पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५८

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कम्बोज समय ८६६ " ... ८२३॥ ८२४" ... ९५१ . १९८" ... १०३४" ११०८॥ राजाका नाम जयवर्मा (इन्द्रवर्माके य पुत्र) पड़ता-प्यामदेशीय बीइ रानावोंके प्रवल होनेसे ८५० शंक कम्बोज उनके अधीन था। इवर्मा श्य, (जयवर्माके कनिष्ठ भ्राता) ८६४, ई के सप्तदश शताब्द फरासीसी वाणिज्यके प्रमि- राजेन्द्रवर्मा (हर्षवर्माके ज्येष्ठधाता) प्रायसे कम्बोनमें घुसे थे। १७८७ ई को पानामके नयवर्मा (राजेन्द्रवर्माके पुत्र) राजा घियालगने फरासीसके पधिपति षोड़श लुयोसे उदयातित्यवर्मा श्म सन्धि स्थापन की। उसके अनुसार फरामोसौ युद्धकार जयवीरवर्मा पानामके राजाको साहाय्य पहुंचाते थे। उन्होंके सूर्यवर्मा ८३९.८५° साहाय्यसे घियातनाने उस समय टनकिङ्ग और कम्बोज उदयादित्यवर्मा २य, अधिकार किया। १८३१६०को आनामके राजा 'हर्षवर्मा श्य. (उदयके कनिष्ठभ्राता) मर गये। फिर १८४१ ई०को उनके पौवं तियेनफ्री उदयाकर वर्मा राजा हुये। उन्होंने कयी फरासीसी और स्पेनी हृष्टान जयवर्मा धर्मप्रचारकोंको मार डालने का आदेश दिया था। धरणीधर वर्मा १०३१॥ उससे समस्त फरासीसी और स्पेनी विगड़ उठे। सूर्यवर्मा १८४७६०को कपतान रिगल-डि-गिनोलो १७८७ ई. जयवर्मा (परम वैष्णव) का सन्धिपत्र निष्पत्ति करनेको समन्ध भेजे गये। उपरोक राजावों में पृथिवीचन्द्र के पुत्र हर्षवर्माने । किन्तु भानासके राजाने फरामोसका पादेश सुना बकु नामक स्थानपर ८०० शकको पृधिवीचन्द्रेश्वर न था। फिर फरासौसी सेनापतिने युद्ध घोषणा की। नामसे एक वृहत् शिवमन्दिर प्रतिष्ठा किया था। अनेक वार युद्ध चलते भी आनामके राजा फरासोधियोंसे उनके मरने पर पुत्र यशोवर्मा भी शिवमन्दिर प्रतिष्ठा न दवे। किन्तु प्रानाममें गड़बड़ देख १८५५ ई०को वार पिताके अनुवर्ती बने। यशोवर्माके भाता जय कम्बोजके ईसायियोंने मिलजुल विट्रोह लगाया था। वर्माके समयसे यहां बौद्धधर्म धुमा था। उससे पहले नौसेनापति गिनोली उन्हें साहाय्य करनेको सैगन वाम्बोजमें कहीं बौच न रहे। किन्तु प्रचारित होते | नदीको राइ कम्बोजमें घुस पड़े। फिर फरासीसी भी उम समय किसी भारतीय राजाने बौद्धधर्म ग्रहणा नी छोड़ पड़े थे। उनके पुनः पुनः अाक्रमण मारने- न किया। जयवर्मा परम वैष्णव रहे। सम्भवतः पर कम्बोजराज डोन उठे। १८६२ ई० को २६ वों ११०. शकको उन्होंने स्थानीय प्रहारवटका देवमन्दिर मयीको पानामरानने सन्धि करनेको कम्बोजको प्रतिष्ठा किया। उक्त जयवर्माके पीछे शिलालेखमें राजधानी संगन नगर दूत भेजा था। १५ वौं जनको किसी दूसरे भारतीय रानाका नाम प्रानतक नहीं सन्धिपन्न साचरित हुवा। फरासीसियोंने अपने निकला। किन्तु अनुसन्धान हो रहा है। कौन कर युद्धका व्ययादि और पूर्व सन्धिपत्रके अनुसार प्राप्य सकता-कहांतक फल मिलेगा। पर्थ ले लिया। पोछे खुष्टाम-धर्ममंचारकों को प्रवाध चीनका इतिहास पढ़नेसे समझ पड़ा-ई के ६ष्ठ धर्मप्रचार करने की क्षमता मिली। उस समय कम्बोज पानाम और श्याम प्रधान पतान्द कम्बोजराजने चीनराजके निकट अपना दूत एक राजप्रतिनिधिद्वारा करद राज्य-मुक्त रहा। भेजा था। सम्भवतःके हाद शताब्दसे इस राज्यमें बौर यह यासित होता था। फरासीसी कम्पोजरान्धमें धर्म बदने बगा। कारण उसी समयसे फिर भारतीय पहुंचे और मिका नदी तौरवर्ती प्रदेशको उर्वरता राजावाका नाम सुनने में न पाया। किन्तु कम्बोषक एवं शस्वशासिता देख विमोडित हुये। उन्होंने उस बौडीका इतिहास मो. गाढ़ तिमिरान्छन। मातम सामावगत करना चाहा। पचतम नौसेना-