पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५५६

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कालकन्द-कालकूट: ५५७ पच्ची, एक चिड़िया। पीतमालाच, असनेका पेड़ । काल काम (संपु०) असुरविशेष, एक गक्षस । कालकाज (३० पु.) १.वेदो कालचिन्हयुक्त पशभेद, कान्नकन्द (सं० पु. ) महाकन्द, बड़ा डचा। कालकग्दक (पु.) काल: कन्द इव कायति कारी नियान्का एक मानवर। २ राशिभेद । प्रकाशते, काल कन्द के.क यहा कालं कष्णसप कन्दति काखकार (स० वि०) समय बनानेवाला, जो वक्त पैदा करता हो। खरूपतया स्पर्धते, काल-कदि-अच् स्वार्थ कन् । जलसर्प बालकारित (स.नि.) समयपर किया पनिहा सांप हुवा, जो वक्तसे वना हो। कासकन्ध (सं० पु.) समालका पेड़। कालकन्या (संस्त्रो०) जरा, बुढ़ाया। | कालकामुक ('• पु०) खरदूषण को सेनाका एक कालकमुष्क (स' पु० ) कृष्णपुष्प, धण्यापाटलिका, अधिपति ! इसे रामने मारा था । (रामायण) काले फलका वनपक्षास ढाक । कालकात . (पु.) कालं कलयति नोदयति, कालकरन ( स० पु.) कान्ता कना। कान-णिच्-कान-मण । १ परमेश्वर '२ मन्द्रान प्रदेशस्थं कासकरण (क्ती. ) समयका स्थिरीकरण, वनका टाइवरका निकटवर्ती एक प्राचीन तीर्थ स्थान । कालकोति (सं० पु.) एक राजा, यह असुर राधा कालकणिका (सं. स्त्री०) कालस्य कणि का इव, उप- सुपर्ण के समान थे। मित समा०। प्रवक्ष्मी, बदकिस्मतो । कालकील (सं० पु.) कालं प्रक्वतकालोपयुक्त सुप्र: कालकर्णी (सं.स्त्री.) काम्नः कर्णोऽस्था, काल-कर्ण सङ्गादिक कौनयति पाहणेति, काल-कोल-प्रण। अच् डीप । अलक्ष्मो, बदकिस्मती । चलको देखो। कोलाहल, इला। किसी प्रसङ्गके समय कोलाहस्त करलकम ( स० क्लौ० ) कान्त अनिष्टकारि कर्म, उठनसे वह प्रसङ्ग दव नासा और 'कानकोख कर्मधार पनिष्टकारक कार्य, बुराई पैदा करने कहलाता है। कालकुण्ठ (पु.) कालेन कालरूपिणा परमखरए "येव बोतितास महता कामकर्मपा" रामायण कुण्ठाते पसौ, काल-कुण्ठ कर्मणि धन । यम। २ मृत्य, मौत। | काल कुष्ठ (स'• लो) कालात् कृष्णपर्व तात् कुथने, कालकलाय (सं० पु. ) कासः कृष्णवर्ण: कक्षाया, काम-कुष कर्मणि क्त। पायसीय मृत्तिकाविशेष, कर्मधा। १ वष्यकलाय, काला मटर। २ काक्षा कष्ट पहाडको मट्टी । कमुष्ठ देखौ । उड़द । कालकूट (सं• पु० क्लो०) कालस्य मत्योः कूटं ठूस श्व कालकल्प (स०नि०) ईषत् समासः कालः, कास उपमि० यहा कालं शिवमपि कूटयति अवसादयति, कल्यप् । यमतुल्य, मौतकी बराबरी करनेवाला। कालकूट-पच् । १ विषसामान्य, मामूनी जर। कालकवि (संयु) पग्नि, पाग। २ बोन, जम खराशी, । ३ वत्समम, बच्छनाग। कासकपक्षीय ( स० पु.) कालको हलो यन्त्र देश सन ४ काक, कौवा । ५ गिरिविशेष, एक पहाड़ ! यह भवः, कालक-वृक्ष-छ। काकचरिवन एक ऋषि। वर्तमान कालीगण्डक नदीके निकट अवस्थित है। कालकस्तूगे (स० स्त्री० ) कस्तरी वृक्ष विशेष, एक पेड़। कुकमा मस्थिताम् तु मध्य म कुनाकालम् । इसका वीज मनकर सूखनसे कस्तूरी की तरह रय पनसरो गत्वा कालाटमवीय का" (भारत २२२०१२) महकता है। ६ स्थावर विविधष, काला बच्छमाग । देवासुर कालका (स• स्त्री०) काम एष स्वार्धं कन-टाम् । युद्धके समय पृथुमाली नामक कोई पसर देवगए हारा .१ कालकेयनामक असुरोंगी माता। ३ पक्षिविशेष, मारा गया था। उसके रक्त से पलस्य इनकी भांति एक -एक चिडिया। दशमाता। ४ वैश्वामरको कन्या । वृष उत्पन्न हुवा । उसी वृक्ष निर्यासका नाम कान- Vol. IV. 140 वाना काम 66