमोहरा या घोघा । दाग रहें। विशेष, एक हाथी। ३ देशविशेष, एक मुल्क । यह कम्बुककुसुमा (सं० स्त्रो०) शष्टपुष्पी, सखौनो । अफगानिस्तानका एक भाग है। इसकी अवस्थिति कम्बका (स. स्त्री०) -अश्वगन्धायक्ष, असगधका गान्धारके निकट मानी जाती है। किन्तु शक्तिसङ्गम- पेड़। अश्वगन्धा देखो। तन्त्रमें लिखा है,- कम्बुकाडा ( स० स्त्री०) कम्बु चित्रवर्ण का "पाशालदेशमारभ्य स्वेच्छादिषपूर्वतः । यस्याः, बहुव्री। अश्वगन्धाक्षुप, पसगन्धका माड़। काम्बीमदेथी देवेशि वाजिराशिपरायणः।" कम्बुग्रीव (सं० वि०) कम्युरिव रेखात्रययुक्ता ग्रीवा पखावसे लगा म्लेच्छ देशके दक्षिणपूच पर्यन्त कम्बोज यस्य। शहकी भांति रेखात्रयविशिष्ट गनदेशयुक्त, । गिना जाता है। यहां विस्तर घोटक उत्पन्न होते हैं। - . २ इस्ति-