पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५७

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कम्बोल

- उता प्रवाद प्रक्षन होनेसे मानना पड़ेगा-वह एक सामरिक जिला संस्खापन किया था। उसके

राजकुमार पसाब और कावुलके .उत्तरस्थ कम्बोज अनुसार समस्त देशका नाम पत्रम् या भानाम हुवा। नामक प्राचीन जनपदसे इस देश में पाये थे। वास्त किन्तु इमारी विवेचनामें 'अवम्' 'प्रङ्गम् शब्दका .विक कम्बोजके वर्तमान काम्बोजोंके साथ काश्मीरियों अपचा है। भारतवर्ष में जैसे अङ्ग-राज्य की राजधानी पौर काम्बीवोंका बहुत कुछ सौसादृश्य लक्षित होता चम्पा-कहातो, वैसे ही अन्नम् देशको राजधानी भी है। फिर यहां प्राचीन देवमन्दिरादिके निर्माणको चम्पा नामसे पुकारो जाती है। इसलिये पूर्वकाल प्रणाली भी काश्मीरके मन्दिरोंसे मिलती है। सुतरां (शिलालेखके अनुसार) उक्त अन्नम् देशको चम्पा- स्वीकार करना पड़ा-इस कम्बोन राज्यका नाम राज्य भी कह देते थे। वर्तमान कम्बोजक जिस भारतीय शास्त्रोक्त सिन्धु नदके उत्तर प्रवस्थित स्थानसे सर्वप्राचीन संस्कृत शिलालेख निकला, उसका 'कम्बोज से हुवा है। नाम 'अङ्ग-चमनिक' खुखा है। यह नाम भी 'अङ्ग- समझ न पाये-किस समय इस देशमें वह राज चम्मिक' वा 'अङ्गाचम्पा' शब्दका अपना समझ कुमार पाये थे। किसी किसीके अनुमानसे काश्मीर पड़ता है। इन कई प्रमाणोंसे उक्त स्थानशो एक राज तुङ्गिनके राजस्वकाल (३१८ ई.) भारतके स्वतन्त्र अङ्गदेश वा अङ्गदीप मान सकते हैं। कम्बोन पश्चिम प्रदेशमें नानारुप हलचल पड़ी। सम्भवतः और अचम्का मध्यवर्ता पर्वत हो सम्भवतः ब्रह्माण्ड- उसी समय इस देश में भारतीय उपनिवेश स्थापित पुराणोता चन्द्रगिरि है। चम्पा शब्दमै अन्यान्य विवरण देखो। हुवा होगा। किन्तु निश्चय कह नहीं सकते यह इतिहास-कम्बोजके भारतीय राजावीका इतिहास विषय कहांतक सत्य है। अन्धकाराच्छन्न है। आज भी समस्त शिलालेख स्थानीय शिलालेख में 'किरात' जातिका नाम अथवा स्थानीय प्राचीन पुस्तकादि सङ्ग होत नहीं हुये, मिलता है। सम्भवतः वही इस देशके आदिम अधिः जिनके द्वारा घोर अन्धकारसे ऐतिहासिक सत्व वासी हैं। विष्णु, कूम, वामन, गराड़, ब्रमाण्ड प्रभृति निकाला जा सके। पुराणों के अनुसार भी भारतवर्षके पूर्व सीमान्तवासौ अधुनातन कम्बोजसे मिलनेवाले सर्वप्राचीन किरात कहाते हैं। शिलालेखका समय ५२६ शक है। किन्तु उसमें कम्बोज और पानाम (अवम्) देश ब्रह्माण्ड किसी रानाका नाम नहीं। शिलालेखोंसे जिन पुराणोल अङ्गदीप ही समझ पड़ता है। उत द्वौपके राजावाँके नाम निकले, उनमें 'भववी नृपति ही विवरण में लिखा है,- सर्वप्रथम ठहरे हैं। भववर्माके पीछे शिलालेखों में निम्नलिखित राजावों के नाम मिलते हैं, "मनदीपं नियोधच भानाससमाकुलम् । माना छगशाको वदीयं बहुवितरम् । इमविद्रुमसम्पूर्ण रवानामाक क्षिती। भववर्मा ५४८शक नदी नवनविन सलिम लयाम्पसा। महेन्द्रवर्मा, ईशानवर्मा तव चन्द्रगिरि ममकनिझरकन्दरः । जयवर्मा तब सामुदरी चास्य मामासत्वसमाश्रया। भववर्मा समध्ये नागदेशस्य नेकदशी महागिरिः। पृथिवीवर्मा काटिया नागमिख्यं प्रान मदनदोपतेः।" (प्रधाण ५४०) इन्द्रवर्मा (थिवीवर्माके पुत्र); -OL 25 यशोवर्मा (इन्द्रवर्माके पुत्र) युरोपीय. ऐतिहासिकोंने कहा- ई०को वर्षवर्मा (यशोवर्मा के ज्येष्ठपुत्र) जौनपति मिश. होयाङ्गतीने टङ्गिनमें पत्रम्'-मामक गानवर्मा श्य, (यशोवर्माके २य पुत्र) ८२२, Vol. IV. 15 राजाफा माम समय ५८६ ५८॥ ५. '८११॥