पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५६

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. पहले वाधीन रहते समय कम्बोज राज्य बहुदूरः कम्बोज किन्तु कोई कोई खम्भातको कम्बोज कहता है। श्यामीपसागर एवं चीनसागर पार पश्चिम स्यामदेश रघुछ देखते-महाराज रघुने पारसीकों, सिन्धुनद पड़ता है। तौरवासियों और क्षणोंको इरा कम्बोजदेशीय राजांवों- को जीता था। काम्बोजोंने उनके निकट प्रबनत हो पर्यन्त विस्तृत रहा। धर्मप्राण भारतीय राक्षा इस उत्कृष्ट प्रख और राशीकत सुवर्ण उपढौकन-स्वरूप दूरदेश पर राजत्व करते थे। उनका कौतिकश्चाय,. प्रदान किया। फिर रघु प्रश्वक साहाय्यसे गौरीगुरु धर्मानुराग, देवहिजमक्तिभाव और असाधारण शौर्य- पर्वतपर चढ़ गये (रघुवंशय सर्ग) वीर्यका गौरव बहुप्रतवर्ष गत होते मी आज कम्बोजके रघुवंशको उन्न वर्णनासे ममझ पड़ा-कम्बोज नगर, कामन, पर्वतगहर, शिताफलक तथा प्रकार देश सिन्धुनदके सर और गौरीगुरु पर्वतके निकट प्रकाण्ड देवमन्दिरादिक भग्नावशेषपर दैदीप्यमान रहा। 'मार्कण्डेयपुगण, गौरग्रीव और महाभारतमें है। इस देशके प्राचीन भारतीय राजावों का इतिहास सुवास्तु नदीके साथ गौरीनदीका उल्लेख मिलता है। इतने दिन खनिगर्भ में मणिको भांति छिपा था। यह सुवास्तु और गौरीनदी वर्तमान पक्षावके उत्तरस्थ किन्तु पन्तको फरासीसी पण्डितोंने अपनी गमीर स्वात प्रदेश उत्तर अवस्थित है। गवेषणाके प्रमावसे उसे साधारण समभ खोल दिया। सुतरां रघुवंशका मत मानते वर्तमान सिन्धु और भारतीयोंके लिये यह न्य न गौरवका विषय नहीं। लन्दई नदीक उत्तरांध पूर्वकाल कम्बोज नामक जन दीन दरिट्र धर्मभोर भारतीय अपने प्राचीन राजावों पद रहा। पहले कम्बोजवासी संस्कृत भाषा बोलते द्वारा सुदूरवर्ती कम्बोज राज्यमें स्थापित अतुलनीय. (निरुत शर) वो देखो। कौतिको अब समझ सकते हैं। जिसे हम भारत- (वि०) ४ कस्बोनदेशवासी,खभातका रहनेवाला। वर्ष में भी ढूंढ नहीं पाते, उसके अनेक उदाहरण इस कम्बोज (कम्बोडिया)-जनपदविशेष, एक मुल्क। सामान्य देशमें देखाते हैं। यह अक्षा ८.४७ से १५.३० पर्यंत विस्तृत है। पुरामध्यवर्तमान कम्बोजके बकु, वक, सोखि,. इससे उत्तर लेयस देश, पूर्व कोचिन-चीन, दक्षिण में, धमनम, फनम, चिसौर पर्वत, बोम्बङ्ग जिले (प्रान- कन्त यह श्याम राज्यके अन्तर्गत है), फिमनक, कैदि. • "विनीतास्वयमातस्य सिन्धुतोर विचष्टमः । घर पौर भङ्ग धमनिक नामक स्थान प्राचीन कर्णाटौ तब मायरोधामा म पु म्याकविक्रममा अक्षरके अनेक संस्कृत शिलालेख मिले हैं। छन कामोन्नाः समरे सीदतम्य वीर्यमनीश्वराः। शिलालेख पद से समझ पड़ा-पूर्व कालको कम्बोन गमालानपरिशिष्ट रपोसार्धमानवाः । राज्य पश्चिम थामदेधसे पूर्व अनामके दक्षिांश तेषां मदशभूयिष्ठास्तदा द्रवियरामयः। पर्यन्त विस्तृत रहा। इसके माचीन अधिवासी उपदा विवियः शमोनसेका; कोशलेवरम्। सती गौरीगुरु' नुमावरीक्षायसाधमः।" (रषु सर्ग) 'कम्बूज' वा 'काम्बोज' कहाते थे। उक्त काम्बोज + महिनापने 'गौरीगुरु'का पर्थ हिमालय लगाया है। किन्तु इस वर्तमान कम्बोज राज्य प्रादिम पधिवासी न रहे। स्थानपर गौरीगुरु एक खन्न पस समझ पड़ता है। सामान्य प्राचीन मौगोलिक टमिने 'गोरिया' (Goryala) नामक एक वनपदका "तक्षशिलासे पनतिदूर रोमविषयपर एक धर्म पन्नेख किया है। (Ptolemy, BK. VII, ch. I.) इसी जनपदक निष्ठ विचक्षण नृपति राजत्व करते थे। उनके पुत्र मध्य गौरीनदी प्रवाहित है। यह नदी वर्तमाम काबुल नदीमें जा गिरी युवराज 'फखग' किसी गहित कमैके लिये राज्यसे है। फिर उसे ऋक्संहिता पौर महामारसने मौ गौरीमदी को लिखा निर्वासित हुये। उन्हीं राजकुमारने नामा स्थान है। उसकी चारी और पर्वतमाला खड़ी । कालिदासने सौ पर्वत- घूमफिर इस कम्बोज. राज्य में प्रा उपनिवेश स्थापन मालाको गौरीगुरु का है। विशेषत: इस परंतसे की गौरीमदी निकाली है। र पार्वतीय प्रदेशको की टोमिने नीरिया' बवाया। कर दिया। प्रवाद है-